Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 44
________________ ससुराल जाते समय PRECROCIEOSEXSECREECHECREECREOCHOCIRCRACK चित्तकी प्रसन्नता है, इसलिये वे कारण जिनसे अपना व परका चित्त प्रसन्न रहे, यथासंभव मिलाते रहना चाहिये। (28) स्त्रियोंको ऋतु (मासिक) धर्म पालन करना अत्यावश्यक है। प्रायः बहुतसी स्त्रियां इन दिनोमें घरके सब कामकाज करती है। सिवाय रोटी पकानेके कूटना, पीसना, पानी भरना, कपडे धोना, झाडना, लीपना, बर्तन मांजना, यहां तक कि किसीसे घर निमंत्रणमें जीमने जाना, गाना, बजाना, अंजन, भजन आदि श्रृङ्गार भी करती हैं। ऐसा करना सर्वथा वर्जित है। इससे संतान पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। देखों, बरी पापड आदि अचेतन पदार्थोकी इनकी दृष्टिमात्रसे क्या दशा होती है? इसलिये इनको इन दिनोंमें उक्त सब कामोसे अलग ही रहना चाहिए। अर्थात् 4 दिन तक एकांत स्थान (किसी हवादार कोठरी) में ही बिताना चाहिये, और अपने भोजनके बर्तन व ओढ़ने बिछानेके कपडे बिल्कुल अलग रखना चाहिए। पश्चात् पांचवे दिन स्नान करके घरका काम करना उचित है जिस घरमें रजोधर्मकी क्रिया बराबर नहीं पलती है, उस घरमें व्रती श्रावक व मुनि आदि सत्पात्रोके आहारकी विधि नहीं बन सकती है। इस विषयमें अन्य श्रावकाचार व वैद्यकके ग्रंथोंमें बहुत विचार किया गया है, वहांसे देखना चाहिये। यह बात स्वास्थ्यके लिए भी बहुत आवश्यक है। (29) गर्भवती स्त्रियोंकी उपवासादि व्रत नहीं करना चाहिये और न मनमाने खट्टे चटपटे कडूवे आदि पदार्थ खाना चाहिए। क्रोध, आलस, विकथा, कलह, मिथ्याभाषण, चोरी, कपट, मैथुन आदि निंद्यकार्य नहीं करना चाहिए। इससे गर्भस्य

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