Book Title: Shashti Shatak Prakaran
Author(s): Nemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
Publisher: Maharaja Sayajirav Vishvavidyalay
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षष्टिशतक प्रकरण
[ जि.] पुण बली ए मध्यम स्थिति मध्यम पुरुषनी अवस्थिति जाणिवी । ए किसी जु? अणुसंगेणं हवंति गुणदोसा । संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति । सुसंसर्ग लगी गुण हुइ । कुसंसर्गतउ दूषण हुई । मनुष्य त्रिविधा । उत्तम मध्यम जघन्यरूप | उक्किपुण्णपावा 5 उत्कृष्ट पुण्यवंत उत्कृष्ट पापवंत सुसंसर्गि कुसंसर्गिइं न धिप्पति न लीज ॥ २८ ॥
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[ मे. ] या मध्यम स्थिति । अनुषंग कहतां संसर्ग तेह लगी गुणन दोस ऊपजइ । अनइ उत्कृष्ट पुण्य नइ पापना धणी कुणहइनइ संसर्गि छीपई नहीं । उत्कृष्ट पापीनई धर्मवंतनउ संसर्ग न लागई । 1० उत्कृष्ट धर्मवंतनइ पापीनउ संसर्ग न लागई जि ॥ २८ ॥
[सो.] वली एह जिवात कहइ छइ । [जि.] किम जाणीइ ए बात । अइसयपावियपावा धम्मिअपव्वेसु तो वि पावरया । न चलति सुद्धधम्मा धन्ना किवि पावपव्वे ॥ २९ ॥ 15 [सो.] अइसय० अतिशयप्रापितपापा गाढा पापी जीव धमि० धर्ममय पर्व आवइ तउ पापइजिनई' विषई रत हुई । पाप जि करई । धर्म ऊपरि मन नावई । न चलति ० केतलाइ धन्य पापपर्विद आविइ' आपणा सुद्धधम्मः चोप्य धर्मतउ चलई नहीं, क्षुभ नहीं । तेहना मन लगारइ धर्मतउ डौलइ नहीं । तेह भाणी उत्कृष्ट 20 पुण्यवंत अनह उत्कृष्ट पापवतहूइ संसर्गिह कांई विशेष न हुई ॥ २९ ॥ [जि.] अतिशयप्रापितपाप । उत्कृष्ट पापर्यंत पुरुष धम्मियपव्वे तो वि धार्मिक पर्वे सांवत्सरादिकेइ पावरया पापरत पापई
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१ पापज़िनइ, २ 'विषइ' नथी. ३ ' आविइ' नथी.