Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 152
________________ aण बालावबोध सहित जस्स जेह सज्जन जन तणइ संगमि संयोगमात्रइ जि लघु उतावली सुधर्मबुद्धि समुल्लसंह प्रकट हुइ ॥ १०६ ॥ १०९ [ मे. ] ते सज्जन उत्तम जननई बलिहारी कीजउं । पणि ते केवहा छ ? निर्मल पुण्य करी युक्त छइ । जेहनइ संसर्गि लघु शीघ्र भी धर्मनी बुद्धि ऊपजइ उल्लसइ ॥ १०६ ॥ [सो.] तीणई' कालि ए कविनइ मनि श्रीजिनवल्लभसूरिई. जि खरा भणी बइठा हुंता । तेह' आश्री बि गांह कहइ छ । 5. [ जि . ] अथ बिहुं गाथाइं श्रीजिनवल्लभसूरि वर्णवइ । अज्ज वि गुरुणो गुणिणो सुद्धा दीसंति तडयडा केवि । पहु जिणवल्लह सरिसो पुणो वि जिणवल्लहो चेव ॥ १०७ ॥ २० वयणे वि सुगुरुजिणवल्लहस्स केसिं न उल्लसइ सम्मं । अह कह दिणमणितेयं उलुयाणं हरइ अंधत्तं ॥ १०८ ॥ [सो.] अज वि० अजी केतलाइ सुगुरु गुणवंत तपि नियमि करी कडकडता' देखीइं । पुण पहु प्रभु श्रीजिनवल्लभसूरि सरीषउ गुरु श्रीजिनवल्लभइ जि हुइ । बीजउ एव्हउ शुद्ध प्ररूपक s चारित्रीउ न हुई ॥ १०७॥ वयणे० श्रीजिनवल्लभसूरि गुरुहूई' वचनि केतलाइ अभागिआनइ सम्यक्त्व न ऊपजई : अह० अथवा सूर्यनउं तेज उलूक घूअडहूइं अंधण" किम फेडई ? जिम सूर्यहं ऊगिइं घूअड न देखई तिम as " गुरुनइ वचनि धर्म न ओलखइ " । इसिउ भाव ॥ १०८ ॥ 20 १ तीणं. २ तेह भणी तेह आश्री. ३ मे. केई. ४ जि. पर, मे. पुण. ५ अलूयाणं. ६ कडकडाता. ७ एहवउ ८ गुरुनई. ९ वचनइ १० अंधपणउं. ११ एह्वाई. १२ उलषइ. 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238