Book Title: Shadbhashachandrika
Author(s): Kamlashankar Pranshankar
Publisher: Rajkiya Granthamaladhikar Mumbai

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Page 466
________________ Satras in order. 3rd Adhyaya, 1st Pada. 1 ३८ सोलपउल पचे: १९३ 2 ३९ वेअडः खचेः २१२ 3 ४० णिव्वडो मुचेर्दु:खे १९९ 4 ४१ अवहेडमोल्लणिहुंछो सिक्क दिसडरेअवछंडाः १९९ 5 ४२ सिंचसिप्पौ सिचेः २१२ 6 ४३ रचेर्विडविड्डा होग्गहा: २१२ 7 ४४ केवलाअसारव समारोहासमारभेः २१२ 8 ४५ मस्जे उड्डुणिउड्डबुडखुप्पाः २१३ 9 ४६ अनुव्रजेः पडिअग्गः २१३ 10 ४७ वंचेर्वेहववेलवजूरवोम्मच्छाः 13 ५० गजेर्बुक्कः २१३ 14 ५१ डिक्को वृषे २१३ 15 ५२ तिजेरोसुक्कः २१४ 16 ५३ आरोलवमालौ पुजेः २१४ 17 ५४ कम्मवमुपभुजिः २१४ 18 ५५ पिडवमर्जिः २१४ 19 ५६ लजेर्जीहः २१४ 20 ५७ राजेस्सहरेहच्छजरी राग्घाः ॥ 21 ५८ घटेर्गदः ॥ 22 ५९ समो गलः ॥ 23 ६० स्फुटेः सहासे मुरः २१४ 24 ६१ मण्डेष्टिविडिक्करिडचिंचचिंचिल्लचिंचआः २१४ २१३ 11 ४८ रोसाणोबुसलुहलुच्छपुच्छफुस - 25 ६२ तुडिरुल्लुकणिलुकोल्लूरोक्खुडफुस्सघसहुला मार्जेः २१३ 12 ४९ भजेर्वेमअमुसुमूरमूरपविरज्जसूरसूडकरंज निरंजविरा: २१३ Jain Education International 26 27 47 लुकतोडखुट्टखुडान् २१५ ६३ घुसलविरोलौ मथि: २१५ ६४ ढंसोत्तंघौ विवृतिरुध्योः १९९ 2 खचेर्वेअडः || ४१८९ ॥ 3 दुःखे णिव्वल: 1 पचे: सोल- पउलौ ॥ ४९० ॥ ॥ ४१९२ ॥ 4 मुचेश्छड्डावहेड-मेल्लोस्सिक - रेअव - णिहुन्छ- धंसाडाः ॥ ४९१ ॥ ॥ 12 5 सिचेः सिञ्च - सिम्पौ ॥ ४९६ ॥ 6 रचेरुग्वहावह - विडविड्डाः || ४|९४ ॥ 7 समारचेरुवहत्थ-सारव - समार- केलायाः ॥ ४९५ ॥ 8 मस्जेराउड्ड - णिउड्डबुड्डु - खुप्पाः ॥ ४।१०१ ॥ 9 अनुव्रजेः पडिअग्ग: ।। ४ । १०७ ॥ 10 वश्चैर्वेहव— वेलव-जूरवोमच्छाः ॥ ४९३ 11 मृजेरुग्घुस - लुञ्छ - पुञ्छ - पुंस - फुस - पुस -लुहहुल- रोसाणाः || ४|१०५ ॥ भजेर्वेमय - मुसुमूर - मूर - सूर - सूड - विरपविरञ्ज— करञ्ज - नीरञ्जः || ४।१०६ ॥ 13 गजेर्बुकः ॥ ४१९८ ।। 14 वृषेदिक्कः ॥ ४९९ ॥ 15 तिजेरोसुक्कः ॥ ४॥ १०४ ॥ 16 पुञ्जेरारोलवमालौ ॥ ४१०२ ॥ 17 वोपेन कम्मवः ॥ ४।१११ ॥ 18 अर्जेर्विदवः || ४| १०८ ॥ 19 लस्जेजह: ॥ ४ । १०३ ॥ 20 राजेरग्घ - छज्ज - सह - रीर-रेहाः ॥ ४।१०० ॥ 21 घटेर्गदः ॥ ४११२ ॥ 22 समो गलः ॥ ४११३ ॥ 23 हासेन स्फुटेर्मुरः ॥ ४११४ ॥ श्चिञ्च-चिञ्चअ-चिञ्चिल्ल - रीड - टिविडिक्काः ॥ ४ । ११५ ॥ 25 तुडेस्तोड - तुट्ट - खुट्ट - खुडोक्खुडोल्लुक्क—णिलुक्क - लुक्कोहुराः ॥ ४।११६ ॥ 26 मन्थेर्घुसल - विरोलौ ॥ ४१२१ ॥ 27 विवृतेर्द्धसः || ४|११८ ॥ and रुपेरुत्थङ्घः || ४|१३३ ॥ 24 मण्डे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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