Book Title: Shadbhashachandrika
Author(s): Kamlashankar Pranshankar
Publisher: Rajkiya Granthamaladhikar Mumbai
________________
198
P. 66
""
22
P.67
""
"
""
""
77
33
22
""
,"
P. 68
""
"
""
73
22
"
"
"
""
""
"
""
1. 16
1. 18
"
P. 69 1. 1
1.
2
1. 5
1. 10
1. 13
1. 14
1. 16
">
33
"
APPENDIX: READINGS OF V.
कृपण । कृश । कृशानु
दृष्ट । मृष्ट ।
The Ms. has हृत before तृप्त
The Ms. drops मअंको
3
उ: in place of वुः
8 वुन्दारओ | बंदारओ । वृन्दारकः । णिवृत्तो। वित्तो। निवृत्तः ।
1. 11
पृथग्योगा नित्यम् after भवति
33
1. 10
I. 13
1. 14
1.
1.
1.
1
उसहो । ऋषभः । रीत्यादेशश्च । रिसहो ।
"
1.12-13 प्राभृत । प्रभृत । प्रभृति । भृति । निभृत । संभृत । परभृत । निवृत । संवृत ।
1. 13
प्रवृत्ति | प्रवृत्त
1. 16 इत्यतः ' इत्' is omitted.
1.18-19 The Ms. has मृदङ्ग: after मुअंगो,
णत्तुओ and बृष्ट: after बुट्ठो
"
1. 1
1. 8
1. 11
1. 13
1. 15
Jain Education International
22
1. 18
1. 20
हप्तेऋतः
ऋषभः is dropped.
अथ is dropped.
सन्ध्यक्षराणां after एष्वेचः
इत् for इल् and भवति for च
भवति for स्यात्
सिन्धओ ।
तत्संनियोगे
कौक्षेयक उत्
कौक्षेयकाद
is omitted.
तु
ar is dropped.
इत्यत ऊत्वम् is omitted.
इत्यनेन शसि शकार
सोसासो । एच ऊत्वे सूसासो इति भवति ।
इत्यतः ‘ऐच:' is dropped.
इत्यादेशो वा भवति
वैरादिः
For Private & Personal Use Only
नप्तृकः after
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646