Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 9
________________ [7 पुत्रीको माताका उपदेश ECTOCHROCHROXOSECRECTROCIRCOTECREOCHROCROCIEOS चिह्न है। प्रायः स्त्रियां ललाटमें केवल मोडल व अन्य वस्तुओं की बनी हुई टिकली रालसे चिपका लेती हैं सौ यह केवल उनका प्रमाद है। टीका कुमकुम (रोली) का ही मांगलीक माना गया है। यदि घरमें फुलवाडी हो और वह फूले, तो सांझ समय फूले हुवे फूल बीनकर उनका हार आदि भी गूंथ लिया करना, और झाडके नीचे शुद्ध वस्त्र इस प्रकार बांध दिया करना कि जिससे रात्रिको खिलकर झडनेवाले फूल पृथ्वी पर न पडने पावें, क्योंकि इसी प्रकारके पृथ्वी पर न गिरे हुवे शुद्ध प्राशुक व जीवादिसे रहित फूल ही श्रीजीकी पूजामें काम आ सकते हैं। (17) बेटी! तू सब वस्त्राभूषण उच्च कुंलांगणांओंके अनुसार ही पहिनना, कि जिससे दोनों कुलकी लाज रहे। आजकल प्रायः नवीन सभ्यतावाली उद्दण्डे स्त्रियां नकली (गिलट व मुलम्मेवाला) जेवर अशुद्ध रबर, कचकडा व लाख आदिकी चूड़िया छल्ला और महीन विदेशी या रेशमके अपवित्र ( पतले झिरझिरे) कपड़े पहिन कर रहती व बाहर आती जाती हैं, जिससे उनका सारा शरीर दिख पड़ता है, जो कि उनके पवित्र शीलरूपी भूषणके लिये बड़ा भारी दूषण है। सर्वोत्तम और शुद्ध वस्त्र खादीका ही होता है। उसे इच्छानुसार स्वदेशी शुद्ध रंगोंमें रंगा जा सकता है। यह याद रहे कि विदेशी वस्त्रोंके रंगनेमें खून चर्बीका उपयोग होता है, इसलिये विदेश कपडोंसे मोह कभी मत करना। (18) बेटी! तू बहुत आभूषण भी पहिननेकी तृष्णा मत करना किंतु सदैव सद्गुणरूपी भूषणोंसे अपने आपको भूषित रखनेकी पूर्ण चेष्टा अवश्य ही करते रहना। पतिसेवा करना स्त्रियोंका मुख्य धर्म है। इसलिये सदैव उमंगके साथ पतिकी सेवा करना आज्ञा पालन करना। कभी भी ऐसी कोई बात न करना कि जिससे पतिको कष्ट

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