________________ पुनीको माताका उपदेश। RROR सन्मति पद सन्मति कारण, वन्दू शील नमाय। जा प्रसाद शिक्षा लिखू, पुत्रिनको सुखदाय॥१॥ (1) ब्याहा होनेपर प्रथम बार जब पुत्रीको अपने पिताके घरसे ससुरालमें जानेका समय आया, अर्थात् विदाका समय हुआ तब माताने पुत्रीको सम्पूर्ण वस्त्राभरण पहिराकर मस्तकमें रोलीका तिलक लगाया और नवीन फल श्रीफलादि ओलीमें देकर कहा-बेटी! अपने हाथ पैर आदिका सम्पूर्ण आभूषण सम्हालो और सुखपूर्वक जाओ। (2) माताके ये वचन सुनकर पुत्री लज्जासहित नीचा शिर करके बोली-“हे माता! मैं जाती हूँ मेरी याद मत भूलना।" इतना ही कहने पाई थी कि उसका गला भर आया और आंखोंसे टपटप आंसू टपकने लगे। वह इससे आगे और कुछ भी नहीं कह सकी, किंतु मन्द स्वरसे माता पितादि स्वजनोंके प्रेमसे अधीर होकर रोने लगी। ठीक है, जिस मातापितादिकी गोदमें लालन पालन पाकर वह इतनी बड़ी हुी है, उनसे एकाएक प्रेम छूट जाना सहज नहीं है। और माता जिसने नव मास तक गर्भ में धारण करके जन्म दिया और तबसे अंचलका दुग्धपान कराकर अबतक अनेक प्रकारसे