Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 43
________________ पुत्रीको माताका उपदेश [41 . POSEXSEXSEXCSEXSEXXSEXSEOCOSEOCEEDOSEOCOSEX (26) निकम्मे बैठे रहने में भी शरीरमें प्रमाद उत्पन्न होकर अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिये मानसिक वा शारीरिक उभय प्रकारके रोगोंसे बचनेके लिए कभी भी निरुद्यमा नहीं रहना चाहिये। आजकल बहुतसे पुरुष अपनी स्त्रियोंसे घरका काम ( कूटना, पीसना, झाडना, बटोरना, रोटी बनाना, बच्चोंको सम्हालना इत्यादि) न कराकर उन्हें पुरुषोंके समान टेनिस, किरकिट हाँकी आदि खेल खिलाकर व्यायाम करना चाहते हैं परंतु यह उनकी बड़ी भूल है। इससे घरका काम ठीक न होकर बच्चोंकी सम्हाल भी ठीक नहीं होती। घरका खर्च बढ़ जाता हैं और छोटे छोटे कामोंके लिये भी पराधीन हो जाना पडता है। इसके सिवाय स्त्रियोंकी लज्जा भी नष्ट हो जाती हैं। इसलिये कूटना, पीसना, दलना, झाडना, पानी भरना, रोटी करना इत्यादि कार्य करना ही उत्तमोत्तम व्यायाम है। इससे एक पन्थ दो काज होते हैं। घरका कार्य उत्तमतासे हो, द्रव्य बचे और स्वास्थ्य अच्छा रहे, समयका भी सदुपयोग होवे इसलिए घरके कामोंसे निवृत्त होनेके बाद शिक्षाप्रद धार्मिक व नैतिक पुस्तकोंका स्वाध्याय करना चाहिए व बच्चोंको बहलाते हुए शिक्षा देनी चाहिए, ईश्वरका भजन करना चाहिए अथवा रहटिया चलाकर सूत कातना, कपड़े सीना, बुनना आदि कलाकौशल संबंधी शिक्षा लेना चाहिए। और यदि अवकाश हो तो कभी कभी अपनी सासु आदि गुरानियोंके साथ बाहर खुली हवामें भी जाना चाहिए। परंतु तो भी घरूकामोंको अपने आप करनेकी अपेक्षा और कोई भी उत्तम व्यायाम नहीं हो सकता हैं। (27) बहिनो और बेटियों! मेरा यह सब कहनेका तात्पर्य यह है कि आरोग्यता प्राप्त करनेके लिए सबसे प्रधान कारण

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