Book Title: Shadbhashachandrika
Author(s): Kamlashankar Pranshankar
Publisher: Rajkiya Granthamaladhikar Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 595
________________ 176 APPENDIX: APABHRAMS'A. शौरसेनीवत्-Hemachandra has the same Sutra 446. His instance is:__ सीसि सेहरु खणु विणिम्म विदु खणु कण्ठि पालंबु किदु रदिए विहिदु खणु मुण्डमालिए जं पणएण तं नमहु कुसुम-दाम-कोदण्ड कामहो ॥ शीर्षे शेखरे क्षणं विनिर्मापितं क्षणं कण्ठे प्रालम्बः कृतो रत्या विहितः क्षणं मुण्डमालिकायां यत् प्रणयेन तन् नमे कुसुमदामकोदण्डं कामस्य । ( कामस्य तत् कुसुमदामकोदण्डं प्रणयेन स्नेहेन नमे । तत् कियत् यत्तु रत्या कामभार्यया क्षणं शीर्षे शेखरे विनिर्मापितं यत् क्षणं कण्ठे प्रालम्बः कृतं यत् क्षणं मुण्डमालिकायां मस्तके विहितमित्यर्थः । ) ॥ तद्यत्ययश्च-Hemachandra has व्यत्ययश्च 447--Rules that hold in one Prâkrita hold in others also. For instance, in the Mâgadhî fag is changed to fg. The same change holds in the Prakrita (the Maharashtri ), the Paisachi, and the S'auraseni. The rule given in the Apabhrams'a, viz., that I when second member of a conjunct consonant, is optionally dropped, holds in the Magadhi alsoशद-माणुश-मंश-भालके कुम्भ-शहश्र- वशाहे शंचिदे (शतमानुषमांसभारकः कुम्भसहस्रवशायाः संचितः). Similarly, substitutes for ति and other terminations are also interchanged in different Prakritas. Affixes of the Present Tense are applied in the sense of the Past and vice versa. अह पेच्छइ रहु-तणओ ( अथ प्रेक्षांचके रघुतनयः)। आभासइ रयणीअरे ( आवभाषे रजनीचरानित्यर्थः) । सोहीअ एस वण्ठो ( शृणोत्येष वण्ठ इत्यर्थः )। शेषं संस्कृतवत्-Hemachandra has शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् ॥ 448. What is not given in the Prâksita grammar is to be understood as in Sanskrit. हेतु-ट्ठिय-सूर-निवारणाय छत्तं अहो इव वहन्ती । जयइ ससेसा वराह-सास-दुरुक्खुया पुहवी ॥ अधःस्थितसूर्यनिवारणाय छत्रमह इव वहन्ती। जयति सशेषा वराहश्वासदुरीक्षिता पृथिवी ॥ झाडगास्तु देश्याः सिद्धाःझाड and other words of the class are देश्य. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646