Book Title: Shadbhashachandrika
Author(s): Kamlashankar Pranshankar
Publisher: Rajkiya Granthamaladhikar Mumbai
________________
APPENDIX: APABHRAMS'a.
181
अह भग्गा अम्हहं तणा । अथ भमा अस्माकं संबन्धिनः । मा भैषीरित्यस्य मन्भीसेति स्त्रीलिङ्गम्--
सत्थावत्थहं आलवणु साहुवि लोउ करेइ । आदनहं मन्भीसडी जो सज्जणु सो देइ ॥ खस्थावस्थानामालपनं सर्वोपि लोकः करोति ।
आर्तानां मा भैषीर्यः सज्जनः स ददाति ॥ ( परमार्तानां मा भैषीरिति य आश्वासनां ददाति स सज्जन इत्यर्थः ॥) यद्यदृष्टं तत्तदित्यस्य जाइट्ठिआ
जइ रचसि जाइटिअए हिअडा मुद्ध-सहाव । लोहें फुटणएण जिवँ घणा सहेसइ ताव ॥ यदि रज्यसि यद्यद् दृष्टं हृदय मुग्धस्वभाव ।
लोहेन स्फुटता सता यथा घनः सहिष्यते तापः ॥ ( हे हृदय हे मुग्धस्वभाव यद् यद् दृष्टं तत्तत्र यदि रज्यसे तत्तर्हि त्वया लोहेनेव स्फुटता सता घनस्तापः सहिष्यत इत्यर्थः ॥ ).
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646