________________ 26 ] ससुराल जाते समय SCIENCSECSECOS BIOSPEICS POSSOSPOOSSOCIBOSEXSHOCS रहकर ही संसारके सच्चे स्वरूपका अनुभव करके, सच्चे (आत्मिक-अविनाशी) सुखपर दृष्टि लगाना और इसी नरजन्मसे ही उसे प्राप्त करनेका उद्यम करना चाहिए, यही सार हैं। (46) हे बेटी! अब तू खुशीसे जा। तू आयुष्यमती पुत्रवती सोभाग्यवती और सती सावित्री जैसी आदर्श रमणी हो जा! तेरे लिये सवारी तैयार हैं समयी भी हो गया हैं, इसलिये देरी मत कर। इस प्रकार माताने शिक्षा दे पुत्रीके मस्तक पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और पुत्री भी माताके चरण स्पर्शकर प्रेमाश्रु गिराती हुई उक्तशिक्षाओंकी मणिमाला कष्ठमें पहिनकर धीरे धीरे रथमें जा बैठी। (47) पश्चात् सासु अपने जमाई (दामाद) की ओर देखकर बोली:-लालाजी! यह पाद पक्षालन करनेवाली दीन टहलनी, आपकी सेवाके लिये दी है, इसलिये आप इसके गुण दोषोंपर विचार न कर अपने बड़े कुलका ही ध्यान रखकर इसका जीवन निर्वाह कीजिये। हम लोक आपकी कुछ भी सेवा सुश्रूषा करनेमें समर्थ नहीं हुए न कुछ दहेज ( भेट) ही दे सके है सो क्षमा कीजिये क्योंकि आप बड़े है और बड़ोंके यहां सबका निर्वाह हो सकता है। “आप बडे सरदार हो जानत हो रस रीति। ऐसी सदा निवाहियो, मासो घटे न प्रीति॥" ऐसा कह सासुने जमाईको नवीन फल ( श्रीफल) तथा कुछ सुवर्ण व रूपया मुद्रा भेट देकर बिदा किया। (48) सासुकी नम्र विनती पर जमाईने भी सासुकी मिष्ट वचनोंसे संतोष कर कहा-'सासुजी! आपने गृहरत्न दिया सो सब कुछ दिया है। इससे अधिक बहुमूल्य पदार्थ संसारमें क्या हो