________________ पुत्रीको माताका उपदेश [25 PROCTOCTOCOCCROCTOCHROCROCHOCTOCHOCTOR हजार सोगन्ध खाकर भी तुझसे तेरे घरवालोंकी कुछ बुराई बतावें तो कदापि उसे सत्य मत मानना और न ऐसी घृणित बातें सुननेकी इच्छा ही रखना। किन्तु उन कहनेवालोंको ऐसा मुख बन्द उत्तर देना ताकि बे फिर कभी तुझे ऐसी बातें सुनानेका साहस न करें। (44) बेटी! यदि तू कभी कहीं किसीसे अपने घरकी भलाई बुराई सुनकर आवे, तो तुरत अपने घरमें प्रगट कर देना ताकि उसपर विचार होकर योग्य प्रयत्न किया जावे, क्योंकि अपने दोष आपको अपने नहीं दीखते हैं। और देख कभी भी अपने मुंहसे अपनी बडाई व दूसरोंकी बुराई मत करना। कितने ही लोग योंही चिढ़ाने चमकाने व हँसाने आदिके लिये कौतुक रूपसे भी स्त्रियोंको उनके मां बापकी भलाई बुराई कहने लगते हैं। सो तू इससे मनमें खेद मत करना, क्योंकि जिसने बेटी दी है उससे नम्र और कोई नहीं है। संसारमें धैर्य (सहनशीलता) बडी गुणकारी वस्तु है, सदा उसका अवलम्बन करना। (45) हे बेटी! तू तो आपही सयानी हैं। तूने यहां सब कुछ देखा व सुना है। आजसे तेरा नवीन संसारमें प्रवेश होता हैं, इसलिये जोर बातें मेंने कहीं है अथवा तूने देखी सुनी हैं उनसे अब तुझे अनुभव करनेका समय आया है। अभीतक वे सब कोरी कथायें ही थीं परंतु अब उनका सच्चा दृश्य तुझे दृष्टिगोचर होगा। लोक प्राय: थियेटरोंमें नाटक वगैरह खेलमें रूपया लगाकर देखने जाते है। परंतु यह उनकी भूल हैं। इन्हें इन कृत्रिम भेषधारियोंके कल्पित खेलोंके देखनेसे कुछ लाभ नहीं हो सकता, इसके बदले उन्हें गृहस्थाश्रमरूपी रंगभूमिमें