Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 38 Nandisootra Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 466
________________ आगम (४४) [भाग-३८] “नन्दी”- चूलिकासूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ............... मूलं [४७]/गाथा ||८१...|| ........... ................. पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र[४४] चूलिकासूत्र[१] नन्दीसूत्र मूलं एवं मलयगिरिसूरिरचिता वृत्ति: प्रत सूत्राक [४७]] 'मुक्तिः कर्मक्षयादिष्टे'तिवचनप्रामाण्यात्, कर्मजालक्षयश्च न निमूलकारणोच्छेदमन्तरेण सर्वथा सम्भवति, ततो अज्ञानवाद्यमिथ्यात्वप्रतिपक्षं सम्यग्दर्शनमज्ञानप्रतिपक्षं च ज्ञानमविरतिप्रतिपक्षं च चारित्रं सम्यक् सेव्यमानं यदा प्रकर्षप्रासंधिकारः भवति तदा सर्वथा कारणापगमतो निर्मूलकोच्छेदो भवतीति ज्ञानादिकं साक्षान्मुक्त्य, न विनयमात्र, केवलंता विनयो ज्ञानादिषु विधीयमानः परम्परया मुक्त्यङ्गं साक्षात्तु ज्ञानादिहेतुरिति सर्वकल्याणभाजनं तत्र २ प्रदेशे गीयते, यदि पुनर्यतिविनयवादिनोऽपि ज्ञानादिवृद्धिहेतुतया मुक्त्यङ्गं विनयमिच्छन्ति तदा तेऽप्यस्मत्पथवर्तिन एवेति न कदा(का)चिद्विप्रतिपत्तिरिति कृतं प्रसङ्गेन, प्रकृतमनुसन्धीयते । 'सूयगडस्स णं परित्ता' इत्यादि सर्व प्रागवत् , उद्देशानां च परिमाणं कृत्वा उद्देशसमुद्देशकालसङ्ख्या भावनीया, 'सेत्तं सूयगडे' तदेतत्सूत्रकृतं ॥ से किं तं ठाणे?, ठाणे णं जीवा ठाविजंति अजीवा ठाविजंति ससमए ठाविजइ परसमए ठाविजइ ससमयपरसमए ठाविजइ लोए ठाविजइ अलोए ठाविजइ लोआलोए ठाविजइ, ठाणे णं टंका कूडा सेला सिहरिणो पब्भारा कुंडाई गुहाओ आगरा दहा नईओ आघविजंति, ठाणे णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेजा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेजाओ निजुत्तीओ संखेजाओ संगहणीओ संखेजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्याए तइए दीप अनुक्रम [१४०] २२७८ SEARS स्थान-अंग सूत्रस्य शास्त्रिय परिचय: प्रस्तुयते ~466~

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