Book Title: Shadbhashachandrika
Author(s): Kamlashankar Pranshankar
Publisher: Rajkiya Granthamaladhikar Mumbai
________________
APPENDIX: APA BHRAMS 'A,
कान्तो यत् सिंहेनोपमीयते तन् मम खण्डितो मानः । सिंहो नीरक्षकान् गजान् हन्ति प्रियः पदरक्षैः समम् ॥
( सिंहो रक्षपालर हितान् गजान् हन्ति प्रियः पदरक्षैः समं पदातिरक्षैः समं
गजान् हन्तीत्यर्थः ॥ ).
किल किर ।। ३ । ३ । ४१ ॥ P. 281
किर खाइ न पिअइ न विद्दवइ धम्मि न वेच्चइ रूअडउ | इह किवणु न जाणइ जह जमहो खणेण पहुचइ दूअडउ ॥ किल न खादति न पिबति न विद्रवति धर्मे न व्ययति रूपकम् । इह कृपणो न जानाति यथा यमस्य क्षणेन प्रभवति दूतः ॥ (विद्रवति = ददाति )
पग्गिमप्राइम प्राउप्राइव प्रायशः ॥ ३ । ३ । ४२ ॥ P. 281Hemachandra gives प्राइम्व and परिगम्व in place of प्राइम and परिगम and has:
अने ते दीहर लोअण अन्नु तं भुअ-जुअल ।
अन्नु सु घण थण-हारु तं अन्नु जि मुह - कमलु ॥ अनुज केस - कलावु सु अन्नु जि प्राउ विहि । जेण णिअम्बिणि घडिअ स गुण-लायण्ण - णिहि ॥ प्राइव मुणिहंवि भन्तडी तें मणिअडा गणन्ति । अखइ निरामइ परम-पइ अज्जवि लउ न लहन्ति ॥ अंसु - जलें प्राइम्व गोरिअहे सहि उव्वत्ता नयण - सर । तें सम्मुह संपेस देति तिरिच्छी घत्त पर ॥ एसी पिउ रूसेसु हउं रुही मई अणुणेइ । पग्गम्व एइ मणोरहई दुक्करु दहउ करेइ ॥ अन्ये ते दीर्घे लोचनेन्यत् तद् भुजयुगलम् । अन्यः स घनः स्तनभारस्तदन्यदेव मुखकमलम् ॥ अन्य एव केशकलापः सोन्य एव प्रायो विधिः । येन नितम्बिनी घटिता सा गुणलावण्यनिधिः ॥ * प्रायो मुनीनामपि भ्रान्तिस्ते मणीयकान् गणयन्ति । अक्षये निरामये परमपदेद्यापि लयं न लभन्ते ॥
* किं शून्यध्यानेनेत्यर्थः ।
165
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646