________________ पुत्रीको माताका उपदेश [13 ECTECTESCSEXSEXSEXSEXOTEOUSESOTESCOTESCUESCRecs भावना रखनेसे हमको पुण्य लाभ होगा। क्योंकि सरस व निरस किंतु शुद्ध प्रासुक तैयार भोजन ही अतिथियोंके योग्य होता है। (ख) हे स्त्री! अब तू मेरे साथ दुसरा पद चली। इससे स्नेहकी वृद्धि हुई। इसी प्रकार अपनी प्रीति द्वितीयाके चंद्र समान बढ़ती जावे और तुजसे मेरा बल भी बढ़ता रहे। (ग) हे स्त्री! इस तीसरे पदसे तू मेरी सुमति और सम्पत्तिकी वृद्धि करनेवाली हो। (घ) हे स्त्री! तू इस चौथे पदसे मेरे मनवांछित सुखकी वृद्धि करनेवाली हो। (ड) हे स्त्री! तू इस पांचवे पदसे मुझे संततिकी वृद्धि करनेवाली हो। (च) हे स्त्री! तू छठवें पदसे मुझे ऋतुओंके समान क्रीडारूप और सन्मार्गमें स्थिर रखनेवाली हो। (छ) हे स्त्री! यह सातवीं पद मेरे हृदयमें तेरी ओरसे बढ़ प्रीतिका देनेवाला हो, और अपना दोनों गृहस्थाश्रममें सलाह (ऐक्य) से रहें। (25) बेटी इस प्रकार सप्तपदीका रहस्य कहकर पति और भी कुछ विशेष सूचना करता है, सो सुनपति कहता है (क) हे स्त्री! तू सदैव मेरे सद्विचारों में सम्मिलित रहना। समस्त जीवमात्रको समान रितिसे देखना। ऐसी कोई बात जिससे मुझे व तुझे दुःख उत्पन्न होवे, नहीं करना, और न विना मेरी आज्ञाके कोई भी कार्य अपने मनोनुकूल करना इसमें तेरा व हमारा कल्याण हैं। यथोक्त मदीयचित्तानुगतं च चित्तं सदा ममाज्ञापरिपालन च। पतिव्रताधर्मपरायणं त्वं, कुर्यात् सदा सर्वमिदं प्रयत्नम्॥