Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
View full book text ________________
१०४
षष्टिशतक प्रकरण
कइया वि कदापि किवारई हुइ ? अपि तु न हुइ। कल्पद्रुम सरीषउ शुद्ध धर्मदायक जाणिवउ ॥ १०१॥ - [मे.] सम्यक्त्वमूल बार व्रतनउ सूधउ धर्मनउ उपदेश जको
दिइ तेहइ जि परमात्मा। जगत्त्रयमाहि परमपुरुष अनेरउ कोई नहीं । 5 किसउं ? कल्पवृक्ष सरीषउ इतर बीजउ को वृक्ष हुइ कहीइ ? अपि तु नहीं ॥ १०१॥
[सो.] जे गुणवंतना गुण अनइं दोषवंतना दोष न ओलखइं' ते आश्री कहइ छइ ।'
[जि.] अथ पंडित अनइ मूर्षहूई गाढउं आंतरउं कहइ । गजे. अमुणिअगुणदोसा ते कह विबुहाण हुति मज्झत्था। अह ते विहु मज्झत्था ता विसअमिआण तुल्लत्तं ॥१०२॥
[सो.] जे अमुणिअ० जे गुणवंतहूइं गुणवंत भणी ओलखइं' अनइ दोषवंतहूई दोषवंत भणी न जाणई। गुणवंत अनइ दोषवंतइ बिहइं सरीषाइ जि देखइ । इम कहइ 'अम्हारइ सघलाई 15देव, सघलाइ गुरु सरीखाइ जि । अम्हारइ रागद्वेष नही। अम्हे मध्यस्थ ।' ते जाणइ नहीं मध्यस्थ भणी किम बइसइ ? ते गाढा अजाणइ जि कहीइं । जेह भणी तेहहूई बि दोष लागइ, जेह भणी गुणवंतना गुण छताई अछता करई। दोषवंतमाहि अछता गुण
आरोपइ छ । ए बि दोष तेहहूई लागई। अह ते. जउ तेहू २०मध्यस्थ कहवराई ता वि० तउ विख अनइ अमृत तथा रत्न अनइ काच, आंबउ अनइ लीब, साप अनइ फूलमाल, अंधारउं अनइ अजूआलू
१ उलषइ. २ तेह विबुहाण, ३ उलषइं. ४ सघला. ५ नहीइ. ६ छता. ७ दोषवंतना. ८ 'छइ' नथी...
-
Loading... Page Navigation 1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238