________________
त्रण बालावबोध संहित
१०३
कष्टई करई अनइ आगलि पापइ जु उपार्जइं। एहां एह जु ऊषाणउ साचउ हुइ-एगं च मालपडणं अन्नं लउडेण सिरि घाओ ॥ १०॥
[मे.] क्रियानउ फटाटोप बाह्य तपनउं करिवउं चारित्रिया पहिति अधिकउं देषाडइ । आगमविहीन सिद्धांतनी आज्ञाई रहित आपणी बुद्धिई मुग्ध भोला लोकनइं रंजिवानइ काजि अनई सुद्ध 5 चारित्रिया तेहना अपमाननइ काजि, हीलानइ हेति ॥ १०॥
. [सो.] जे धर्मनउ उपदेश दिइ ते गाढउ हितूउ । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] अथ जिनधर्मनउ देणहार पुरुषनउं स्वरूप कहइ । जो देइ सुद्धधम्म सो परमप्पा जयम्मि न हु अन्नो। to किं कप्पमसरिसो इयरतरू होइ कइया वि॥१०१॥
[सो.] जो देइ० संसारना काजकाम व्यवसाय वाणिज्यनइ विषइ प्रेरणा सहूइको मा बाप सगा सणीजा करइ । पुण जे सूधउ खरउ धर्म उपदेशिई देखाडइ ते परमात्मा जगमाहि परमहितूउ कही। अनेरउ न कहीई । किं कप्पद्दम० जिम बीजा धव खइर पलासादिक-5 घणाइ वृक्ष हुइ, पुण मनोवांछित पूरण्हार कल्पद्रुम सरीसउ एक वृक्ष न हुइ । तिम कल्पद्रुम सरीखउ धर्म दिण्हार। इह लोकना काजना प्रेरण्हार बीजा वृक्ष सरीषा जाणिवा ॥ १०१॥
[जि.] जे सुद्धउ साचउ धर्म दिइ सीखवइ ते पुरुष परमात्मा गाढउ मोटउ जयम्मि जगत्माहे । तेह सरीखउ न हु अन्नो०० अनेरउ मोटउ कोई नही । किसुं ? कल्पद्रुम सरीषउ अपर वृक्ष
१ उपदिसइं. २ हितूउ, ३ एकइ. ४ देण्हार, ५ इ..