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________________ // श्री महावीराय नमः॥ इस पुत्रीको समय ससराल जात्र माताका उपदेश --: अनुवाद व सम्पादक :-- स्व. धर्मरत्न पं. दीपचंदजी वर्णी नरसिंहपुर निवासी -: प्रकाशक:शैलेश डाह्याभाई कापडिया दिगम्बर जैन पुस्तकालय, गांधीचौक, सूरत-३. टाईप सेटींग एवं ऑफसेट प्रिन्टींग जैन विजय लेसर प्रिन्ट्स खपाटिया चकला, गांधीचौक, सूरत-३. टे. नं. 427621 मूल्य : रू -00 - -
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________________ लधु विद्यानुवाद (यंत्र, मंत्र, तंत्र सहित सचित्र) यंत्र, मंत्र, विद्याका एकमात्र संदर्भ ग्रंथ आ. गणधर कुन्थुसागरजी महाराज व आ. विजयमतीमाताजी द्वारा संग्रहीत पृष्ठ 725 पांच खंडोमें मन्त्र साधना करनेके आस्रव विधान व मुद्राओंकी चित्र सहित बताया गया है। ग्रंथमें अनेक कष्ट निवारण हेतु यंत्र, मंत्र व तंत्र चित्रों सहित दिये गये है, इसके अलावा 48 रंगीन कलरमें यक्ष यक्षिणियोंके व 16 विद्यादेवियोंके चित्र भी दिये है। मू. 400) रुपये। - भैरव पद्मावती कल्प (यंत्र, मंत्र, तंत्र सहित सचित्र) आ. कुन्थुसागरजी महाराज द्वारा संग्रहीत यंत्र मंत्र तंत्रका महान ग्रंथ यह महान ग्रंथ शास्त्र भव्य जीवोंके लिए, संसारमें भ्रमण करते हुए आधि व्याधि रोगोंके संकटसे शांति प्राप्त करानेंमें तथा मिथ्यात्वसे बचाने में कार्यवाही सिद्ध होगा। मूल्य -200) रुपये। ताबें व कांसेके यंत्र ऋषिमण्डल यंत्र 8" x 8" ईंच ऋषिमण्डल 6" x 6" ऋषिमण्डल यंत्र 4" x 4" सिद्धचक्र यंत्र 4" x 4" दशलक्षण यंत्र 4" कलिकुण्ड यंत्र कांसेका 7" x 7" कलिकुण्ड यंत्र कांसेपर विनायक यंत्र 4" x 4" नवग्रह यंत्र 4" x मातृकायंत्र __ 4" x 4" नन्दीश्वर यंत्र 4" x 4" रत्नत्रय यंत्र 4" x 4" चौसठ ऋद्धि यंत्र 8' x 8" सोलहकारण यंत्र 4" विजय यंत्र व ऋद्धिवृद्धि यंत्र 2" x 2" पंचरंगा जैन झण्डा 63" x 50" तांबेका कडा (पट्टी) जिसपर णमोकार मंत्र लिखा है। लक्ष्मी यंत्र " x 2 मा यत्र नव्रत 4" x 4" लिय, लक्ष्मी सूरत-३. w9 k "
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________________ पुनीको माताका उपदेश। RROR सन्मति पद सन्मति कारण, वन्दू शील नमाय। जा प्रसाद शिक्षा लिखू, पुत्रिनको सुखदाय॥१॥ (1) ब्याहा होनेपर प्रथम बार जब पुत्रीको अपने पिताके घरसे ससुरालमें जानेका समय आया, अर्थात् विदाका समय हुआ तब माताने पुत्रीको सम्पूर्ण वस्त्राभरण पहिराकर मस्तकमें रोलीका तिलक लगाया और नवीन फल श्रीफलादि ओलीमें देकर कहा-बेटी! अपने हाथ पैर आदिका सम्पूर्ण आभूषण सम्हालो और सुखपूर्वक जाओ। (2) माताके ये वचन सुनकर पुत्री लज्जासहित नीचा शिर करके बोली-“हे माता! मैं जाती हूँ मेरी याद मत भूलना।" इतना ही कहने पाई थी कि उसका गला भर आया और आंखोंसे टपटप आंसू टपकने लगे। वह इससे आगे और कुछ भी नहीं कह सकी, किंतु मन्द स्वरसे माता पितादि स्वजनोंके प्रेमसे अधीर होकर रोने लगी। ठीक है, जिस मातापितादिकी गोदमें लालन पालन पाकर वह इतनी बड़ी हुी है, उनसे एकाएक प्रेम छूट जाना सहज नहीं है। और माता जिसने नव मास तक गर्भ में धारण करके जन्म दिया और तबसे अंचलका दुग्धपान कराकर अबतक अनेक प्रकारसे
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________________ 2] ससुराल जाते समय wCRECIRCROCEROCHROCHOCHOCHECREECSECREECRECOR लालन पालन किया है उसका व पितादि जनोंका भी प्रेम पुत्रीसे क्या एकदम छूट सकता है? नहीं२, परंतु यह अनादिकी प्रथा है कि पुत्रसे अपना और पुत्रीसे पराया वंश चलता है। अर्थात् पुत्री परघरके लिये ही हुई है, इसमें हर्ष विषाद ही क्या करना चाहिये? यह विचार कर माता पुत्रीके मस्तकपर हाथ रखकर प्रेमाश्रु टपकाती और अपने अंचलके छोरसे पुत्रीके आंसू पोंछती हुई मधुर गद्गद् स्वरसे बोली (3-4) "मेरी प्यारी बेटी! तू अपने मनमें किंचित् भी खेद मत कर और हर्षित होकर जा। अब विलम्ब मत कर, मैं तुझे शीघ्र ही रक्षाबंधनके पवित्र पर्व पर बुला लूंगी। उठ! आंसू पोंछ मनमें कुछ भी चिंता मत कर। तेरी सासूजी बहुत सरल स्वभाववाली दयालु और साध्वी स्त्री हैं। संसारमें उनके समान विरली ही स्त्रियां होंगी। तुझे तेरे सौभाग्यसे ही ऐसी सासू मिली है," ऐसा कहती हुई माता मानों हर्षसे फूली नहीं समाती थी, बोली-बेटी! विजयालक्ष्मी! तू भाग्यवान हैं जा, और जिस प्रकार तेरी भक्ति तथा प्रेम मेरे उपर है उसी प्रकार अपनी सासूमें भक्ति तथा प्रेम रखना और उन्हींको माता समझकर सदा विनयपूर्वक उनकी सेवा सुश्रुषा व आज्ञा पालन करते रहना। (5) बेटी! मैंने तुझे जन्म दिया है और तबसे अबतक लालन पालन किया है, इसलिये अबतक मैं तेरी माता थी, परंतु अबसे जीवनपर्यंत तेरी माता तो सासूजी ही हैं। आजसे तेरे लिये जो कुछ भी सुख आदि होनहार है उस सबका भार तेरी सासूजी पर ही है। वे ही अब तेरी सच्ची माता हैं, ऐसा समझकर अब तू हम समस्त जनोंका वियोगजनित दुःख भूल जा।
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश &CREECREACHECREECRECTROCIEOCREACHECREOCHROCEXS (6) बेटी! यद्यपि आजकल लोकमें प्रायः बुरी कहावत चल रही है कि-सासूएं बहुओंको सतानेवाले दुर्बुद्धिनी और कठिन वचन कहनेवाली कर्कशा होती है। परंतु वह बात सर्वथा कल्पित (मिथ्या) है क्योंकि जो पुरुष स्त्री अपने पुत्रोंका, वंशकी रक्षा व सुखवृद्धिके अर्थ विवाह करता है, सो भला वह अपनी पुत्रवधूओंको कैसे दुःखी करेगा? कदापि नहीं। इसीलिये तू भी अपने अन्तःकरणको ऐसीर घृणित बातोंसे मलिन मत होने देना। (7) बेटी! स्मरण रख कि मीठे, नम्र और विनययुक्त वचन बोलनेसे प्रत्युत्तर भी मीठे नम्र वचनोंमें ही मिलता हैं। और कडुवे-कठोर वचनोका उत्तर कडुवे व कठोर वचनोंमें अर्थात् अपनेको अपनी प्रतिध्वनी (झांई-ECHO) सुनाई पड़ती है। इसलिये जो तू वहां (ससुरालमें) जाकर विनय विवेक हितमित प्रियवादिसे वर्ताव करेगी तो तेरी सम्पूर्ण मनोकामनायें पूर्ण होगी और जो दूसरोंका दिल दुखायेगी तो उसके बदले तुझे भी तिरस्कार सहना पड़ेगा। (8) बेटी! ससुरालमें जाकर अपने कुलकी लाज (मर्यादा) से रहना। और जो तेरे कर्तव्य हों, उन्हें भले प्रकार पूरा करना। सबसे हिल मिलकर रहना। यह दे दो, वह लादो, अमूक वस्तु आज ही लूंगी, वा अभी लूंगी, शीघ्र मंगा दो, इत्यादि कभी भी किसी प्रकारका कुछ हठ मत करना, और न कभी अपने घरकी कोई बात बाहर किसीसे कहना। कहा भी है तुलसी पर घर जायकर, दुख न कहिये रोय। नाहक भरम गमायके, दुःख न बांटे कोय॥ क्योंकि इससे अपने घरका भेद (भरम) खुल जाता है, और घरमें कलह बढ़ता है, जिससे अपना चित्त सदैव व्याकुल रहता है
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________________ 4] ससुराल जाते समय CHECRECHECREOCHROCHEXSECREECTROSCIENCSEEXICS और लोगोंमें हंसी होती है। भोजनके समय जो कुछ भक्ष्य वस्तु तेरी थालीमें परोसी जाय उसे ही रुचिपूर्वक ग्रहण करना (जीम लेना) कभी कोई वस्तु किसीसे छिपाकर नहीं खाना, क्योंकि ऐसा करनेसे आचार व धर्म बिगडता है और घरमें परिपूर्णता नहीं होती। (9) बेटी! सबेरे सबसे पहले उठना और रात्रिको सबके पीछे सोया करना। घरके बासन-बर्तन सदैव मांजकर साफ चमकते हुए सुखाकर रखना, नित्य चूल्हेंकी राख निकालकर चूल्हा और चौका मिट्टीसे पोतना कि जिससे झूठन न रहने पावे और जीव जंतु उत्पन्न न हो पावे। घरको झाड़ बुहार कर सदा स्वच्छ रखना, घरके किसी काममें कभी आलस्य नहीं करना और न कभी घरका काम पूरा हुए बिना नहीं बाहर जाना। निष्प्रयोजन घरों घर डोलना अच्छा कहीं होता है, इसलिए जब घरके धन्देसे अवकाश मिले तो धर्म व नीतिके उत्तम ग्रंथ और प्राचीन सती महिला जैसे-सीता, द्रौपदी, अंजना, राजुल, मेना, मनोरमा आदिके चरित्रोंको पढ़ने में समय बिताना जिससे समय निकल जावे, व मनोरंजन हो आत्माके भाव भी पवित्र होवें। क्रियाकोष, रलकरण्ड श्रावकाचार, द्रव्यसंग्रह, अर्थप्रकाशिका, मोक्षमार्ग प्रकाशक आदिका स्वाध्याय करते रहना तथा नित्य प्रति सोते जागते समय पंचपरमेष्ठिका स्मरण किया करना, जिससे सर्व कार्य निर्विघ्नता पूर्वक होवे व सदैव चित्त भी प्रसन्न रहे। . (10) बेटी! घरके सब काम हर्षपूर्वक किया करना क्योंकि कहा है : अपने कारजके लिये, खरचत हैं सब दाम। जगत कहावत है भली, काम भलो नहीं चाम॥
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश CHOREOSECRECTOOSEXSECREDCREEXSEOCOREOCROR ससुरालके बच्चोंके यदी वे सोना चाहें तो भले प्रकार उढ़ौना बिछौना करके सुलाना। उनको सुलाते, झूलना झुलाते अथवा थपथपाते समय अच्छे अच्छे बालकोपयोगी गीत गाया करना। यदि वे जागते हों, तो उन्हें बहलानेके लिये घरके खेल खिलौने व अन्य वस्तुयें जिनसे कि बच्चोंको उत्तम शिक्षा मिल सके दिखाना, परंतु कभी भी बच्चोंको भूत प्रेतादिक झूठा भय दिखाकर मत डराना, क्योंकि इससे बच्चे डरपोक और कायर बन जाते हैं। (11-12) यह बच्चा हमेशा रोता ही रहता है यह बड़ा दंगा करनेवाला लडाकू है, इसकी नाकमेंसे लीट बहती है आंखोंमें कीचड़ भरा है, बार२ चौंक उठता है, इसके माथेमें खाड़ा है, यह गोदमें नहीं आता, यह जोर जोरसे चिल्लाता है। इत्यादि कठिन और घृणित शब्द किसी बच्चेको न कहना। न कभी किसी बच्चेको व्यर्थ धमकाना, न मारना, न उस पर चिल्लाना, किन्तु मीठे मीठे शब्दोंसे समझाकर उसका हठ छुडाना। क्योंकि प्रेमसे बच्चे तो क्या देव मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी वश हो जाते हैं। कहा भी हैं : मिष्ट वचन हैं औषधी, कटुक वचन हैं तीर। श्रवण द्वारा हो संचरे, साले सकल शरीर। (13) इसलिये निम्न प्रकारसे कार्य करना। सुन! अपना स्थान, भोजन, वस्त्र, आभूषण, स्वशरीर और बच्चे ये मैले रहनेसे लोकमें निंदा होती है, और अनेक प्रकारके रोग भी आकर घेर लेते हैं, क्योंकि स्वच्छता आरोग्यताकी जननी है। भोजनके पदार्थ बहुत सावधानीसे शोध बीनकर तैयार करना, क्योंकि भोजनके पदार्थोमें बहुतसे कीड़ी, मकोड़ी आदि जीव चढ़ जाते हैं, अथवा
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________________ ससुराल जाते समय EXSEOCEROSCOREOCOSEXMORCHESTROTECHKOSHOCTOR लट (सुन्डी, इल्ली) आदि जीव उत्पन्न हो जाते हैं, सो विना शोधे भोजन बनानेमें एक तो इम बिचारे अवाक् जीवोंकी हिंसा होती है दूरसे इन जीवोंका कलेवर तथा विषैले मलादिक पदार्थ पेटमें पहुंचकर रोगादि पैदा करके बहुत हानी पहुंचाते है, और कभी तो इनके प्राणों तक घातका हो जाता है। (14) बेटी! प्रातःकाल उठकर प्रथम ही घरको झाड़ बुहार तथा लीप पोतकर सामनेके मार्गमें स्वस्तिक (साथियां) निकालना, क्योंकि यह द्विजो (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य आदि उत्तम वर्णों) के घरोंका चिह्न है। यह चिह्न ऐसे स्थानमें बनाया जाय जिससे सर्वसाधारण लोगोके दृष्टिगोचर होता रहे और जिसे देखकर मुनि आदि सत्पात्र भिक्षाके लिये भी आ सके। (15) गृह-चैत्यालयकी सम्हाल भले प्रकार रखना और नित्य तीनों समय अवकाशानुसार श्री अर्हतदेवकी मूर्तिका दर्शन, स्तुति, पूजन व वंदन आदि भक्ति करना और स्वप्नमें भी कभी अन्य रागी द्वेषी कुदेवोंकी आराधना नहीं करना। क्योंकि इनके (कुदेवोंके) आराधनसे लौकिक कार्यकी तो सिद्धि होती ही नहीं और फलस्वरूप परलोकमें जन्म-मरणादि अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं। (16) बेटी! अपने माथेके बाल बिखरे मत करना किंतु इस प्रकार गूंथकर बांधना कि जिससे वे टूटकर इधर उधर भोजनादि पदार्थोमें न पड़े और तेरी गणना उच्च कुलांगनाओंमें की जावे। अपने पतिमें श्रद्धा रखकर नित्य प्रातःकाल स्नानांतर कर माथेमें कुमकुमकी टीकी करना। यह सौभाग्यवती स्त्रियोंका
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________________ [7 पुत्रीको माताका उपदेश ECTOCHROCHROXOSECRECTROCIRCOTECREOCHROCROCIEOS चिह्न है। प्रायः स्त्रियां ललाटमें केवल मोडल व अन्य वस्तुओं की बनी हुई टिकली रालसे चिपका लेती हैं सौ यह केवल उनका प्रमाद है। टीका कुमकुम (रोली) का ही मांगलीक माना गया है। यदि घरमें फुलवाडी हो और वह फूले, तो सांझ समय फूले हुवे फूल बीनकर उनका हार आदि भी गूंथ लिया करना, और झाडके नीचे शुद्ध वस्त्र इस प्रकार बांध दिया करना कि जिससे रात्रिको खिलकर झडनेवाले फूल पृथ्वी पर न पडने पावें, क्योंकि इसी प्रकारके पृथ्वी पर न गिरे हुवे शुद्ध प्राशुक व जीवादिसे रहित फूल ही श्रीजीकी पूजामें काम आ सकते हैं। (17) बेटी! तू सब वस्त्राभूषण उच्च कुंलांगणांओंके अनुसार ही पहिनना, कि जिससे दोनों कुलकी लाज रहे। आजकल प्रायः नवीन सभ्यतावाली उद्दण्डे स्त्रियां नकली (गिलट व मुलम्मेवाला) जेवर अशुद्ध रबर, कचकडा व लाख आदिकी चूड़िया छल्ला और महीन विदेशी या रेशमके अपवित्र ( पतले झिरझिरे) कपड़े पहिन कर रहती व बाहर आती जाती हैं, जिससे उनका सारा शरीर दिख पड़ता है, जो कि उनके पवित्र शीलरूपी भूषणके लिये बड़ा भारी दूषण है। सर्वोत्तम और शुद्ध वस्त्र खादीका ही होता है। उसे इच्छानुसार स्वदेशी शुद्ध रंगोंमें रंगा जा सकता है। यह याद रहे कि विदेशी वस्त्रोंके रंगनेमें खून चर्बीका उपयोग होता है, इसलिये विदेश कपडोंसे मोह कभी मत करना। (18) बेटी! तू बहुत आभूषण भी पहिननेकी तृष्णा मत करना किंतु सदैव सद्गुणरूपी भूषणोंसे अपने आपको भूषित रखनेकी पूर्ण चेष्टा अवश्य ही करते रहना। पतिसेवा करना स्त्रियोंका मुख्य धर्म है। इसलिये सदैव उमंगके साथ पतिकी सेवा करना आज्ञा पालन करना। कभी भी ऐसी कोई बात न करना कि जिससे पतिको कष्ट
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________________ 8] ससुराल जाते समय SOOSHOOSHOCS BOSS OSLO OSPOSTO CSECSECSECSHOUSES पहुँचे, व उनका चित्त दुखे। तू हर प्रकारसे पतिको प्रसन्न रखनेकी चेष्टा करते रहना, क्योंकि संसारमें यही तेरा सर्वस्व है। स्वप्नमें भी पति सिवाय अन्य पुरुषोंमें हास्यादि भण्ड वचनरूप व्यवहार न रखना, न किसीकी ओर कुदृष्टि डालना न कभी बुरे गीत गाना जो शीलधर्मके घातक हैं / तथा अपने से बड़े पुरुषको पिता, समवयस्कोंको भाई और लघुवयस्क युवा बालकादिको पुत्रवत् समझना। यही तेरा सच्चा आभूषण है।। (19) शाक, भाजी, चटनी, आचार, मुख्खा तथा अनेक भांतिका पकवान, मिष्टान आदि समयानुसार जो अपने घरसे लोगोंको रुचिकर प्रकृतिके अनुकूल तथा धर्म व कुलाचारके अविरुद्ध हों वे मर्यादापूर्वक तैयार करना, क्योंकि मर्यादाके बाहिर इन वस्तुओंमें त्रस जीवोंकी उत्पत्ति हो जाती है, जिससे वे अभक्ष्य हो जाते हैं। पदार्थोकी मर्यादा इस प्रकार हैं कि “आटा व हल्दी मिर्च नमक आदि पिसा हुआ मसाला शीतऋतुमें 7 दिन, उष्णऋतुमें 5 दिन और वर्षाऋतु में 3 दिन रहता है।"आचार, मुरब्बा, मिठाई, पूरी, पकवान जिसमें जलाश कम हो 24 घण्टे, वडी, पापड, सेमई आदि जिस दिन बनावे उसी दिन, और यदि घी, तेल, आदिमें सेक रक्खी होवें तो दूसरे दिन तक, रोटी सबेरेकी शाम तक, दाल भात शाकादि दोपहर मात्र तुरंतका छना हुआ पानी दो घडी, लवांगादिसे प्रासुक किया हुआ दोपहर और गरम किया हुआ पानी, 8 पहर काम आ सकता है, पश्चात् मर्यादा बाहर समझना। पानी सदैव गाढे और स्वच्छ सफेद खादीके दौहरे छन्नेसे छानकर जीवानी उसी जलाशयमें भेजना। रसोईघर, वरन्डा, चक्की, उखल, भोजनशाला, अनाज आदि शोधने बीनने छानने व मसाला आदि पीसनेकी जगह शयनागार
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश DOGSBOSSESSO SEX SEX SEX SEX SEX SEX SEX SEXOS व बैठकखाने में ऊपर चंदोबा रखना। तात्पर्य जैसी धार्मिक गृहक्रिया तूने यहां देखी सीखी है, उसी प्रकार यदि वहां कुछ त्रुटि दीखे तो चतुराईसे ठीक करना और रसोई बहुत चतुराईसे पाकशास्त्रकी विधि प्रमाण करना व ऋतु व प्रकृतिके अनुसार उसमें फेरफार करते रहना। कच्ची व खरी वस्तु बेस्वाद होनेके सिवाय रोगोत्पादक भी होती है। यदि घरमें रसोईदारिन हो तो तू उसके साथ भोजनकी सम्हाल चौकसी रखना क्योंकि समस्त कुटुम्बका रक्षण व आरोग्यता भोजनपर ही निर्भर है। दोपहरको अवकाश मिलनेपर घरके फटे पुराने वस्त्रोंको सुधारना, अथवा बच्चोंकी झगुलियां, टोपी, कांचली, (अंगिया चोली), ओढ़नी, घाघरा आदि सुधारना व नवीन सीना। बेल बूटादिद काढ़ना, गुलूबंद तारण, वेष्टन आदि गूंथना तथा रहटियोंसे सूत कातना क्योंकि स्त्रियोंका नियमपूर्वक निकम्मा रहना ठीक नहीं है। निकम्मा रहनेसे मन इधर उधर व्यर्थ भटकने लगता है। (20) घरके छोटे बच्चोंको अवकाश पाकर अपने पास बिठलाना और छोटी२ चित्त प्रसन्न करनेवाली कथायें तथा प्राचीन वीर पुरुषों और सती स्त्रियोंके आदर्श चरित्र सुनाया करना। परंतु भय और शंका उत्पन्न करनेवाली भूत प्रेतादिकी कथायें तथा दुष्ट नीच पुरुषों द्वारा संग्रहीत विषयोत्पादक कुकथायें कभी नहीं सुनाना, न आप सुनना, क्योंकि इन विकथाओंसे बालकोंके तथा अपने चित्त पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक कथाके अंतमें उसका उत्तम तात्पर्य निकाल कर अवश्य समझाना। जो कथा सुनानेसे किसीको बुरी लगे ऐसी कथा व पहेली तथा कहावतें नहीं कहना, और न कभी कुतर्क रूपसे किसी पर कुछ कटाक्ष करके बोलना।
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________________ 10] ससुराल जाते समय RECSECSECRECOREOSECSEOCSEXSEXSEOCHECSEOCE (21) ब्याहकार्य लोकमें आजकल एक वजनदार बेडी समझी जाने लगी है। क्योंकि कुपढ़ अज्ञान स्त्रियां ससुराल में जाकर ससुरालवालोको अपने दुष्ट स्वभावका परिचय देकर नाना भांतिके नाच नचाती और निरंतर कलह करके घरमें फूटका अंकुरारोपण करती तथा एक ही घरमें कई चूल्हे कर डालती हैं। गृहस्थोंके घरों में कलह व फूटका होना ही उनके नाशका कारण हो जाता है, इसीसे अनेक घराने नष्ट होते देखे गये हैं। इसलिये तू ऐसा वर्ताव करना कि जिससे लोकमें तेरी प्रसंसा हो और स्त्री जाति परसे यह कलह उठ जावे, तथा ब्याहको मनुष्य सांसारिक सुखका साधन समझने लगे। यथार्थमें देखा जाय तो जिस घरमें सती पतिव्रता सुआचरणी स्त्री रहती है, वहां ही लक्ष्मीका वास होता है, और वह घर स्वर्गके तुल्य होता है, इसीसे लोग स्त्रीको लक्ष्मी कहते हैं। और वास्तवमें है भी ऐसा ही कुलान विदुषी सदाचारिणी चतुर स्त्री ही लक्ष्मी है न कि कोई जड वस्तु। (22) लग्न ( ब्याह) के समय जो वचन तूने अपने पतिको दिये हैं, उनको तू सदैव स्मरण रखना, जैसे (1) मम गुरोस्तथा कुटुबीजनानां यथायोग्य विनयसुश्रूषा करणीया ( मेरे गुरु तथा कुटुम्बीजनोंकी यथायोग्य विनयसुश्रूषा करना) (2) ममज्ञान लोपनीया ( मेरी आज्ञा उल्लंघन नहीं करना)(३) कठोर वाक्यं न वक्तव्यम्( कटु वचन न बोलना)(४) मम सत्पात्रादिजनानां गृहागते सति आहारादिदाने कलुषितमनो न कार्यः ( मेरे हितु, संबंधी, मित्र, बांधवादि सत्पात्र दिगम्बर जैन तथा उदासीन संयमी साधु श्रावक वा अन्य साधर्मी आदि जनोंके मेरे घर आने पर आहार आदि दान देने में कलुषित मन नहीं करना)(५) अभिभावकस्य आज्ञा विना परगृहे न गन्तव्यम् ( अपने गुरुजनों तथा संरक्षकोंकी आज्ञा विना किसी
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________________ [11 पुत्रीको माताका उपदेश RECORRECTROCIECTECTROCHECRECIPECIROCHECRECE दूसरेके घर नहीं जाना।(६) बहुजनसंकीर्णस्थाने कुत्सितघमें तथा व्यसनासक्तजनानां गृहे न गन्तव्यम् ( बहुत आदमियोंकी भीड़ जहां हो ऐसे संकुचित स्थानमें खोटे धर्मवालोके स्थानमें तथा द्यूतादि सप्त व्यसनोंमें आसक्त पुरुषोंके स्थानमें नहीं जाना।)(७) गुप्तवार्ता न रक्षणीया तथा मम गुप्तवार्ता अन्याग्रे न कथनीया (मुझसे कोई बात न छिपाना तथा मेरी व मेरे घरकी गुप्त वार्ता किसीसे न करना) ये सात वचन देने पर ही तुझे तेरे पतिने बामभागमें ग्रहण किया था। सो इनका सदैव पालन करते रहना (23) बेटी लग्नका समय (मुहूर्त) न निकल जाय, इसी चड़बड़से लोग ज्यों त्यों कर विवाहकी रीति व रश्म पूरी करके गठजोडादि सप्तपदी कर देते हैं, और गृहस्थाचार्यके द्वारा पड़े हुए पवित्र मंत्र व पतिको पत्नीकी ओरसे वचन और पत्नीको पतिकी ओरसे शिक्षा व वचनोंकी समझने व समझानेकी फिकर नहीं रखते हैं। इसलिये मैं उक्त सप्त वाक्योके सिवाय और भी कुछ उपयोगी शिक्षा खुलासा रीति पर कहती हूँ क्योंकि यह तेरी भलाईका कारण है, सो तू ध्यानसे सूनपति कहता है - (क) ए स्त्री! तू मुझको अति आदरसे वरती हैं। तू मेरे साथ वृद्ध होवेगी। तुझे सौभाग्य देनेके लिये मैं तेरा कर ग्रहण करता हूँ। देव (कर्म) ने मेरे घर तथा वंशकी रक्षाके लिये ही तुझे मेरे आधीन किया है। (ख) है स्त्री! अबतक तू अपने मातापितादिको ही प्रेमकी दृष्टि से देखती थी, परंतु आजसे तू मेरे मातापितादि कुटुम्बीजनोंसे प्रेम जोड़। क्योंकि अब तुझे उन्हीके निकट अधिकतर रहना है।
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________________ 12] ससुराल जाते समय BSBSBUSBUSBUSBUSBUSBUSBUSBOCSECSECSENIOS (ग) हे स्त्री! आजसे मेरा सम्बन्ध तुझसे हुआ। जिस प्रकार चंद्रमाकी चांदनी, सूर्यका रोहिणी तथा दीपकका प्रकाशसे संबंध है, उसी प्रकार तू भी आजसे मेरी अर्धाङ्गिनी हुई। इसलिये हम तुम दोनों अपने२ वचनोंका निर्वाह करते हुए, गृहस्थ-धर्मका पालन करके उत्तम संतान प्राप्त करें। (घ) हे स्त्री! हम दोनोंको परस्पर निष्कपट प्रेम रखना चाहिए और परस्पर हितकारी तथा सम्मतिपूर्वक वचन कहना चाहिये। दोनोंको हिलमिलकर रहना चाहिये। क्योंकि हम दोनोंका जीवनपर्यंत साथ रहना है और इसीमें हम दोनोंका हित व सुख है। (छ) हे स्त्री! आजसे तू हमारे कुलमें सम्मिलित हुई इसलिये तू मेरे वाम भागमें आ और अपने मनको अपनी प्रतिज्ञाओं पर दृढ़ कर। (24) बेटी! तत्पश्चात् जब सप्तपदी (सात भांवर) होती है तब वर (पति) प्रत्येक पदपर पत्नीसे कहता है, उसका आशय तू सुन। पति कहता है (क) हे स्त्री! आज तू मेरे सात एक पद ( प्रदक्षिणा) चली, जिससे तू मेरी सहायक समझी जाती है, इसलिये तू मेरे धर्म अर्थ कामादि सम्पूर्ण कार्यों में सहायता करना, और शुद्ध भोजनादिसे मेरू पूर्ति करते रहना, देख, शुद्ध भोजन बनानेसे एक यह भी लाभ होगा कि यदि हमारे पुण्योदयसे कोई मुनि आर्जिका तथा संयमी व्रती श्रावकादि अतिथियोंका समागम हो जाया करेगा, तो उनका निरन्तराय अनुदृष्ट भोजन दान दे सकेंगे। और कदाचित न भी मिले तो भी शुद्ध भोजन बननेसे द्वारा प्रेक्षण करने और अतिथिलाभकी
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [13 ECTECTESCSEXSEXSEXSEXOTEOUSESOTESCOTESCUESCRecs भावना रखनेसे हमको पुण्य लाभ होगा। क्योंकि सरस व निरस किंतु शुद्ध प्रासुक तैयार भोजन ही अतिथियोंके योग्य होता है। (ख) हे स्त्री! अब तू मेरे साथ दुसरा पद चली। इससे स्नेहकी वृद्धि हुई। इसी प्रकार अपनी प्रीति द्वितीयाके चंद्र समान बढ़ती जावे और तुजसे मेरा बल भी बढ़ता रहे। (ग) हे स्त्री! इस तीसरे पदसे तू मेरी सुमति और सम्पत्तिकी वृद्धि करनेवाली हो। (घ) हे स्त्री! तू इस चौथे पदसे मेरे मनवांछित सुखकी वृद्धि करनेवाली हो। (ड) हे स्त्री! तू इस पांचवे पदसे मुझे संततिकी वृद्धि करनेवाली हो। (च) हे स्त्री! तू छठवें पदसे मुझे ऋतुओंके समान क्रीडारूप और सन्मार्गमें स्थिर रखनेवाली हो। (छ) हे स्त्री! यह सातवीं पद मेरे हृदयमें तेरी ओरसे बढ़ प्रीतिका देनेवाला हो, और अपना दोनों गृहस्थाश्रममें सलाह (ऐक्य) से रहें। (25) बेटी इस प्रकार सप्तपदीका रहस्य कहकर पति और भी कुछ विशेष सूचना करता है, सो सुनपति कहता है (क) हे स्त्री! तू सदैव मेरे सद्विचारों में सम्मिलित रहना। समस्त जीवमात्रको समान रितिसे देखना। ऐसी कोई बात जिससे मुझे व तुझे दुःख उत्पन्न होवे, नहीं करना, और न विना मेरी आज्ञाके कोई भी कार्य अपने मनोनुकूल करना इसमें तेरा व हमारा कल्याण हैं। यथोक्त मदीयचित्तानुगतं च चित्तं सदा ममाज्ञापरिपालन च। पतिव्रताधर्मपरायणं त्वं, कुर्यात् सदा सर्वमिदं प्रयत्नम्॥
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________________ 14] ससुराल जाते समय CROCHEOCHECREOCEROCIEOCSEOCEACHERCREACHERCEOXX अर्थात् - सदैव मेरी इच्छानुसार चलने और मेरी आज्ञाओंको पालन करनेका ध्यान रखना, और जिस प्रकारसे पतिव्रता धर्म पालन हो ऐसा प्रयत्न करते रहना। (ख) हे स्त्री! मेरे द्वारा रक्षित जो पशुपक्षी तथा आश्रितजन हों उनका भलेप्रकार पालन करना, उन्हें यथायोग्य संतुष्ट रखना, तू भी संतोषवृत्तिसे रहना और कभी भी अपने चित्तको चंचल नहीं होने देना। (ग) अपना सुख व दुःख जो कुछ भी, हो एकान्तमें मुझसे ही कहना, और घरकी बात बहार कभी किसी अन्य स्त्री पुरुषोंको नहीं कहना।। (घ) सदैव सासु ससुर, देवर, जेठ, देवरानी जिठाना, ननंद व बाल बच्चोंसे बिना किसी प्रकारके द्वेष भावसे वर्ताव करना, जिससे तेरी कीर्ति व यश हो, और घरमें फूट न पडने पावें। (ङ) हे स्त्री! तू मेरे कलका भूषण बनकर मेरे तन, धन तथा जनकी पूरी२ सम्हाल रखना। ये शिक्षाएं (जो आज मैं तुझे दे रहा हूं) तू कभी मत भूलना। इसीमें तेरा कल्याण व श्रेय है और इसीसे तू सुखको व यशको प्राप्त होगी। (26) बेटी! इस प्रकार लग्न समय तुझे तेरे पति द्वारा शिक्षाएं प्राप्त हुई है। उनको तू भले प्रकार पालन करना, जिससे तुझे सुख मिले, और दोनों कुल वृद्धि तथा यशको प्राप्त होकर संसारमें आदर्शरूप हों। (27) बेटी! तू बडोंकी आज्ञा पालन करना और छोटों पर प्रेम रखना। कहा है गुरुजनकी भक्ति सदा, अरु, छोटों पर प्रेम। समवय लख आदर उचित, करो निवाहो नेम॥ / किसीसे ईर्षा नहीं करना। नोंकरों पर माताके समान क्षमा और प्रेम रखना। अपने पिता अथवा ससुरको संपत्तिका मान
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [15 EXSEXSEXSEXSEXSEXSEXSEXSEXSEXSEOCEECRUs नहीं करना और न उनकी गरीबीमें कभी घबराना। उत्तम पुरुष सम्पत्ति विपत्तिमें सदा एक ही भांति समुद्रके समान गम्भीर रहते हैं वे कभी मर्यादा नहीं छोड़ते। प्यारी बेटी! एक बात और स्मरण रखने लायक है कि____यदि कदाचित् कोई स्त्री चाहे वह तुझसे छोटी हो या बडी परंतु यदि वह अशुभोदयसे विधवा हो गई हो और तेरे घरकी हो या वहां रहती हो, तो उससे बहुत प्रेम व आदर भावसे वर्ताव करना, उसके खानपानादिमें किसी प्रकारकी त्रुटि न करना, न कभी उसे घृणाकी दृष्टिसे देखना। क्योंकि वह घृणाकी पात्र नहीं किन्तु करूणाकी पात्र है। देखो, उनसे घृणा करके तिरस्कार व्यवहार करने या खानपान आदिमें त्रुटि करने या धर्मसाधनामें बाधक होनेसे कभीर बहुत बुरा परिणाम आजाता हैं। वे अत्यंत यातनाएं या तिरस्कारके कारण या अन्य दुष्टा स्त्री पुरुषोंके द्वारा उत्तेजन मिलनेसे अपना सन्मार्ग छोड़ बैठती और केवल अपने दोनों कुलोंकी ही नहीं किंतु धर्म व समाजको भी कलंकित कर बैठती हैं। उनकी प्रलोभन देनेवाले दुष्ट जन पहिले तो मीठी२ बातों द्वारा प्रेम दर्शाते हैं। और पश्चात् जब वे किसी प्रकार उनके जालमें फँस जाती है, तब पीछे उनका प्रथम धर्म और पश्चात् धन हरण करके निराधार अवस्थामें छोड़ देते हैं, जिससे वे बेचारी वेश्यावृत्ति तक करके उदरपूर्ति नहीं कर सकती और उभयलोकमें दुःख पाती हैं। बेटी! ऐसी नीच प्रकृत्ति नरनारियोंकी संसारमें कभी नहीं हैं वे उजले रूप रंग स्वांगधारी बगुलावत् आचरण करते हैं। उनको पहिचान जरा कठिनतासे होती है, इसलिये ऐसे कुस्थलोंसे नारी जातिकी रक्षा करना हम लोगोंका कर्त्तव्य है।
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________________ 16] ससुराल जाते समय && &CTESCORRECTECORRECTROCSROCEXSECRECHERCIENCE यदि हम लोगोंका व्यवहार उनके साथ प्रेमपूर्ण रहेगा, हम उनको धर्मसाधनाका सुयोग्य अवसर देगी व घृणाकी दृष्टिसे न देखकर उनका यथोचित सत्कार करती रहेगी, तो उन्हें किन्हीं दुष्ट नर-नारियोंसे मिलनेका समय ही न आवेगा, वे अपने साथ प्रेमपूर्ण वर्ताव रक्खेंगी और अपने प्रत्येक कार्यमें सहानुभूति रक्खेंगी। तथा अपना सती साध्वी जीवन व्यतीत करके अपने उभयलोक तो सुधारेगी ही किन्तु अपने पवित्र आचरणसे स्वधर्म व समाजका भी मुख उज्वल रक्खेंगी। ____ जीवको संसारमें कर्म ही सुख व दुःखका हेतु हैं। यह कोई नहीं जानता कि कब किसको किस स्थलपर किस पुण्य पापकर्मका उदय आ जायगा। और उस समय उसकी क्या दशा होगी। तब इस समय जो दूसरोंको हंसता, घृणाकी दृष्टिसे देखता या अधिकार व अवसर पाकर उसे यातनाएं देता है, पीछे उसकी भी उक्त दशा होती है। इसलिए बेटी! कभी किसीको तुच्छ न समझना चाहिए। न निर्बल समझकर दुःख देना चाहिए। निर्बलोंकी हाय कभीर बहुत अधिक दुःखदायक होती है कहा है निर्बलको न सताइये, जाकी मोटी हाय। मुए ढोरके चामसों, लोह भस्म हो जाय॥ इसलिए सदैव उनसे योग्य व्यवहार करना तथा चतुराईसे उनको उनके योग्य कर्तव्य बताते रहना। यदि वे पढ़ी हों तौ उत्तमोत्तम नीति व धर्मकी पुस्तकें, सती साध्वी ऐतिहासिक या वर्तमान महिलाओंके जीवन चरित्र पढ़नेको देना, यदि पढ़ी न हों और बाल या तरुण वयवाली हों तो बम्बई, ईन्दौर, आरा आदिके श्राविकाश्रमोमें भिजवानेकी चेष्टा करना। यदि अधिक वयकी
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [17 &XSECREECHOCHOCHECRECROCHOREOCSEOCEDURES हों या अन्यान्य कारणोंसे न जा सकें तो घर पर ही किसी सुयोग्य वृद्ध सदाचारिणी महिला द्वारा या अपने ही घरके बच्चोंके द्वारा और चतुराईसे तू आप ही उन्हें पढ़ानेकी चेष्टा करना कि, जिससे वे अपना समय जो गृहकार्यों में बचता हैं व जिसमें वहांकी संगति व गप्पाष्टकें होती हैं वे शास्त्रावलोकनमें लगा सके। तथा जब तू अवकाश पाकर अपना स्वाध्याय करने बैठे तो उनको भी बुला लिया कर कि जिसे सुनकर वे संसारके विषयोंसे विरक्त भावको दृढ़ करती रहें। और सुन, उनके साम्हने कोई ऐसी हँसी आदिके व्यवहार व चर्चाएं कभी न करना कि जिससे उनको संसारिक विषयोंकी ओर उत्तेजना मिले। क्योंकि यदि इन बेचारी विधवाओंको योग्य शिक्षा और सत्संगति मिलती रहे तो ये कभी भी अपने कर्त्तव्य व आचरणसे पीछे न पड़े। __इनको सादे मोटे सफेद या कत्थई आदि रंगके वस्त्र पहिननेमें, शुद्ध सादा हितमित भोजन खानेमें, उचित व्यवहार, घरमें सत्संग और धर्मशिक्षा मिले व विरुद्ध संगति व स्वतंत्र आहार विहार और उत्तेजक वस्त्राभूषण ( जो एक ब्रह्मचारिणी या ब्रह्मचारीको अनुसेव्य हैं) वर्तावमें न आवे तो ये भारतीय नारियां अपने आदर्शको यावजीव कायम रख सकती हैं। (28) धर्म, नीति व सत्य हितोपदेशकी पुस्तकोंका स्वाध्याय तू अवश्य ही अवकाशानुसार करते रहना। परंतु दंतकथाओं व श्रृङ्गाररससे भरी हुई पुस्तकोंको कभी हाथ भी नहीं लगाना और न नाटक आदि मनकों बिगाड़नेवाले खेलोंको कभी देखने सुननेकी इच्छा रखना। परंतु हां! ईश्वरभक्ति व नीति तथा धर्मके गीतोंको गाने तथा सुनने में हानि नहीं हैं।
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________________ 18] ससुराल जाते समय CHECSECREECEOCHROCHECORRECTROCIRECIRECERCIENCE इसलिये जब कभी जो चाहे तभी ऐसे भजन गान सुरतालसे गाया व जोड़ा करना। (29) बेटी! अपने पति (घर) को आमदनी देखकर उसी प्रमाण खर्च करना। आयसे अधिक व्यय करनेसे पीछे बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। कहा है अपनी पहुंच विचार कर, कर्तव करिये दौर। उतने पांव पसारिये, जितनी लांबी सौर // बेटी! प्रायः पुरुषोंकी बारीक दृष्टि नहीं रहती है। इसलिये घरके कामों में मितव्ययता रखना और बचत करना यह स्त्रियोंका ही काम हैं और यह लाभदायक भी है। (30) घरमें नोकर चाकर प्रायः हल्की जातिके व कम वेतनवाले भी होते हैं। सो जब ये लोग बाजारसे कोई वस्तु लावें, तो तू कभीर उन वस्तुओंकी तौल माप व तपास भी कर लिया करना ताकि ये लोग चोरीमें पकड़े जाने और ठगाई आदिसे बचे रहें, तथा और भी किसी प्रकारकी ऐसी कोई बुराई न सीखने पावें। और देख! नौकरोंसे बारर तकरार नहीं करना और न उन्हें अपने मुंह लगाना। (31) नोकर चाकरोंसे ऐसा वर्ताव रखना, कि जिससे वे तुम्हें गम्भीर दंपति समझते रहें। उनके मन में तुम्हारी ओरसे मान रहें और देख! व्यय तथा आयका हिसाब भी बराबर रखते रहना। इससे ही तू बचत कर सकेंगी और अपव्ययसे बचेगी। तात्पर्य कि तू सब प्रकारसे गृहिणी शब्दको सार्थक करना। (32) बेटी! हरएक वस्तुका बाजार भाव प्रायः कम ज्यादा होता रहता हैं, इसलिये अवसर देखकर तू घरमें अनाज गुड़ घी
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [19 ECREOCRACREACHEOCHEOCHOCKEOCSOCIEOCHOCHECSEOCs आदि पदार्थ भी संग्रह कर रखा करना, तथा योग्य समयमें धनका व्यय भी यथायोग्य करके अपनी उदारवृत्तिका परिचय देते रहना। परंतु “अकाले दिवाली"अर्थात् व्यर्थ व्यय कभी नहीं करना। (33) बेटी! "कोड़ीर खजाना और बून्दर दहाना" भर जाता है, ऐसा करके गरीब भी पैसा इकट्ठा कर सकता है, इसलिये तू अपने घरकी आय व्ययका विचार करके समयानुसार कुछ कुछ बचत भी करते रहना। (34) बेटी! तू निरन्तर अपनी शक्ति प्रमाण आहार, औषधि शास्त्र और अभय ये चार प्रकारके दान भी करते रहना। धर्मायतनोंमें सत्पात्रादिकोंमें भक्ति और दीन-हीन पुरुषोंमें करुणा भाव रखना, क्योंकि हाथका दिया ही साथ जाता है। इसलिये इसमें संकोच न करना अर्थात् शक्ति नहीं छुपाना। मनुष्यको अपनी आयका चतुर्थांश विपत्तिकाल व वृद्धावस्थाके लिये और चतुर्थांश लग्नादि व्यवहारकार्योंके लिये अवश्य ही संग्रह रखना चाहिये, और शेषांश भोजन वस्त्रादिमें व्यय करना चाहिये। परंतु निम्न वाक्य याद रखना कि नीति न मीत गलित भये, सम्पति धरिये जोर। खाये खर्चे (दानसे) जो बचे, तो जोरिये करीर॥ अर्थात् भूखे मरकर या व्यवहार बिगाड़कर जोडना भी अच्छा नहीं होता। (35) बेटी! तेरे घरमें जो सहव्यवहार व उत्तम रीति नीति कुलपरंपरासे चली आती हो, उसे एकदम बिना समझें नहीं छोड़ देना, किंतु श्रद्धा सहित पालन करना और जो व्रत-नियम स्त्रियोंके लिये आवश्यक हों उन्हें समझकर बराबर करते रहना,
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________________ 20] ससुराल जाते समय ECRECSEOCERCOSECSEOCERCHOICSECRECSEXSEXSECR क्योंकि वर्तमान कालमें ईश्वर ( परमात्मा) की प्राप्तिका साक्षात् द्वार तो नहीं है और न स्त्रियोंको उसी पर्यायमें कभी मोक्ष होता है इसलिये परम्परा उसका द्वार केवल भक्तिमार्ग ही है। (36) बेटी कभी भी शांति, दया, क्षमा, शील, संतोष, विनय, सदाचार व भक्तिको नहीं भूलना और सदा उदार वृत्ति रखना, रीस करके नहीं बैठना, न निकम्मी बैठना और न कभी किसीसे कुछ मांगना व क्रोधके आवेशमें आकर कभी कटु वचन भी मत बोलना। हठ नहीं करना, छुपकर चोरीसे नहीं खाना और अकेली कभी कहीं मत जाना। परपुरुषके साथ कभी मत हसना, उससे एकांतमें बात नहीं करना। यह परपुरुषों अर्थात् समधी ( वेवाई) नंदोई देवर बहनोई आदिसे हसी करने व होली खेलनेकी नीच प्रथा पापी व्यभिचारी जनोंसे चलाई व स्वीकार की है। सो तू इसे स्वीकार मत करना। यह शीलव्रतको घातनेवाली है, ऐसा स्वछन्द वर्ताव दुःखदायी होता है। कहा है"महावृष्टि चलि फूट कयारी जिमी स्वतंत्र है बिगरहिं नारी।" तात्पर्य स्त्रियोंके बालापनमें माता-पिताके, तरुणावस्था और वृद्धावस्थामें पतिके और यदि अभाग्यवश पतिवियोग हो जाय तो पुत्रोंके आधीन रहना चाहिये। (37) बेटी! मैं फिरसे तुझे कहती हूँ, कि संसारमें स्त्रियोंको उनका पति ही देव है, और इसी पतिरूपी देव (ईश्वर) की कृपासे स्त्रियोंको पुत्र पौत्रादि विभव व इहलोक और परलोकमें सुख और यशकी प्राप्ति होती है। जिस घरमें पत्नी, पतिकी आज्ञाकारिणी व पतिव्रता है, और दम्पत्तिमें प्रीति व सलाह हैं वह घर पर्यायमें स्वर्ग-तुल्य है।
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________________ [21 पुत्रीको माताका उपदेश emeCREECSEXCSEXSEXSEOCHECREOCTOCHECRECE यस्य पुत्रो वशे भुत्यो, भार्या यस्य तथैव च। अभावे सति संतोषः, स्वर्गस्थोऽसो महीतले॥ अर्थात् जिसका पुत्र, भुत्य और स्त्री वशमें हो तथा निर्धनतामें संतोष हो उसे वहीं स्वर्ग है। इसलिये तू अपना तन, मन और धन अपने पतिको अर्पण कर देना, और पतिसे विमुख स्वप्नमें भी रहना। (38) बेटी! बहुतसी स्त्रियां पतिको वश करनेके लिये व सन्तानकी इच्छासे जोगी जागाड़ा गुनियां, जोषी, भेषी आदिको सेवा करने लगती हैं, और उन्हें अपना धन देती है। यहां तक कि बहुतसी स्त्रियां उनके गंडा फूंदरा, तावीज आदि बनवाने तथा झाडा फूंकी करानेके लिये एकांतमें अकेली अपने ही घरमें या किसी देवी देवताके स्थानोमें व उनके स्थानों पर जाकर मिलती और उनके फंदेमें फंसकर बलात्कार अपना शीलाभरण गुमा बैठती हैं व कोईर देवी, दिहाडी यक्ष, यक्षणि, भूत, प्रेत, भौंरो, भवानी, हनुमान, चंडी, मुंडी, सत्ती पीर, पैगंबर, ग्रहादिकी पूजा करती है, व इन्हें मनानेके लिये समय, कुसमय, ठोर, कुठौर अकेली जाती हैं। वहांपर भी ये दुष्ट पुरुषों द्वारा सताई जाकर अपना शील और द्रव्य दोनों खो आती हैं। क्योंकि प्रायः ऐसे स्थानोंमें चोर और व्यभिचारी पुरुष प्रगट या लुके छिपे रहते हैं। जो समय पाकर छक्का पौ कर डालते हैं। बेटी! इसमें इष्टसिद्धि कुछ नहीं होती है, केवल धन और धर्म जाता है। यदि इन जोगी जांगडोंमें पुरुष वशीकरण और सन्तानोत्पादन शक्ति होती तो घर बैठे ही पूजते, घर घर मारे मारे नहीं फिरते। देवी देवतामें यह शक्ति होती तो वंध्याको, कुंवारीको और सदाचारिणी विधवाको भी पुत्र हो जाता। सो
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________________ 22] ससुराल जाते समय SUOSICIEUSEO SEXSHOOSEO SEOSEOKSESBO OSBOCITOCOS ऐसा न कभी देखा हैं और न सुना है ये सब केवल झूठ पाखण्ड हैं। तू भूलकर किसीके हजार बहकानेसे भी इनके फेरेमें न आना। कर्मकी गती कोई टाल नहीं सकता है। पतिवशकरणका मंत्र "पतिकी सेवा" हैं। और यही (यदि शुभ उदय हो तो) सन्तानोत्पत्तिका तावीज है। इसलिये मेरी प्यारी बेटी! तू सब व्यर्थ झगड़ोंको छोड़कर अपने पतिदेवकी सेवा ही सच्चे मनसे करना, इसीमें तेरा कल्याण है।। (39) बेटी! यदि किसी समय तेरा पति व गुरुजन तुझे कटुक वचन कहें पति ताडन भी करे तो तू मनमें क्रोध व खेद नहीं करना, न पतिका दोष दिखाना किन्तु अपनी भूल व दोष देखना। "यह कटु वचन व ताडन मेरे पतिने मुझे किस कारणसे किया है।" उसपर विचार कर पुन: उन दोषो व कारणोंको नहीं होने देना जिससे कि पुनः ताडना मिलनेका अवसर न आ सके। वह ताडन अपनी भलाईके ही लिये समझना। मनुष्य प्रायः पराये दोष देखनेमें ही अपना अमूल्य समय खो देते हैं सो यदि वह समय अपने ही दोष देखनेमें व उनका निराकरण करने में बिताया जाय तो कितना अच्छा हो! (40) बेटी! तेरा पति उत्तम कुलीन, सुन्दर, रूपवान, देवतुल्य, सौम्यमूर्ति, सदाचारी, सुशील, पुरुषार्थी और सज्जन पुरुष है, सो प्रथम तो तुझे ऐसा कुअवसर ही नहीं मिलेगा जिससे कि तुझे तेरे पतिके संबंधमें व्यसनादि सेवन करनेका समाचार सुन पड़े। और (दैव न करे कि) किसी प्रकार तेरे पूर्व अशुभ कर्मके उदयसे तेरे पतिमें ऐसा ही कोई दोष कदाचित् उत्पन्न हो जाय, या तुझे उनके प्रति ऐसी शंका उत्पन्न हो जाय, तो तू उनसे घृणा द्वेष, क्रोध व मानादि नहीं करना,
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [23 40638063CSECSOCSO CSDD CSDD CSDD CSDD CSDD CSDD CSDDOS क्योंकि तू उनसे जितना द्वेष व घृणादि करेगी वे तुझसे उतने ही दूर होते चले जायगे और व्यसनोंमें फसते जायगे। "देख कभी गरम लोहा गरम लोहेसे नहीं कटता हैं, किन्तु ठण्डेसे ही कटता है" ऐसा जानकर तू क्षमा व शांति धारण करना तथा उस अवसरमें पहिलेसे भी अधिक प्रेम बढ़ाना ताकि उन्हें तेरी ओरसे शंका न होने पावे, और सुअवसर देखकर मृदु हास्य वचनों में तू उनके वे वाक्य जो उन्होंने तेरे मांगनेपर तेरा पाणिग्रहण करनेके समय दिये थे, स्मरण करा दिया करना बस यही उनको सुमार्गमें लानेका सच्चा उपाय है। परंतु बेटी! मैं तुझे निश्चयपूर्वक कहती हूँ कि जो स्त्रियाँ अपने पतिकी तन मनसे सेवा करती और अन्तःकरणसे उनपर सच्चा प्रेम रखती हैं। तो पति भी उन्हें प्राणेश्वरी देवी करके हृदयस्थ कर लेते हैं। देख सीता सती पतिव्रता थी तो रामचंद्र भी स्त्रीव्रता थे। जब सीता हरी गई तो उसके वियोगसे पागल हो गये थे। तू यह न जान कि रामने सीताको वनमें छोड़ा था, और अग्नि प्रवेश कराया था, उससे उनका सीतापर कुछ प्रेम कम हो गया था। नहीं बेटी, वे राजा थे, इसलिये उनको प्रजाके संदेह निवारणार्थ सीतापर अपने प्राणोंसे भी अधिक प्रेम करते हुए और उन्हें सती जानते हुए भी वनवास और अग्निप्रवेश लाचार हो करना पड़ा था। पवनञ्जय, सुखानंद, जयकुमार आदि बहुत महापुरुषोंके चरित्र पुराणोंमें भरे पडे है, जिनसे विदित होता है कि पुरुष भी अपनी सती सुशीला स्त्रियोंको देवी करके मानते हैं। यदि स्त्री चाहे, तो अपने पतिको अपनी सेवा तथा प्रेमसे सुमार्गी और द्वेष कलह इत्यादिसे कुमार्गी बना सकती हैं। सो हे मेरी दुलारी बेटी! तू उन्हें प्राणेश्वर देव करके ही प्रेम भक्ति व सेवा करना।
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________________ 24] ससुराल जाते समय &PCREACHERCHOICROCHEOCHOCHOCIENCEOCHOCIENCRECS (41) बेटी! जब कभी तुझे बहुत खेद पीडा व रोगादिक को वेदना, अथवा अन्य कुछ भी दैहिक व्यथा उत्पन्न हो तो तू अपने धैर्य व धर्मसे नहीं डिगना, किन्तु सीता द्रौपदी, चेलना, मनोरमा, मेना, रयनमंजूषा आदि महासतियोंके चरित्रको स्मरण करना अथवा नर्क व पशुगतिके दुःखोंका चितवन करके यह विचार करना कि "देखो! इन सतियोंको व उन मुनियोंको कैसे घोर उपसर्ग व कष्ट आते थे, तथा नारकियोंको कितना दुःख है? मुझे तो उसका असंख्यातवा भाग भी नहीं है" इत्यादि विचार कर दृढ़ता रखना, समताभावसे सहन करना और योग्य उपचारसे उसे दूर करनेका यत्न करना। "धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपत्तिकाल परखिये चारी।" (42) बेटी! विभव पानेपर अहंकार न करना, और अपनेसे बडे धनी, मानी ज्ञानी पुरुषोंके चरित्रों व स्वर्गकी सम्पत्ति व वैभवको विचारकर कि 'पुण्यके प्रभावसे इन्द्रादि देवों राजाओं और अमुकर सेठोंके कितनी सम्पत्ति व रूप, बल, विद्या, संयम आदि हैं, सो मेरे तो उसका अंश भी नहीं है' ऐसा विचारकर शांत रहना। क्योंकि संसारमें छोटे बडे धनी, निर्धन, मुर्ख, विद्वान् आदिका व्यवहार परस्पर सापेक्ष है। वास्तवमें सब कर्मकृत उपाधियां हैं। इसका मान करना व्यर्थ है। कहावत है "जबतक ऊट पहाडके नीचे नहीं जाता, तभी तक अपनेको बड़ा समजता रहता है।" इसलिये आम्र वृक्षके समान विभवमें नम्र रहना भी उचित है। (43) बेटी! आजकल प्रायः लोगोंमें ईर्षाभाव बहुत देखने में आता है। ये लोग दूसरोंकी सुखी देख निष्कारण उनमें तोड़फोड़ मचाकर दुःखी कर देते हैं। इसलिये अगर कोई
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [25 PROCTOCTOCOCCROCTOCHROCROCHOCTOCHOCTOR हजार सोगन्ध खाकर भी तुझसे तेरे घरवालोंकी कुछ बुराई बतावें तो कदापि उसे सत्य मत मानना और न ऐसी घृणित बातें सुननेकी इच्छा ही रखना। किन्तु उन कहनेवालोंको ऐसा मुख बन्द उत्तर देना ताकि बे फिर कभी तुझे ऐसी बातें सुनानेका साहस न करें। (44) बेटी! यदि तू कभी कहीं किसीसे अपने घरकी भलाई बुराई सुनकर आवे, तो तुरत अपने घरमें प्रगट कर देना ताकि उसपर विचार होकर योग्य प्रयत्न किया जावे, क्योंकि अपने दोष आपको अपने नहीं दीखते हैं। और देख कभी भी अपने मुंहसे अपनी बडाई व दूसरोंकी बुराई मत करना। कितने ही लोग योंही चिढ़ाने चमकाने व हँसाने आदिके लिये कौतुक रूपसे भी स्त्रियोंको उनके मां बापकी भलाई बुराई कहने लगते हैं। सो तू इससे मनमें खेद मत करना, क्योंकि जिसने बेटी दी है उससे नम्र और कोई नहीं है। संसारमें धैर्य (सहनशीलता) बडी गुणकारी वस्तु है, सदा उसका अवलम्बन करना। (45) हे बेटी! तू तो आपही सयानी हैं। तूने यहां सब कुछ देखा व सुना है। आजसे तेरा नवीन संसारमें प्रवेश होता हैं, इसलिये जोर बातें मेंने कहीं है अथवा तूने देखी सुनी हैं उनसे अब तुझे अनुभव करनेका समय आया है। अभीतक वे सब कोरी कथायें ही थीं परंतु अब उनका सच्चा दृश्य तुझे दृष्टिगोचर होगा। लोक प्राय: थियेटरोंमें नाटक वगैरह खेलमें रूपया लगाकर देखने जाते है। परंतु यह उनकी भूल हैं। इन्हें इन कृत्रिम भेषधारियोंके कल्पित खेलोंके देखनेसे कुछ लाभ नहीं हो सकता, इसके बदले उन्हें गृहस्थाश्रमरूपी रंगभूमिमें
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________________ 26 ] ससुराल जाते समय SCIENCSECSECOS BIOSPEICS POSSOSPOOSSOCIBOSEXSHOCS रहकर ही संसारके सच्चे स्वरूपका अनुभव करके, सच्चे (आत्मिक-अविनाशी) सुखपर दृष्टि लगाना और इसी नरजन्मसे ही उसे प्राप्त करनेका उद्यम करना चाहिए, यही सार हैं। (46) हे बेटी! अब तू खुशीसे जा। तू आयुष्यमती पुत्रवती सोभाग्यवती और सती सावित्री जैसी आदर्श रमणी हो जा! तेरे लिये सवारी तैयार हैं समयी भी हो गया हैं, इसलिये देरी मत कर। इस प्रकार माताने शिक्षा दे पुत्रीके मस्तक पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और पुत्री भी माताके चरण स्पर्शकर प्रेमाश्रु गिराती हुई उक्तशिक्षाओंकी मणिमाला कष्ठमें पहिनकर धीरे धीरे रथमें जा बैठी। (47) पश्चात् सासु अपने जमाई (दामाद) की ओर देखकर बोली:-लालाजी! यह पाद पक्षालन करनेवाली दीन टहलनी, आपकी सेवाके लिये दी है, इसलिये आप इसके गुण दोषोंपर विचार न कर अपने बड़े कुलका ही ध्यान रखकर इसका जीवन निर्वाह कीजिये। हम लोक आपकी कुछ भी सेवा सुश्रूषा करनेमें समर्थ नहीं हुए न कुछ दहेज ( भेट) ही दे सके है सो क्षमा कीजिये क्योंकि आप बड़े है और बड़ोंके यहां सबका निर्वाह हो सकता है। “आप बडे सरदार हो जानत हो रस रीति। ऐसी सदा निवाहियो, मासो घटे न प्रीति॥" ऐसा कह सासुने जमाईको नवीन फल ( श्रीफल) तथा कुछ सुवर्ण व रूपया मुद्रा भेट देकर बिदा किया। (48) सासुकी नम्र विनती पर जमाईने भी सासुकी मिष्ट वचनोंसे संतोष कर कहा-'सासुजी! आपने गृहरत्न दिया सो सब कुछ दिया है। इससे अधिक बहुमूल्य पदार्थ संसारमें क्या हो
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [27 EPCOCIENCEROSECRECORRECORROCROCRACTROCIRCTECH सकता है? जिस प्रकार वह यहां रहती थीं उसी प्रकार वहां भी उनके लिये माताजी उपस्थित है। आप कोई चिंता न करें। हम लोगोंको सदैव अपने पास ही समझिये! सासुजी! संसारमें सब प्राणी अपने२ गुण कर्मानुसार ही सुख दुःख बना लेते हैं। यथार्थमें जीवको सिवाय उसके गुण दोषों (स्वकृत कर्मों) के कोई भी सुख व दुःख देनेवाला नहीं हो सकता हैं। और वे तो हमारी गृहलक्ष्मी ही हैं, तो भी मैं यथाशक्ति उनको सुखी बनानेमें कसर न रक्खूगा। मुझे स्मरण हैं कि मैंने जो सप्त वचन ब्याह समय आपकी प्यारी पुत्री और अपनी अर्धांगनाको दिये थे वे निम्न प्रकार हैं, मैं उनका भले प्रकार पालन करूंगा। (1) परस्त्रीभिः ( पाणिगृहीतारिक्त) क्रीडा न कार्या ( परस्त्री सेवन नहीं करना) (2) वेश्यागृहे न गन्तव्यम् ( वेश्या [गणिकाके ] घर न जाना) (3) द्यूत क्रीडा न कार्या ( जुआ नहीं खेलना) (4) उद्योगाद्रव्योपार्जनेन मम अशनवस्त्राभरणानि रक्षणीयानि ( उद्योग द्वारा द्रव्य उपार्जन करके मेरे भोजन वस्त्राभूषणोंकी रक्षा करना।) (5) धर्मस्थाने न वर्जनीया (धर्मस्थानमें जानेसे नहीं रोकना) (6) अनुचित कठोर दण्डो न दातव्यः (अनुचित दण्ड (ताडना) नहीं देना।) (7) जीवनपर्यंत निरपराधा न त्यजनीया (जीवनपर्यंत विना अपराध त्याग मत करना) इत्यादि। इस प्रकार जमाईने सासुकों सम्बोधन करके उसे प्रणाम किया और अपनी पत्नीको लिवाकर ससुरालसे बिदा हुआ। और देखते देखते दम्पति दृष्टि से अदृश्य हो गये। बिचारी माता व स्वजनादि वियोगाकुल हो फिर देखते हुए पीछे लौटे। ठीक है-“बेटी अरु गाय, जहां देवों तहं जाय।" * *
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________________ 28] ससुराल जाते समय SOSEXSHOUSEXIESESEOSES SECSECSEX 3800g माताकी शिक्षा बेटी! जब ससुराल जाना, मत करना अपना मन माना। करना जो सो सासु सिखावे, या जेठानी ननद बतावे॥ जो हां घरमें जेठ जेठानी, करना उनहीकी मनमानी। उनकी सेवा बन आवेगा, तो तू सुख सम्पति पावेगी॥ जेठो ननद सासु जेठानी, इन सबको तू समझ सयानी। उनकी आज्ञा पालन करना, वधू-धर्म यह मनमें धरना। जितने जेठे होवें घरपर, उन्हें समझना पिता बराबर। उनकी आज्ञा शिर पर धरना, मानी है सुखसे धार भरना। जो सौभाग्यसे हो देवरानी, करना प्रेम बहिन सम जानी। उसको उत्तम काम सिखाना, अपने कुलकी चाल बताना। देवरको लखना लघुभाई, आदर करना प्रेम जनाई। उनके दुःखमें दुःख मनाना सुखमें मिल आनन्द बढ़ाना। जब तुम उनसे काम कराना, अपना बडप्पन नहीं जताना। प्रेम सहित धीरे मुसक्या कर, आज्ञा देना शील जताकर॥ ऐसा करने से देवरानी, बात करेगी सब मनमानी। देवर भी आज्ञा मानेंगे, तुमको गृह देवी जानेंगे। छोटी ननंद बहिन है छोटी, उससे बात न करना खोटी। प्रेम सहित उसको आदरना, द्वेष विरोध कभी नहीं करना। यदि सुभाग्यवश तेरे घर पर, होवें नौकर चाकर। उनपर कभी न क्रोध जताना, कभी नहीं दुर्वचन सुनाना॥ शांत भावसे आज्ञा देना, जो कुछ कहे उसे सुन लेना। उनका उचित प्रार्थना सुनकर उचित होय सो करना गुनकर॥ समय समझकर डाट बताना, उनको मुंह नहीं कभी लगाना। उनके बच्चोंपर सुदया कर, कभी कभी करना कुछ आदर॥
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [29 ECRECEOUSERECTECREECREOCHECREECREECREDUREXX उत्सव समय उन्हें कुछ देना, आशिष वचन उन्हींके लेना। उनके दुःखमें दया दिखाना, यों उनको निज दास बनाना॥ रखना चतुर दास अरु दासी, नेक चलत नीके विश्वासी। लोभी रसिक मिजाजी तस्कर, ऐसे कभी न रखना नौकर॥ ननद जिठानी देवरानीके, बच्चे रखना जैसे निजके / स्वच्छ प्रेम उनपर नित करना, उत्तम शिक्षा यह मन धरना॥ जाति बिरादरी घर मन भाये, मत जाना तुम बिना बुलाये। यदि बुलाय भेजें आदर कर, जाना हुकम बड़ोंका लेकर॥ पुरा पडोस निवासी नारी, आये आदर करना भारी। जाते समय प्रेमसे कहना, “आया करो" कभी तो बहना॥ आपसमें कर कलह लड़ाई, मत करना उनकी कुबडाई। जो तू घरमें कलह करेगी, दुनियां मुझको नाम धरेगी। इससे मैं तुझको सिखलाती, मत होना कुबुद्धिमें माती। काम वही करना दिन राती, जिसको सुन हो शीतल छाती॥ गृहकारज निज हाथों करना, इसमें लाज न मनमें धरना। घर कपड़े बालक अरु भोजन, स्वच्छ रहें यह बडा प्रयोजन॥ घरको लिपवाना पुतवाना, कपड़ोंको बहुधा धुलवाना। लडकोंको अकसर नहलाना, भोजन अपने हाथ बनाना॥ इतने मुख्य काम नारीके, जो नारी करती हैं नीके। वह सबको प्यारी होती हैं, सब पर अधिकारी होती है। बूढ़ा बारा अथवा कोई, बीमारीसे व्याकुल होई। चित्त दे उसकी सेवा करना, दया धर्म यह मनमें धरना॥ मत विचारना बुरा किसीका, तो तेरा भी होगा नीका। परहितमें तू चित्त लगाना, फल पावोगी तब मनमाना॥
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________________ 30] ससुराल जाते समय CIRCIRCBMXXCSECRECRECSECRECTROCHECRECS बडी सीख यह उरमें धरना, सेवा पति चरणोंकी करना। तेरा सुख उनके सुखमें हैं, तेरे उनसे प्राण लगे हैं। पतिको भरसक राजी रखना, मनमें नाम उन्हींका जपना। उनकी आज्ञा सिरपर धरना, रूखा उत्तर कभी न देना। देव जिनेन्द्र दयामई धर्मा, गुरु निर्ग्रन्थ हरें दुष्कर्मा। श्रद्धां भक्ति सदा इन करना, चार दान दे पातक हरना॥ कभी भूल मिथ्यात्व न सेवो, ईर्षा द्वेष त्याग तुम देवो। बेटी दोनों कुलकी लाजा, जैसे रहे करो सो काजा॥ नारी धर्मकी कुन्जी हैं यह सुख सम्पत्तिकी पूंजी है यह। यह कर्तव्य जिससे बन आवे, सोई मनवांछित फल पावे॥ यह सब बातें चितमें धरना, इनकी अवहेलना मत करना। जो इनके अनुसार चलेगी, सुखी रहेगी बहुत फलेगी। यह शिक्षा न विसारियो, सुन बेटी चित धार। तजो शोक जावो अबै, हर्ष सहित सुसरार॥ या विधि शिक्षा मातने, दई सुताको सार। कुलवन्ती या विधि चलें, मूरख देय विसार॥ यासे तन, मन, वचनसे पालो निज कुल धर्म। 'दीप' लहो यश या जनम, परभव पाओ शर्म॥ सुता-हितेषीवर्णी दीपचंद परवार, नरसिंहपुर-निवासी।
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________________ पत्रीको माताका उपदेश [31 &XRECSEXRESCREECHNOCRECTROXRECEXRESCRECTED स्वास्थ्य अथवा आरोग्यता ( गृहस्थाश्रमरूपी महलकी नीव शारीरिक आरोग्यता और मानसिक शांतिपर ही निर्भय है। इसी सम्बन्धमें ___पुत्रीयोंको कुछ शिक्षायें। ) मेरी प्यारी बेटी और बहिनो! क्या यह तुमको मालूम है कि ब्याहके पश्चात् ससुरालमें जाकर (गृहस्थाश्रममें प्रवेश करने पर) तुमको अपने जीवन में क्या क्या करना है? तुम किन किन बातोंको उत्तरदाता हो? क्योंकि प्रायः आजकलकी बहुयें ससुरालम पहुँचते ही सासु, श्वसुर, देवर, जेठ, जिठानी, ननद तथा अपने पतिको भी आज्ञाकारी बनाकर स्वछन्द प्रवर्तनेकी चेष्टा करती हैं। वे सब पर आज्ञा करना, मनोनुकूल अच्छार खाना, पहिनना और सुखचैन उड़ाना ही अपना कर्तव्य व जीवनका सार समझती हैं। वे घरमें लड झगडकर वृद्ध सासु ससुर व अन्य कुटुम्बियोंमें फूट उत्पन्न कर अपने पति सहित अलग रहने में ही अपना भला समझती हैं। उनको समझ है कि जब हम अपने मां बापको छोडकर आयी है तो पतिको क्यों उनके मां बापके साथ रहने दे? इन सबकी सेवा कौन करे? इत्यादि। यहां तक कि कोई कोई तो अपने पतिको लेकर अपने पीहर (मां बापके घर) चली जाती हैं। परंतु यह केवल उनकी भूल है इससे उन्हें न तो सुख ही मिलता है, और न यश ही किंतु कायरताका पोटला सिरपर पड़कर अपयश और दुःखका स्थान अवश्य बन जाती हैं। इसलिये यदि तुम्हें अपने घरको स्वर्ग तुल्य बनाकर देवों सरीखे सुख भोगना और यश प्राप्त करना है तो माताके उपदेशको ध्यानमें रखकर नीचे लिखी कुछ शिक्षाओं पर भी ध्यान दो और सच्ची गृहिणी बनकर गृहस्थाश्रम सफल करो और सुखी बनो।
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________________ 32] ससुराल जाते समय LYRECREECSEOCTECREECHECRECSECREECRECSECRECR (1) बेटियो और बहिनों! ज्यों ही तुम ससुरालमें जाओं त्यों ही वहां अपने सब घरके लोगोंकी प्रवृत्ति जान लो कि किसका स्वास्थ्य किस प्रकार ठीक रह सकता है। यही सबसे पहिली बात तुम्हारे लिये होगी। परंतु ध्यान रहै कि केवल शारीरिक स्वास्थ्यसे ही आरोग्य नहीं रहता है, किंतु उसका मनसे भी घनिष्ट सम्बन्ध है, अर्थात् विना मनकी शांतिके शारीरिक आरोग्यता कदापि नहीं रह सकता हैं। (2) आरोग्य केवल औषधिसे शुद्ध खानपानसे स्वच्छ हवा प्रकाशादि और सुगंधित वस्त्रोंसे ही नहीं मिलती है किंतु नीचे लिखी बाते भी बहुत आवश्यक हैं जिनपर पूरा ध्यान रखना चाहिये। इन सबमें अधिक महत्वकी अत्यावश्यक बात यह है कि 'मनकी शांति रखना' इसीमें सब बातें समाई हैं इसीलिये इसी संबंधमें कुछ थोड़ीसी बातें नीचे लिखी जाती है। (क) अपने घरमें किसीसे कभी ऊंचे स्वर व क्रोधसे गर्व व मानसे व कटाक्ष करते हुए कपटभरे, कठिन कडुवे वचन नहीं बोलना। (ख) यदि तुमको कोई कटुक वचन क्रोध व मानके वश होकर कहे भी तो तुम उन्हें शांतिसे सुनकर अनसुने कर दो। क्योंकि अग्निको बुझानेके लिये पानी ही डाला जाता है न कि ईधन। इसलिये तुम भी उस क्रोधरूपी अग्निमें क्षमा, शांति व सहनशीलता रूपी पानी डालकर बुझा दो, और नम्र (मिष्ट) वनचरूपी वायुमें उडा दो। क्योंकि वह क्रोधाग्नि उत्तरमें कटुक वचन कहने तथा क्रोध व रोस करनेसे और भी धधकती है। यहां तक कि वह कभीर घरका घर जला डालती है। यह बड़ा भारी आरोग्यसका घातक है।
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [33 RECEBOOSECRECEOCOCSOCIRCTCHEMICROcs (ग) बहिनों! वशीकरणका नाम तुमने सुना होगा और तुम्हारे मुंहमें इस नामसे पानी भी भर आया होगा। परंतु तुमने सुना होगा कि लोग प्रायः ऐसा कहने लगते हैं कि न मालूम इस बहूने क्या जादू कर रक्खा है। जिसके कि सासु, ससुर, जेठ, देवर, पति, ननंद आदि सासरे मात्रके सभी इसका कहना मानते हैं। यह जितना पानी पिलाती हैं, सब उतना ही पानी पीते हैं, इत्यादि। सो वह वशीकरण मंत्र, सिवाय मिष्ट भाषणके और कुछ नहीं कहा है "सबके मन हर लेत हैं, तुलसी मीठे बोल। यही मंत्र इस जानिये, वशीकरण अनमोल॥" कागा किसको धन हरे, कोयल काको देत। केवल मीठे वचन से, जग अपनी कर लेत॥ (घ) बहिनों! तुम साक्षात् प्रेमकी मूर्तियां हों, इसलिये तुम सर्वदा प्रसन्न चित रहो, ताकि सब लोग तुमसे प्रसन्न रहें। स्मरण रक्खो कि सांठा (गन्ना) बोओगी तो मीठा और नीम लगाओगी तो कडुआ रस पाओगी। बबूल बोनेसे कांटे ही फलते हैं। दर्पणमें जैसा मुंह करके देखो वैसा ही प्रतिबिम्ब दृष्टि पड़ेगा। तात्पर्य यह है कि यदि तुम प्रसन्न रहोगी तो सब प्रसन्न रहेंगे। (ङ) बेटियों! अदेखाई व ईर्षाभाव सर्वथा सदैव आरोग्यताके घातक हैं। जिस घरमें इनका प्रवेश हुवा, कि फिर उसे शत्रुकी आवश्यकता नहीं रहती है। यहां परस्पर एक दूसरेको देखकर जलती झुलसती रहती हैं और इसी प्रकार बीमार होकर प्राणोंसे हाथ धो बैठती है। इसलिये कभी भी अदेखाई नहीं करके परोदय देखकर प्रसन्न होना चाहिये।
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________________ 34] ससुराल जाते समय SUBESPOOSEISEX SEX SEXSPISEX SEXSHOCHSEXSHOOS (3) बहिनों! इस प्रकार प्रेम और सरल स्वभावसे तुम सबके साथ वर्ताव करोगी तो तुम्हारे मनकी शांतिके साथर तुम्हारे शरीरकी निरोगता भी रहेगी, तुम अनेक रोगोंसे बची रहोगी, झगडे टंटेसे ही रोग उत्पन्न होता है और फिर जीवन विषके समान दुःख स्वरूप हो जाता है। (4) मनकी शांति अर्थात् आरोग्यताके लिये मुझे कई बातें कहनी हैं। उनमें से प्रथम स्वच्छता व सुघड़ता हैं। जितनी शांति वस्त्रालंकारोंसे नहीं होती उतनी स्वच्छता व सुघड़तासे ही होती है। इतना ही नहीं किंतु वह अनेक रोगोंसे बचाती है। (5) तुम अपना शरीर, अपने कपड़े अपना घर तथा घरकी सम्पूर्ण वस्तुयें जैसे कि वर्तन वगैरह नित्य स्वच्छ रखना। बैठक व रसोईघर आदि स्थान नित्य स्वच्छ रखना। रसोई घरको चौका भी कहते है सौ इसमें द्रव्य ( भोजनसामग्री) क्षेत्र (स्थान) काल (समय) और अपने भाव इन चार बातोंकी शुद्धि होना आवश्यक हैं, तभी वह चौका कहा जा सकता है। पहिरनेके व हाथ मुंह पोंछनेके कपडे जैसे रूमाल, अंगोछे, गंजीफराक, धोती आदि नित्य धोकर स्वच्छ रखना, इसके सिवाय अन्य कपड़े चादर, कोट, कुरते आदि जो मैले हो गये हों, उनको धोबीके पास धुला लेना अथवा स्वयं धो लेना। बच्चोंको रोज नहलाना, और उन्हें धोये हुये स्वच्छ कपडे पहिराना चाहिये। (6) घरका आंगना, मंजोटा, धिनोंची, पनाला और हौज आदि अपने सामने व आप ही स्वयं साफ करना, क्योंकि इनसे बदबू फैलकर हवाको बिगाड़ देती है, जिससे बीमारी फैल जाती है। जिस प्रकार कि दस्त न आनेसे पेट साफ न होकर बेचैन हो जाती है और स्वास्थ्य बिगड जाता है उसी प्रकार घर साफ न होनेसे बिगड जाता है।
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________________ [35 पुत्रीको माताका उपदेश ESEXSEXERCTCHECEOCEDURESCRECECKeXos (7) घर में खाने पीनेकी वस्तुएं अपने आप नित्य शुद्ध (संशोधन) करना यह तुम्हारा मुख्य कार्य है, क्योंकि बाजारसे जो सामान आता है उसमें प्रायः धूल, मिट्टी, कंकर, भूसी, भूसाकी लेंडी तथा और भी ऐसी बहुतसी हानिकारक अपवित्र वस्तुएं मिली रहती हैं। अथवा घरमें रखा हुआ अनाज आदि भी घुन जाता है। उसने लट, कुन्थु आदि जीव पैदा हो जाते हैं। कीडी मकोडिया चढ़ जाती हैं। ऐसी दशामें विना शोधे, बीने, दलने, पीसने, कूटने, रांधने व खानेसे तुरंत रोग उत्पन्न हो जाता है। इसलिये जहांतक हो सके बाजारू चीजें बीना धोये, सुखाये काममें मत लाओ। (8) रसोई तैयार करनेमें भी स्वच्छताकी आवश्यकता है। रसोई बनाने व खानेके बर्तन बिलकुल साफ मांजना चाहिये क्योंकि उनमें थोडी भी झूठन रह जानेसे बहुतसे जीव उत्पन्न हो जाते हैं। और भी फिर जन्तू भोजनके साथ खानेवालोंके पेटमें जाते हैं, जिससे अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। उच्च जातिके लोगोंमें जहां खानपान व चौका आदिकी सुघडता व स्वच्छता होती है वहां बीमारी भी कम होती है। (9) पकाया हुआ अनाज बहुत जल्दी बिगडने लगता है, इसलिये वासी भोजन नहीं रखना न किसीको खिलाना। नरम वस्तुएं कि जिनमें पानीका भाग अधिक होता है, जल्दी चलितरस हो जाती हैं, इसलिये ऐसी वस्तुयें तुरंत तैयार करके खाना व खिलाना चाहिये। तैयार किये हुए भोजनके पदार्थ कभी उघाडे नहीं रहने देना चाहिये, क्योंकि मक्खी आदि जीव अपने मुंह व पांखों द्वारा अनेक अपवित्र और विषैले पदार्थ लाकर भोजनमें छोड़ देते हैं। चौके में सफाई रखनेसे मक्खियां वहां नहीं आवें, इस प्रकारसे प्रबंध रक्खो।
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________________ 36] ससुराल जाते समय PCMCSCRECTOCHECHERXXXSEXSEXSEXERCIENCE (10) रसोई करना यह तुम्हारा मुख्य काम है इसलिये इस काममें किसी प्रकार आलस्य न करके अच्छे प्रेम और उत्साहके साथ कि जिससे तुम्हारे भोजनकी प्रशंसा होवे, किया करो ऐसी रसोई बहुत स्वादिष्ट और हितकारी होती है। (11) किसीको जिमाते हुए भोजन बड़े प्रेम और शुद्ध भावसे कि "यह भोजन सबको हितकारी हो।" परोसना, क्योंकि बिना मनसे व कुभावोंसे परोसा हुआ भोजन खानेवालेको विषका काम करता है। तात्पर्य-परोसनेके समय जैसा भाव माता पुत्रके प्रति रखती हैं ऐसा रखना चाहिए। (12) भोजन तैयार करनेके संबंधमें एक आवश्यक बात यह भी है कि पुरुषोंका भोजनधार प्रायः स्त्रियां ही होती हैं। ये उन्हें जैसा पवित्र अपवित्र, स्वादिष्ट, षट्रसों, नीरस, चटपटा या सादा भोजन बनाकर खिलावें वैसा ही उन्हें खाना पड़ता है और कभीर प्रकृति विरुद्ध कच्चा, चटपटा व निरुत्साहसे बनाया हुआ भोजन हानि भी पहुंचा देता है। इसलिये सदैव ऋतु उद्यम, प्रकृति देश और रुचिके अनुसार फेरफार करते हुये, सादा भोजन बनाना चाहिये कि जिसके शरीर आरोग्य रहे, मनपर किसी प्रकारका बुरा प्रभाव नहीं पड़ने पावे और कभी क्लेश उठानेका अक्सर न आवे मनके उपर भी भोजनका बहुत प्रभाव पड़ता है। (13) अधिक खारा, खट्टा चरपरा व मीठा भोजन छोटे बड़े सबकी आरोग्यताको हानिकारक है। यह पाचनशक्तिको बिगाड़ता है लोहूको तपाता, आंतोके रसोंको बिगाडता और बहुतसे चर्मरोगोंको उत्पन्न कर देता हैं। ऐसे भोजनसे खट्टी डकार, हिंचकी, पेटमें पवनका रूकना और मरोड़ आना, शरीर व गलेमें खुजली आना दस्त व पेशाबके
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [37 EXSEXSEXTECRECTECHECRECTECEMBEXTRICT स्थानोंमें व पेटमें पीलापनका होना, अरुचि रहना इत्यादि। ये सब रोग तुम्हारी पाकशालामेंसे ही निकलते हैं। इसलिये सादा और प्रकृति अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाना चाहिये। (14) प्रायः लोगोंसे बलात्कार खींचतान करके अधिक भोजन खिलानेकी कुचाल पड़ रही है। इससे हितके बदले वह अन्न सन्न ( अजीर्ण आदि बिमारी) उत्पन्न करके उल्टा अहित कर देता हैं। इसलिये अधिक खींचतान किये बिना, इच्छा प्रमाण भोजन करना व कराना उचित है, परंतु जैसे खींचतान नहीं करना वैसे भूखा भी नहीं रखना चाहिये। क्योंकि बहुतसे लोग संकोचवश भूखे भी रह जाते हैं इसलिये उनसे अवश्य बारम्बार पूछना चाहिये, और जिनकी प्रकृति और भोजनका अंदाज तुम्हें मालुम हो उनको आग्रह न करके विचारके साथ ही परोसना चाहिये। (15) बहिनों! तुम घरका भूषण और अन्नपूर्णा हो, तुम्हारे सिवाय कोई लकड़ी, पत्थर, धातु व मिट्टीकी मूर्तिका नाम अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, गृहदेवी, या कुलदेवी नहीं है। तुम्हारे हाथमें पुरुषोंकी जीवनडोरी हैं, इसलिये तुम सच्ची गृहिणी बनों। स्वयं उत्तम मार्गका अवलम्बन करती हुई रानी चेलना आदिके समान अपने पति व अन्य पुरुषोंको भी सन्मार्गी बनाओ यही तुम्हारा मुख्य कर्तव्य है। (16) घरमें यदि कर्मवश कोई बीमार पड़ जावे तो तुम तुरंत हौशयारी, प्रेम, दया और उत्साहसे उसकी सेवा टहल करने में लग जाओ। यह काम प्रायः हर जगह दवाखानों (होस्पिटलों औषधालय) में परिचारिका (नर्स) ही करती हैं कारण पुरुषोंसे स्त्रियोंका स्वभाव सहज ही नम्र व दयालु होता है, इसलिये घरमें तुम्हें परिचारिका हो। तुम्हें इस कार्यमें निपुण होना चाहिये। और इस विषयकी पुस्तक पढ़कर तत्संबंधी ज्ञान प्राप्त करना तुम्हारा कर्तव्य है
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________________ 38] ससुराल जाते समय EXSECRECTECSEXERCOSECOREXSECOSECSEXXSEX क्योंकि यह काम जैसा आवश्यक है वैसा ही जोखमभरा और जवाबदारीका भी है। तुम रोगीसेवाका पाठ मैनासुन्दरीसे सीखो। देखो, उसने अपने कोढ़ी पति राजा श्रीपालकी कैसी सेवा की थी, जिसके प्रभावसे उनका पति कामदेव समान निरोग हो गया था। (17) बीमारीके समय बहुत नरनारी व्यर्थ ही भ्रमोत्पाद बातें कल्पना करके बीमारकी दवा आदि उपचार नहीं करते और धूर्तो (ठगों) के फन्दे में फंसकर झाड-फूंक (मंत्र तंत्र) कराते और इस प्रकारकी बीमारीको हाथसे खो बैठते हैं। इसलिये तुम कभी ऐसे भोले लोगोंके बहकाने में न लगो। और न कभी पाखण्डियोंमें द्रव्य गमाओ, किन्तु सदा अपने व आसपासवालोंके घरोंकी रक्षा करना तुम अपना कर्तव्य समझो। (18) घरमें कोई बीमार हो तो उस बारीकीसे बीमारीकी जड़ ढुंढ निकालो। प्रायः खराब हवा, अधिक शीत, अधिक उष्णता खराब पानी, प्रकृति विरुद्ध अनुपसेव्य, अभक्ष्य व अनिष्ट अपवित्र या कच्चा भोजन, मर्यादा रहित भोजन, अधिक भोजन कुसमय व रात्रि भोजन ये सब रोग उत्पन्न होनेके कारण हैं, इसलिये इस ओर ध्यान रक्खो। (19) हवा, पानी उजेला और पथ्य योग्य होनेसे ही औषधि काम देती है। अन्यथा कुसंयोगसे कभी अमृतयोग औषधि भी विषका काम कर जाती हैं इसलिये उक्त चार बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये। इसके अतिरिक्त एक बात और ध्यानमें रखनेकी यह है कि तुम्हें रोगीका विश्वास करके उनके पास खानेपीनेकी कोई वस्तु कभी न रखना चाहिये, क्योंकि यह न मालूम कब क्या उठाकर खा ले और रोग बढ़ जाय। क्योंकि रोगीका चित्त डांवाडोल रहता
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [39 SOCIS CSECSECSESEOSESEISEX SEXSPISESEOS है, इससे कभीर यह घबड़ाकर जानबूझके कुपथ्य कर बैठता है, इसलिये उसकी बहुत चौकसी रखनी चाहिए। (20) बीमारके कमरेमें मन प्रसन्न करनेवाली अच्छीर तस्वीरें उसके सामने लटकाना चाहिये जिससे उसका चित्त उनमें लगा रहे। और वह रोग पर पुनः विचार न करने पावे। क्योंकि निरंतर रोगका विचार करते रहनेसे कभीर रोगीका साहस घट जाता है दवासे विश्वास उठ जाता है और वह रोगको असाध्य मानकर निरन्तर चिंता चिंतामें भस्म होकर फिर कभी स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकता। (21) रोगीके पास बैठकर कभी कोई कायरता भय व शोकोत्पादक बात नहीं करना चाहिये, न उससे कभी यह कहना चाहिये कि तुम्हारा रोग असाध्य है, किंतु सदैव उसे मधुर वचनों द्वारा संतोष और साहस बंधाते रहना चाहिये, क्योंकि ऐसा न करनेसे कभीर रोगी घबरा कर प्राण तक छोड देता है। इसलिये सदैव दिल बहलानेवाली उत्तम पुरुषोंकी कथायें, धार्मिक उपदेश, तत्वचर्चा, वैराग्य भावना, ईश्वरके गुणानुवाद, कर्मोका और जीवका स्वरूप और उनसे उसके छूटनेका उपाय इत्यादिकी चर्चा करते रहना चाहिये ताकि रोगीका लक्ष्य रोगकी ओर जावे ही नहीं। वेदना हटानेका यह बड़ा भारी उपाय है। (22) सबेरे उठकर घरके सब किबाड खोलकर प्रत्येक स्थानमें नवीन हवा और सूर्यका प्रकाश पहुंचाना चाहिये, क्योंकि जिस घरमें हवा और प्रकाश बराबर नहीं पहुंचाया जाता है उस घरमें रहनेवाले और अधिकतर स्त्रियां प्रायः पीली पड़ जाती हैं और सदैव रोगसे पीडित बनी रहकर वैसी ही निर्बल संतान उत्पन्न
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________________ 40] ससुराल जाते समय OCRACHECRECRECROXIMOCROCHOCHOCIEOCIEOCTOCS करती है, परंतु यह सब भूल हैं। इसलिये हवा और प्रकाश सब मकानोंमें पहुंचाना अत्यावश्यक हैं। रात्रिको उपरके भागमें रहनेवाली जालीदार खिडकियां हवाके लिये सदैव खुली रखना चाहिये ताकि सदैव स्वच्छ हवा आती जाती रहे और पक्षी तथा चोर आदिका भी भय न रहे। (23) कभी कभी घरकी व आसपास वस्तीकी हवा बिगड जानेपर घर व वस्ती कुछ समयके लिए छोड देना चाहिये, अथवा हवा शुद्ध करनेवाले सुगन्धित पदार्थोसे हवन कर पवन शुद्धि करना चाहिये। (24) जिस प्रकार हवा आवश्यक है उसी प्रकार पानीका भी ध्यान रखना चाहिये। पानी उत्तम जलाशयसे जहां मैला आदि वस्तुयें न पडती हो वहांसे मोटे कपडेके दो पर्त तक उससे छानकर लाना चाहिये और जीवानी उसी जलाशयमें पहुंचाना चाहिए पानीके बर्तन भूमिसे कुछ ऊंचाई पर रखना चाहिए। पानीमें जूठे बर्तन नहीं डुबोना चाहिये। पानीके बर्तन सदैव अंदरसे खूब खरोंचकर मांजना व धोना चाहिये। यदि पानीमें कुंछ वास (गन्ध) आती हो या रंगत दिखाई दे, तो उसे आगपर गरम कर फिर ठण्डा करके काममें लाना चाहिए। पानीके समान नहाने धोनेके लिये भी छना हुआ पानी आवश्यक है। मैंले कुचले हाथों व अपवित्र शरीरसे पानी नहीं लेना चाहिये और पानी छाननेका छन्ना,मैंला व फटा हुआ नहीं रखना चाहिए किन्तु सफेद स्वच्छ गाढेका होवे। (25) अधिक सोना, दिनको सोना व नियमानुसार न सोना, सबेरे सूर्योदयके पीछे बहुत समय तक सोते रहना और रात्रिको विशेष जागना भी स्वास्थ्यको हानिकारक है।
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [41 . POSEXSEXSEXCSEXSEXXSEXSEOCOSEOCEEDOSEOCOSEX (26) निकम्मे बैठे रहने में भी शरीरमें प्रमाद उत्पन्न होकर अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिये मानसिक वा शारीरिक उभय प्रकारके रोगोंसे बचनेके लिए कभी भी निरुद्यमा नहीं रहना चाहिये। आजकल बहुतसे पुरुष अपनी स्त्रियोंसे घरका काम ( कूटना, पीसना, झाडना, बटोरना, रोटी बनाना, बच्चोंको सम्हालना इत्यादि) न कराकर उन्हें पुरुषोंके समान टेनिस, किरकिट हाँकी आदि खेल खिलाकर व्यायाम करना चाहते हैं परंतु यह उनकी बड़ी भूल है। इससे घरका काम ठीक न होकर बच्चोंकी सम्हाल भी ठीक नहीं होती। घरका खर्च बढ़ जाता हैं और छोटे छोटे कामोंके लिये भी पराधीन हो जाना पडता है। इसके सिवाय स्त्रियोंकी लज्जा भी नष्ट हो जाती हैं। इसलिये कूटना, पीसना, दलना, झाडना, पानी भरना, रोटी करना इत्यादि कार्य करना ही उत्तमोत्तम व्यायाम है। इससे एक पन्थ दो काज होते हैं। घरका कार्य उत्तमतासे हो, द्रव्य बचे और स्वास्थ्य अच्छा रहे, समयका भी सदुपयोग होवे इसलिए घरके कामोंसे निवृत्त होनेके बाद शिक्षाप्रद धार्मिक व नैतिक पुस्तकोंका स्वाध्याय करना चाहिए व बच्चोंको बहलाते हुए शिक्षा देनी चाहिए, ईश्वरका भजन करना चाहिए अथवा रहटिया चलाकर सूत कातना, कपड़े सीना, बुनना आदि कलाकौशल संबंधी शिक्षा लेना चाहिए। और यदि अवकाश हो तो कभी कभी अपनी सासु आदि गुरानियोंके साथ बाहर खुली हवामें भी जाना चाहिए। परंतु तो भी घरूकामोंको अपने आप करनेकी अपेक्षा और कोई भी उत्तम व्यायाम नहीं हो सकता हैं। (27) बहिनो और बेटियों! मेरा यह सब कहनेका तात्पर्य यह है कि आरोग्यता प्राप्त करनेके लिए सबसे प्रधान कारण
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________________ ससुराल जाते समय PRECROCIEOSEXSECREECHECREECREOCHOCIRCRACK चित्तकी प्रसन्नता है, इसलिये वे कारण जिनसे अपना व परका चित्त प्रसन्न रहे, यथासंभव मिलाते रहना चाहिये। (28) स्त्रियोंको ऋतु (मासिक) धर्म पालन करना अत्यावश्यक है। प्रायः बहुतसी स्त्रियां इन दिनोमें घरके सब कामकाज करती है। सिवाय रोटी पकानेके कूटना, पीसना, पानी भरना, कपडे धोना, झाडना, लीपना, बर्तन मांजना, यहां तक कि किसीसे घर निमंत्रणमें जीमने जाना, गाना, बजाना, अंजन, भजन आदि श्रृङ्गार भी करती हैं। ऐसा करना सर्वथा वर्जित है। इससे संतान पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। देखों, बरी पापड आदि अचेतन पदार्थोकी इनकी दृष्टिमात्रसे क्या दशा होती है? इसलिये इनको इन दिनोंमें उक्त सब कामोसे अलग ही रहना चाहिए। अर्थात् 4 दिन तक एकांत स्थान (किसी हवादार कोठरी) में ही बिताना चाहिये, और अपने भोजनके बर्तन व ओढ़ने बिछानेके कपडे बिल्कुल अलग रखना चाहिए। पश्चात् पांचवे दिन स्नान करके घरका काम करना उचित है जिस घरमें रजोधर्मकी क्रिया बराबर नहीं पलती है, उस घरमें व्रती श्रावक व मुनि आदि सत्पात्रोके आहारकी विधि नहीं बन सकती है। इस विषयमें अन्य श्रावकाचार व वैद्यकके ग्रंथोंमें बहुत विचार किया गया है, वहांसे देखना चाहिये। यह बात स्वास्थ्यके लिए भी बहुत आवश्यक है। (29) गर्भवती स्त्रियोंकी उपवासादि व्रत नहीं करना चाहिये और न मनमाने खट्टे चटपटे कडूवे आदि पदार्थ खाना चाहिए। क्रोध, आलस, विकथा, कलह, मिथ्याभाषण, चोरी, कपट, मैथुन आदि निंद्यकार्य नहीं करना चाहिए। इससे गर्भस्य
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [43 SOSPOSTO SEXSEOKSESBOCSOCSO CSO CSEXO CDXS बालकको बहुत कष्ट पहुंचता है और बुरा प्रभाव पड़ता है तथा अंगहीन व रोगी दुःस्वभाववाली संतान होती है। (30) ऋतुकालमें गर्भाधान होनेसे भी विकल अंग व दुःस्वभाववाली असदाचारी संतान होती है। अतएव कमसे कम 5 दिन अवश्य ही बचा देना चाहिये। (31) प्रायः बहुतसी स्त्रियां जब कभी घरसे बाहर कहीं जीमने आदिके लिए अथवा मेले ठेलेमें जाती हैं तो बहुतसे वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित होकर ( यदि घरमें न हों तो मांगकर भी पहिन) जाती हैं जो उचित नहीं है, परंतु जब वे घर आती है तो अपने पतिके सन्मुख मैले कुचले कपडे पहिनकर आभूषण रहित नंग धडंग (डाकनसी बनकर) आती हैं। इससे ही उनके पति उनसे घृणा करने लगते हैं। इसलिए स्त्रियोंका मुख्य कर्तव्य है कि जब वे कहीं बाहर जावें, तब साधारण वस्त्राभूषण पहिनकर जावें और जब पतिदेवके सन्मुख जावें ( यदि पति घर हो तो रात्रि समय) तो सम्पूर्ण श्रृंगार करके जावें जिससे आराध्य पतिका चित्त उन्हींके पास बन्ध जावे और अन्यत्र न जाने पावे। श्रृंगार वास्तवमें पतिहीके लिए होता है, न कि औरोंको दिखानेके लिए। (32) यदि पति विदेशमें हो तो भी स्त्रियोंको श्रृंगार नहीं करना चाहिए। तथा घरसे बाहर अत्यन्त आवश्यकता होनेपर भी बिना किसी विश्वस्त गुरूजनको साथ लिए कदापि न जाना चाहिए। (33) अज्ञानतावश बहुतसी पुत्रियां अपने गुरूजनों (माता, पिता, मामा, बड़ा भाई, काका, बड़ी भाभी, मौसी, फूआ, फुफा, काकी आदि) से अपने पैर पुजवाती हैं यह उनकी
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________________ 44] ससुराल जाते समय ECRECTESCREDICTECRECTEDORESCRECTECTESCRECTECH बडी भूल है। इसलिये इन्हें चाहिए कि अपने गुरूजनोंसे चाहे वे पितापक्षके होवें, चाहें श्वसुर (पति) पक्षके हों सबके स्वयं पांव पूजें (पावा ढोक करें।) (34) अंतिम निवेदन यही है कि गृहास्थाश्रम एक बड़ा भारी वृक्ष है। इसलिये इसकी छाया में आनेवाले व इसका आश्रय लेनेवाले सब जीवोंका यह हितकारी व मनोवांछित फलदाता होना चाहिए। तात्पर्य यह है कि परोपकार, दान अतिथिसेवा, देवार्चन पठनपाठनादि कार्योसे गृहस्थोंकी शोभा होती है जैसा कि निम्नलिखित श्लोकसे विदित होता है। इसलिये उसपर ध्यान देना चाहिये : सानंद सदनं सुतास्तु सुधियः, कांताऽमृतं भाषिणी। इच्छा ज्ञानधनं स्वयोषिति रतिः, स्वाज्ञापरा सेवकाः॥ आतिथ्यं जिनपूजनं प्रतिदिनं मिष्टणन्नपान गृहं / साधोः संगमुपासते हि सततं, धन्यो गृहस्थाश्रमः॥ अर्थात् - जिस घरमें नित्य आनंदका वास हो (सब प्रसन्न चित्त हों), पुत्र बुद्धिमान हों, स्त्री मिष्टभाषिणी हो, ज्ञान ही जहां धन हो, पुरुष अपनी स्त्री पर प्रेम करनेवाला हो, सेवक आज्ञाकारी हो, जहां अतिथियोंका सत्कार (दान) होता हो, जिसमें जिन भगवानकी पूजन होती हो, जहां मिष्टान ( स्वादिष्ट शुद्ध) भोजन बनता हो, और जहां साधुओंका समागम रहता हो, वह घर (गृहस्थाश्रम) धन्य है। प्रिय बन्धुओ और बहिनो तथा बेटियो! कहां हैं आज वे माताएं जो अपनी बेटियोंको उक्त प्रकार शिक्षण देती थी? हाय! आज इस आर्यावर्तमें द्विज वर्णो में भी स्त्री महिलाओका
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश ROCEBOOSTOLEROCIOCTRICTROCIROCIOCHROCEBOCHROCETICS एक प्रकारसे अभावसा ही देखने में आता हैं। कहां गई सीता, द्रौपदी, अंजना, मैंना व मनोरमा? हाय भारतभूमि! आज तू ऐसी सतियों व रामचंद्र, हरिशचंद्र, विक्रम जैसे नररत्नों व उमास्वामी, समन्तभद्र, अकलङ्क आदि धर्मप्रचारकोंको खोकर ही गारत हो रही है। __ हे भारतीय सभ्य नरनारियो! जागो! जागो! देखो एक पहियेसे रथ नहीं चलेगा। इसलिये स्थान स्थान पर पुत्र और पुत्रियोंकी पाठशालाएं खोलो, आश्रम खोलो, रीति नीति व सधर्म प्रकारकी शिक्षाका घरोघरमें प्रचार करो ताकि ऐहिक सुखोंकी प्राप्ति हो, और पारलौकिक सुखोंके निकट भी पहुंच सको। इस समय हमको पुरुषोंमें जैसे सदाचार व्यापार आदिकी शिक्षा देना अमीष्ट है, उसी प्रकार स्त्रियोंमें भी कुछ व्यवहारगृहस्थाश्रम संबंधी सब प्रकारकी शिक्षा देना आवश्यक है। उन्नति या अवनतिका एक प्रधान कारण स्त्रियोंको भी समझना चाहिये। इत्यलम्। श्रावण वदि तिथि मागणा, संवत् वीर महन्त। तीर्थंकर हत गतिनको, लोक शिखर तिष्ठन्त॥ समाज-हितेषी(स्व.) वर्णी दीपचंद परवार, ( नरसिंहपुर P. C. निवासी ) అయసాయ
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________________ ससुराल जाते समय SXSEOCIEOCORRECORPOCSOCTOCROCHECREOCTOCHEECHECE नारीजीवन-साफल्य जैन महिलाओ उठो, कर्तव्य च्युत क्यों हो रहीं। पड़कर अविद्या नींदमें, सर्वस्व अपना खो रहीं। ध्यान दो इसपर तनिक, क्यों है हुई ऐसी दशा। दासी बना हमको मनुज, क्यों कर रहे यों दुदशा॥१॥ जिनमें सहस्त्रों शिक्षिता, साध्वी सती थीं पंडिता। द्रोपदी सीता सदृश सूरपूज्य सद्गुण मण्डिता॥ उनमें अशिक्षा, मूर्खता, अहमन्यताके वश हुई। पैरकी जूती सद्दश, यह पद पै ठुकराई गई // 2 // यदि आत्मगौरव और पूर्वज धर्म सतियोंकी तुम्हेंहै लाज, स्त्री जन्मको सार्थक बहिन करना तुम्हें। तो फूट मत्सर, ईया, अज्ञान, आलस, त्याग दो। संयुक्त बलसे शिक्षिता हो, विश्वमें ललकार दो॥३॥ हम नारियां हैं मानवोंसे धर्मकी सहकारिणी। देश जात्योद्धारको हम, पूर्ण हैं अधिकारिणी॥ कर्तव्य अपनेसे पुनः गृह स्वर्ग तुल्य बनायेंगी। अंजना ओ चेलना को, ज्योतियां झलकायेंगी॥४॥ तज पत्थरोंके धृणित गहने, धर्म. आभूषण सजा। अश्लील गाने त्याग स्त्री-धर्मकी बंशी बजा॥ निज पुत्रियों और बालकोंमें, भव्य ज्योति जगायेंगी। निंद्य नारी जन्मको, सार्थक अहा! कर जायेंगी॥५॥ O
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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [47 SOCIOECSECSESBOSBOSCOSOBOSCOSPOSOOS पूर्व आदर्श सती सीता सो वह महिमा, दिखादो आज फिर कोई। धर्म अपने पै दृढ़ रहना, सिखादो आज फिर कोई॥ ध्रुव। कि जैसी नारी थी सीता, हो वैसी नारि तुम भी तो। वही कर्तव्य नारीका, बतादो आज फिर कोई // 1 // हुई हैं धर्म होना सब, नहीं विद्यान गौरव है। नारिका कर्म क्या है आ, लखादो आज फिर कोई॥२॥ उच्च आदर्श दिखलाकर, बढाया था सती गौरव। नाम श्रेणीमें उनकी तुम, लिखादो आज फिर कोई // 3 // किया उज्जवल था मुं अपना, सभी संसारके आगे। सुयशकी ज्योति जगमें जग-मगा दो आज फिर कोई॥४॥ उठो ए विदुषियो! महिलाओकी है डूबती नैया। किनारे, आके ए बहिनो, लगादो आज फिर कोई॥५॥ पड़ी हैं नींद गफलतमें अविद्याका नशा पीकर। उन्हें सद्ज्ञान अमृत रस, पिला दो आज फिर कोई // 6 // नहीं हैं तेज बल साहस, बनी कायर सुमति हीना। कली साहसकी दिलमें आ, खिलादो आज फिर कोई॥७॥ “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते देवता तत्र।" इसी प्रियनादसे नभको, हिलादो आज फिर कोई // 8 //
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________________ 48] ससुराल जाते समय EXC8EXPOSODBO CSDD CSDD CSEXSO SEX SEX SEC8063 विद्या-महिमा प्राप्त होगा विद्यासे मान॥ टेक॥ प्यारी बहनो उठो सजो निज पूर्व आत्म सन्मान // 1 // ज्ञान प्रकाश प्रचुर प्रकटाओ, धर्म पतिव्रत ज्योति जगाओ। शिक्षा स्त्रोत सरस सरसाओ, सद्गुण, सद्विद्या अपनाओ, करो आत्म कल्याण // 2 // कर्म क्षेत्रमें पैर बढ़ाओ, ऐक्य दुन्दुभि मधुर बजाओ। साहस ठानि विवेक सजाओ, महिला-महिमा-अतुल बढाओ, प्रेम सुधा करि पान // 3 // विद्या विहित रूप यौवन धन, उत्तम कुल सन्तति निर्मल तन। सुखदायक है नहीं एक क्षण, ललित कुसुम सेमर साहश है, व्यर्थ न शोभावान // 4 // नव महिला उद्यान सजाकर, विद्याविटप मनोज्ञ लगाकर। प्रेम वारिसे रुचिर बढ़ाकर, इंच्छित फलको प्राप्त करो, हैं यही सौख्य सोपान // 5 //
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________________ 0-00 ....................... आध्यात्मिक ग्रंथ बृहत सामायिक पाठ और प्रतिकमण 20-00 नेमीनाथ पुराण 30-00 जम्बूस्वामी चरित्र श्री पालचरित्र दशलक्षण धर्मदीपक (दशलक्षणव्रत कथा सहित्) 10-00 महाराणीचेलनी 15-00 धर्मपरीक्षा 20-00 आराधना कथा-कोष भा-१ 15-00 मोक्षशास्त्र(तत्त्वार्थसूत्र) 40-00 मोक्षमार्गकी सच्ची कहानी 10-00 जैनव्रत कथा(४० व्रत कथा) गौम्मट सार जीवकांड 30-00 गौम्मट सार कर्मकांड 28-00 स्वामी कार्तिकेय अनुप्रेक्षा 42-00 परमात्मप्रकाश और योगसार 40-00 प्रवचनसार-(कुन्दकुन्दाचार्य) 36-00 लब्धिसार(क्षपणासारगर्भित) 64-00 अष्टसहस्त्री भाग 1-2-3 328-00 जैन धर्मका प्राचीन इतिहास प्रथम भाग 121-00 णमोकारग्रंथ 131-00 जैनेन्द्र सिद्धांत कोष 1-2-3-4-5 (12045) 600-00 सर्वार्थसिद्धि 140-00 भक्तामर रहस्य(यंत्रमंत्र सचित्र) 80-00 दिगम्बर जैन पुस्तकालय खपाटिया चकला, गांधीचौक, सूरत-३.टे. नं.(०२६१)४२७६२१ .......... . . . . .
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________________ एक ही जगहसे ग्रंथ मंगावें हमारे यहां धर्म, न्याय ज्योतिष, सिद्धांत, कथा, ! पुराण षट्खण्डागम, धवल, जयधवलके अतिरिक्त पवित्र काश्मीरीकेशर, दशांग, धूप, अगरबत्ती, कांचकी व चांदीकी मालायें, जनोई, जैन पंचरंगी झंडा, बम्बई (शोलापुर) इन्दौर, दिल्ली तीनों जैन परीक्षालयके पाठ्यक्रमकी पुस्तकें मंगवाकर हमारे लिए सेवाका अवसर दीजिये। ग्राहकोंको संतोषित करना हमारा लक्ष्य है। पर्वके अवसर पर आवश्यक्तानुसार उच्चकोटिके जैन ग्रन्थ रत्न पढ़के मनुष्य जन्म सफल बनाईरे क पत्र य खपाटिया चकला, गांधीचौक, सूरत-३. टे. नं. (0261) 427621