________________ पुत्रीको माताका उपदेश [29 ECRECEOUSERECTECREECREOCHECREECREECREDUREXX उत्सव समय उन्हें कुछ देना, आशिष वचन उन्हींके लेना। उनके दुःखमें दया दिखाना, यों उनको निज दास बनाना॥ रखना चतुर दास अरु दासी, नेक चलत नीके विश्वासी। लोभी रसिक मिजाजी तस्कर, ऐसे कभी न रखना नौकर॥ ननद जिठानी देवरानीके, बच्चे रखना जैसे निजके / स्वच्छ प्रेम उनपर नित करना, उत्तम शिक्षा यह मन धरना॥ जाति बिरादरी घर मन भाये, मत जाना तुम बिना बुलाये। यदि बुलाय भेजें आदर कर, जाना हुकम बड़ोंका लेकर॥ पुरा पडोस निवासी नारी, आये आदर करना भारी। जाते समय प्रेमसे कहना, “आया करो" कभी तो बहना॥ आपसमें कर कलह लड़ाई, मत करना उनकी कुबडाई। जो तू घरमें कलह करेगी, दुनियां मुझको नाम धरेगी। इससे मैं तुझको सिखलाती, मत होना कुबुद्धिमें माती। काम वही करना दिन राती, जिसको सुन हो शीतल छाती॥ गृहकारज निज हाथों करना, इसमें लाज न मनमें धरना। घर कपड़े बालक अरु भोजन, स्वच्छ रहें यह बडा प्रयोजन॥ घरको लिपवाना पुतवाना, कपड़ोंको बहुधा धुलवाना। लडकोंको अकसर नहलाना, भोजन अपने हाथ बनाना॥ इतने मुख्य काम नारीके, जो नारी करती हैं नीके। वह सबको प्यारी होती हैं, सब पर अधिकारी होती है। बूढ़ा बारा अथवा कोई, बीमारीसे व्याकुल होई। चित्त दे उसकी सेवा करना, दया धर्म यह मनमें धरना॥ मत विचारना बुरा किसीका, तो तेरा भी होगा नीका। परहितमें तू चित्त लगाना, फल पावोगी तब मनमाना॥