________________ [11 पुत्रीको माताका उपदेश RECORRECTROCIECTECTROCHECRECIPECIROCHECRECE दूसरेके घर नहीं जाना।(६) बहुजनसंकीर्णस्थाने कुत्सितघमें तथा व्यसनासक्तजनानां गृहे न गन्तव्यम् ( बहुत आदमियोंकी भीड़ जहां हो ऐसे संकुचित स्थानमें खोटे धर्मवालोके स्थानमें तथा द्यूतादि सप्त व्यसनोंमें आसक्त पुरुषोंके स्थानमें नहीं जाना।)(७) गुप्तवार्ता न रक्षणीया तथा मम गुप्तवार्ता अन्याग्रे न कथनीया (मुझसे कोई बात न छिपाना तथा मेरी व मेरे घरकी गुप्त वार्ता किसीसे न करना) ये सात वचन देने पर ही तुझे तेरे पतिने बामभागमें ग्रहण किया था। सो इनका सदैव पालन करते रहना (23) बेटी लग्नका समय (मुहूर्त) न निकल जाय, इसी चड़बड़से लोग ज्यों त्यों कर विवाहकी रीति व रश्म पूरी करके गठजोडादि सप्तपदी कर देते हैं, और गृहस्थाचार्यके द्वारा पड़े हुए पवित्र मंत्र व पतिको पत्नीकी ओरसे वचन और पत्नीको पतिकी ओरसे शिक्षा व वचनोंकी समझने व समझानेकी फिकर नहीं रखते हैं। इसलिये मैं उक्त सप्त वाक्योके सिवाय और भी कुछ उपयोगी शिक्षा खुलासा रीति पर कहती हूँ क्योंकि यह तेरी भलाईका कारण है, सो तू ध्यानसे सूनपति कहता है - (क) ए स्त्री! तू मुझको अति आदरसे वरती हैं। तू मेरे साथ वृद्ध होवेगी। तुझे सौभाग्य देनेके लिये मैं तेरा कर ग्रहण करता हूँ। देव (कर्म) ने मेरे घर तथा वंशकी रक्षाके लिये ही तुझे मेरे आधीन किया है। (ख) है स्त्री! अबतक तू अपने मातापितादिको ही प्रेमकी दृष्टि से देखती थी, परंतु आजसे तू मेरे मातापितादि कुटुम्बीजनोंसे प्रेम जोड़। क्योंकि अब तुझे उन्हीके निकट अधिकतर रहना है।