________________ पत्रीको माताका उपदेश [31 &XRECSEXRESCREECHNOCRECTROXRECEXRESCRECTED स्वास्थ्य अथवा आरोग्यता ( गृहस्थाश्रमरूपी महलकी नीव शारीरिक आरोग्यता और मानसिक शांतिपर ही निर्भय है। इसी सम्बन्धमें ___पुत्रीयोंको कुछ शिक्षायें। ) मेरी प्यारी बेटी और बहिनो! क्या यह तुमको मालूम है कि ब्याहके पश्चात् ससुरालमें जाकर (गृहस्थाश्रममें प्रवेश करने पर) तुमको अपने जीवन में क्या क्या करना है? तुम किन किन बातोंको उत्तरदाता हो? क्योंकि प्रायः आजकलकी बहुयें ससुरालम पहुँचते ही सासु, श्वसुर, देवर, जेठ, जिठानी, ननद तथा अपने पतिको भी आज्ञाकारी बनाकर स्वछन्द प्रवर्तनेकी चेष्टा करती हैं। वे सब पर आज्ञा करना, मनोनुकूल अच्छार खाना, पहिनना और सुखचैन उड़ाना ही अपना कर्तव्य व जीवनका सार समझती हैं। वे घरमें लड झगडकर वृद्ध सासु ससुर व अन्य कुटुम्बियोंमें फूट उत्पन्न कर अपने पति सहित अलग रहने में ही अपना भला समझती हैं। उनको समझ है कि जब हम अपने मां बापको छोडकर आयी है तो पतिको क्यों उनके मां बापके साथ रहने दे? इन सबकी सेवा कौन करे? इत्यादि। यहां तक कि कोई कोई तो अपने पतिको लेकर अपने पीहर (मां बापके घर) चली जाती हैं। परंतु यह केवल उनकी भूल है इससे उन्हें न तो सुख ही मिलता है, और न यश ही किंतु कायरताका पोटला सिरपर पड़कर अपयश और दुःखका स्थान अवश्य बन जाती हैं। इसलिये यदि तुम्हें अपने घरको स्वर्ग तुल्य बनाकर देवों सरीखे सुख भोगना और यश प्राप्त करना है तो माताके उपदेशको ध्यानमें रखकर नीचे लिखी कुछ शिक्षाओं पर भी ध्यान दो और सच्ची गृहिणी बनकर गृहस्थाश्रम सफल करो और सुखी बनो।