________________ पुत्रीको माताका उपदेश [27 EPCOCIENCEROSECRECORRECORROCROCRACTROCIRCTECH सकता है? जिस प्रकार वह यहां रहती थीं उसी प्रकार वहां भी उनके लिये माताजी उपस्थित है। आप कोई चिंता न करें। हम लोगोंको सदैव अपने पास ही समझिये! सासुजी! संसारमें सब प्राणी अपने२ गुण कर्मानुसार ही सुख दुःख बना लेते हैं। यथार्थमें जीवको सिवाय उसके गुण दोषों (स्वकृत कर्मों) के कोई भी सुख व दुःख देनेवाला नहीं हो सकता हैं। और वे तो हमारी गृहलक्ष्मी ही हैं, तो भी मैं यथाशक्ति उनको सुखी बनानेमें कसर न रक्खूगा। मुझे स्मरण हैं कि मैंने जो सप्त वचन ब्याह समय आपकी प्यारी पुत्री और अपनी अर्धांगनाको दिये थे वे निम्न प्रकार हैं, मैं उनका भले प्रकार पालन करूंगा। (1) परस्त्रीभिः ( पाणिगृहीतारिक्त) क्रीडा न कार्या ( परस्त्री सेवन नहीं करना) (2) वेश्यागृहे न गन्तव्यम् ( वेश्या [गणिकाके ] घर न जाना) (3) द्यूत क्रीडा न कार्या ( जुआ नहीं खेलना) (4) उद्योगाद्रव्योपार्जनेन मम अशनवस्त्राभरणानि रक्षणीयानि ( उद्योग द्वारा द्रव्य उपार्जन करके मेरे भोजन वस्त्राभूषणोंकी रक्षा करना।) (5) धर्मस्थाने न वर्जनीया (धर्मस्थानमें जानेसे नहीं रोकना) (6) अनुचित कठोर दण्डो न दातव्यः (अनुचित दण्ड (ताडना) नहीं देना।) (7) जीवनपर्यंत निरपराधा न त्यजनीया (जीवनपर्यंत विना अपराध त्याग मत करना) इत्यादि। इस प्रकार जमाईने सासुकों सम्बोधन करके उसे प्रणाम किया और अपनी पत्नीको लिवाकर ससुरालसे बिदा हुआ। और देखते देखते दम्पति दृष्टि से अदृश्य हो गये। बिचारी माता व स्वजनादि वियोगाकुल हो फिर देखते हुए पीछे लौटे। ठीक है-“बेटी अरु गाय, जहां देवों तहं जाय।" * *