Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ सत्यामृत - - प्रश्न-अगर निवृत्ति पर जोर दिया जायगा अपेक्षा कुछ न बोलना अच्छा, दस बार दान अब कर्मयोगी का स्थान सब से नीचे हो जायगा। देकर एक बार चोरी करने की अपेक्षा चोरी और प्यान योग, उसमें भी संन्यास-योग, मुख्य हो दान दोनों से दूर रहना अच्छा । यही निवृत्ति पक्ष "रा परन्तु जगत्कल्याण की दृष्टि से तो कर्म- की प्रधानता है । इसीलिये भगवती अहिंसा का योगही श्रेष्ट है। नाम निषेधपरक है। यह अधिक आवश्यक भी उनर भ्यानयोग हो या कर्मयोग सब योगों है और व्यापक भी है। से नियत्ति ममान पाई जाती है इसलिये इस प्रकार संयम में निवृत्ति-प्रधानता होने निवृत्ति की दृष्टि में ले सभी योग समान रहे। पर भी अनावश्यक निवृत्ति और आवश्यक प्रवृत्ति बल्कि कर्मयोग की निवृत्ति अनेक परीक्षाओं में के अभाव को स्थान नहीं है । निवृत्ति प्रवृत्ति के निकलते रहने के कारण अधिक प्रामाणिक होती विषय में स्वहित और परहित का विचार अवश्य हमारा मन कितना निर्विकार है ! इसका पता होना चाहिये। संन्यास योगी को इतना नहीं लग सकता जितना कर्मयोगी को। संन्यास के मार्ग पर चलनेवाले ___इस विषयमें निम्न लिखित सूचनाएँ उपयोगी हैं। के दिल में कर्मयोग के पधिक से अधिक विकार १- निवृत्ति अशुभ से होना चाहिये । कभी होने पर भी कम दिखाई दे या न दे यह हो उचित या निर्दोष कार्य से भी निवृत्ति लेना पड़े सकता है इसलिये कर्मयोगी की निर्विकारता या तो उसका उद्देश निवृत्ति का प्रदर्शन न होना अशुभ निवृत्ति अन्य योगियों से अधिक प्रामाणिक चाहिये परन्तु अपना या दूसरों का लाभ होना : है । बराबर होने में तो आपत्ति ही क्या है ? इस चाहिये । जैसे किसी आदमी ने नियम लिया कि प्रकार निवृत्ति की दृष्टि से चारों योग समान होने में दिनमें दूसरे बार अन्न न खाऊँगा तो इस निवृत्ति पर भी शुभ या शुद्ध प्रवृत्ति की दृष्टि से कर्म- में उसे देखना चाहिये कि ( क ) इसमें स्वास्थ्य योग ही श्रेष्ठ है। को लाभ पहुँचता है या नहीं [ख] बचे हुए समय का प्रवृत्ति और निवृत्ति आचाररूपी सिक सदुपयोग होता है या नहीं गा खर्च में कमी दो पहलू है । एक के भी अभाव में सिक्का बेकाम " होती है या नहीं [घ] उस बचत का सदुपपोग हा जायगा । इस प्रकार प्रवृति और निवृत्ति की होता है या नहीं, अगर इनमें से एक भी लाभ न भमान आवश्यकता होने पर भी निषध -परक हो तो वह निवृत्ति न करना चाहिये। हिमा शब्द से जो मदाचार कहा गया इसका २ निवृत्ति ऐसी न होना चाहिये जिससे कारण सिर्फ यही है कि सदाचार की प्राप्ति के अपने उत्तरदायित्व को मनुष्य पूरा न कर सके लिय विधि की अपेक्षा निषेध (अशुभ निवारी) के या उसे छोड़ बैठे । एक आदमी ने शादी की . किये उद्योग आंधक करना है। दूसरी बात यह और आजीवन ब्रह्मचर्य ले लिया या घर छोड़कर है कि शुभ प्रवृत्ति की कमी जितनी क्षम्य है मंन्यासी हो गया, ऋण लिया और उसे चुकाये बिना अनिवृत्तिका कमी उतनी अन्य नहीं है। या कान का प्रबन्ध किये बिना संन्यासी हो दम बार मञ्च बोल कर एक बार झूट बोलने की गया तो ऐमी निवृत्ति अनुचित है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 234