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षष्टिशतक प्रकरण
कइया वि कदापि किवारई हुइ ? अपि तु न हुइ। कल्पद्रुम सरीषउ शुद्ध धर्मदायक जाणिवउ ॥ १०१॥ - [मे.] सम्यक्त्वमूल बार व्रतनउ सूधउ धर्मनउ उपदेश जको
दिइ तेहइ जि परमात्मा। जगत्त्रयमाहि परमपुरुष अनेरउ कोई नहीं । 5 किसउं ? कल्पवृक्ष सरीषउ इतर बीजउ को वृक्ष हुइ कहीइ ? अपि तु नहीं ॥ १०१॥
[सो.] जे गुणवंतना गुण अनइं दोषवंतना दोष न ओलखइं' ते आश्री कहइ छइ ।'
[जि.] अथ पंडित अनइ मूर्षहूई गाढउं आंतरउं कहइ । गजे. अमुणिअगुणदोसा ते कह विबुहाण हुति मज्झत्था। अह ते विहु मज्झत्था ता विसअमिआण तुल्लत्तं ॥१०२॥
[सो.] जे अमुणिअ० जे गुणवंतहूइं गुणवंत भणी ओलखइं' अनइ दोषवंतहूई दोषवंत भणी न जाणई। गुणवंत अनइ दोषवंतइ बिहइं सरीषाइ जि देखइ । इम कहइ 'अम्हारइ सघलाई 15देव, सघलाइ गुरु सरीखाइ जि । अम्हारइ रागद्वेष नही। अम्हे मध्यस्थ ।' ते जाणइ नहीं मध्यस्थ भणी किम बइसइ ? ते गाढा अजाणइ जि कहीइं । जेह भणी तेहहूई बि दोष लागइ, जेह भणी गुणवंतना गुण छताई अछता करई। दोषवंतमाहि अछता गुण
आरोपइ छ । ए बि दोष तेहहूई लागई। अह ते. जउ तेहू २०मध्यस्थ कहवराई ता वि० तउ विख अनइ अमृत तथा रत्न अनइ काच, आंबउ अनइ लीब, साप अनइ फूलमाल, अंधारउं अनइ अजूआलू
१ उलषइ. २ तेह विबुहाण, ३ उलषइं. ४ सघला. ५ नहीइ. ६ छता. ७ दोषवंतना. ८ 'छइ' नथी...
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