________________ 24] ससुराल जाते समय &PCREACHERCHOICROCHEOCHOCHOCIENCEOCHOCIENCRECS (41) बेटी! जब कभी तुझे बहुत खेद पीडा व रोगादिक को वेदना, अथवा अन्य कुछ भी दैहिक व्यथा उत्पन्न हो तो तू अपने धैर्य व धर्मसे नहीं डिगना, किन्तु सीता द्रौपदी, चेलना, मनोरमा, मेना, रयनमंजूषा आदि महासतियोंके चरित्रको स्मरण करना अथवा नर्क व पशुगतिके दुःखोंका चितवन करके यह विचार करना कि "देखो! इन सतियोंको व उन मुनियोंको कैसे घोर उपसर्ग व कष्ट आते थे, तथा नारकियोंको कितना दुःख है? मुझे तो उसका असंख्यातवा भाग भी नहीं है" इत्यादि विचार कर दृढ़ता रखना, समताभावसे सहन करना और योग्य उपचारसे उसे दूर करनेका यत्न करना। "धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपत्तिकाल परखिये चारी।" (42) बेटी! विभव पानेपर अहंकार न करना, और अपनेसे बडे धनी, मानी ज्ञानी पुरुषोंके चरित्रों व स्वर्गकी सम्पत्ति व वैभवको विचारकर कि 'पुण्यके प्रभावसे इन्द्रादि देवों राजाओं और अमुकर सेठोंके कितनी सम्पत्ति व रूप, बल, विद्या, संयम आदि हैं, सो मेरे तो उसका अंश भी नहीं है' ऐसा विचारकर शांत रहना। क्योंकि संसारमें छोटे बडे धनी, निर्धन, मुर्ख, विद्वान् आदिका व्यवहार परस्पर सापेक्ष है। वास्तवमें सब कर्मकृत उपाधियां हैं। इसका मान करना व्यर्थ है। कहावत है "जबतक ऊट पहाडके नीचे नहीं जाता, तभी तक अपनेको बड़ा समजता रहता है।" इसलिये आम्र वृक्षके समान विभवमें नम्र रहना भी उचित है। (43) बेटी! आजकल प्रायः लोगोंमें ईर्षाभाव बहुत देखने में आता है। ये लोग दूसरोंकी सुखी देख निष्कारण उनमें तोड़फोड़ मचाकर दुःखी कर देते हैं। इसलिये अगर कोई