________________ 30] ससुराल जाते समय CIRCIRCBMXXCSECRECRECSECRECTROCHECRECS बडी सीख यह उरमें धरना, सेवा पति चरणोंकी करना। तेरा सुख उनके सुखमें हैं, तेरे उनसे प्राण लगे हैं। पतिको भरसक राजी रखना, मनमें नाम उन्हींका जपना। उनकी आज्ञा सिरपर धरना, रूखा उत्तर कभी न देना। देव जिनेन्द्र दयामई धर्मा, गुरु निर्ग्रन्थ हरें दुष्कर्मा। श्रद्धां भक्ति सदा इन करना, चार दान दे पातक हरना॥ कभी भूल मिथ्यात्व न सेवो, ईर्षा द्वेष त्याग तुम देवो। बेटी दोनों कुलकी लाजा, जैसे रहे करो सो काजा॥ नारी धर्मकी कुन्जी हैं यह सुख सम्पत्तिकी पूंजी है यह। यह कर्तव्य जिससे बन आवे, सोई मनवांछित फल पावे॥ यह सब बातें चितमें धरना, इनकी अवहेलना मत करना। जो इनके अनुसार चलेगी, सुखी रहेगी बहुत फलेगी। यह शिक्षा न विसारियो, सुन बेटी चित धार। तजो शोक जावो अबै, हर्ष सहित सुसरार॥ या विधि शिक्षा मातने, दई सुताको सार। कुलवन्ती या विधि चलें, मूरख देय विसार॥ यासे तन, मन, वचनसे पालो निज कुल धर्म। 'दीप' लहो यश या जनम, परभव पाओ शर्म॥ सुता-हितेषीवर्णी दीपचंद परवार, नरसिंहपुर-निवासी।