________________ पुत्रीको माताका उपदेश [47 SOCIOECSECSESBOSBOSCOSOBOSCOSPOSOOS पूर्व आदर्श सती सीता सो वह महिमा, दिखादो आज फिर कोई। धर्म अपने पै दृढ़ रहना, सिखादो आज फिर कोई॥ ध्रुव। कि जैसी नारी थी सीता, हो वैसी नारि तुम भी तो। वही कर्तव्य नारीका, बतादो आज फिर कोई // 1 // हुई हैं धर्म होना सब, नहीं विद्यान गौरव है। नारिका कर्म क्या है आ, लखादो आज फिर कोई॥२॥ उच्च आदर्श दिखलाकर, बढाया था सती गौरव। नाम श्रेणीमें उनकी तुम, लिखादो आज फिर कोई // 3 // किया उज्जवल था मुं अपना, सभी संसारके आगे। सुयशकी ज्योति जगमें जग-मगा दो आज फिर कोई॥४॥ उठो ए विदुषियो! महिलाओकी है डूबती नैया। किनारे, आके ए बहिनो, लगादो आज फिर कोई॥५॥ पड़ी हैं नींद गफलतमें अविद्याका नशा पीकर। उन्हें सद्ज्ञान अमृत रस, पिला दो आज फिर कोई // 6 // नहीं हैं तेज बल साहस, बनी कायर सुमति हीना। कली साहसकी दिलमें आ, खिलादो आज फिर कोई॥७॥ “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते देवता तत्र।" इसी प्रियनादसे नभको, हिलादो आज फिर कोई // 8 //