________________ पुत्रीको माताका उपदेश ROCEBOOSTOLEROCIOCTRICTROCIROCIOCHROCEBOCHROCETICS एक प्रकारसे अभावसा ही देखने में आता हैं। कहां गई सीता, द्रौपदी, अंजना, मैंना व मनोरमा? हाय भारतभूमि! आज तू ऐसी सतियों व रामचंद्र, हरिशचंद्र, विक्रम जैसे नररत्नों व उमास्वामी, समन्तभद्र, अकलङ्क आदि धर्मप्रचारकोंको खोकर ही गारत हो रही है। __ हे भारतीय सभ्य नरनारियो! जागो! जागो! देखो एक पहियेसे रथ नहीं चलेगा। इसलिये स्थान स्थान पर पुत्र और पुत्रियोंकी पाठशालाएं खोलो, आश्रम खोलो, रीति नीति व सधर्म प्रकारकी शिक्षाका घरोघरमें प्रचार करो ताकि ऐहिक सुखोंकी प्राप्ति हो, और पारलौकिक सुखोंके निकट भी पहुंच सको। इस समय हमको पुरुषोंमें जैसे सदाचार व्यापार आदिकी शिक्षा देना अमीष्ट है, उसी प्रकार स्त्रियोंमें भी कुछ व्यवहारगृहस्थाश्रम संबंधी सब प्रकारकी शिक्षा देना आवश्यक है। उन्नति या अवनतिका एक प्रधान कारण स्त्रियोंको भी समझना चाहिये। इत्यलम्। श्रावण वदि तिथि मागणा, संवत् वीर महन्त। तीर्थंकर हत गतिनको, लोक शिखर तिष्ठन्त॥ समाज-हितेषी(स्व.) वर्णी दीपचंद परवार, ( नरसिंहपुर P. C. निवासी ) అయసాయ