________________ पुत्रीको माताका उपदेश DOGSBOSSESSO SEX SEX SEX SEX SEX SEX SEX SEXOS व बैठकखाने में ऊपर चंदोबा रखना। तात्पर्य जैसी धार्मिक गृहक्रिया तूने यहां देखी सीखी है, उसी प्रकार यदि वहां कुछ त्रुटि दीखे तो चतुराईसे ठीक करना और रसोई बहुत चतुराईसे पाकशास्त्रकी विधि प्रमाण करना व ऋतु व प्रकृतिके अनुसार उसमें फेरफार करते रहना। कच्ची व खरी वस्तु बेस्वाद होनेके सिवाय रोगोत्पादक भी होती है। यदि घरमें रसोईदारिन हो तो तू उसके साथ भोजनकी सम्हाल चौकसी रखना क्योंकि समस्त कुटुम्बका रक्षण व आरोग्यता भोजनपर ही निर्भर है। दोपहरको अवकाश मिलनेपर घरके फटे पुराने वस्त्रोंको सुधारना, अथवा बच्चोंकी झगुलियां, टोपी, कांचली, (अंगिया चोली), ओढ़नी, घाघरा आदि सुधारना व नवीन सीना। बेल बूटादिद काढ़ना, गुलूबंद तारण, वेष्टन आदि गूंथना तथा रहटियोंसे सूत कातना क्योंकि स्त्रियोंका नियमपूर्वक निकम्मा रहना ठीक नहीं है। निकम्मा रहनेसे मन इधर उधर व्यर्थ भटकने लगता है। (20) घरके छोटे बच्चोंको अवकाश पाकर अपने पास बिठलाना और छोटी२ चित्त प्रसन्न करनेवाली कथायें तथा प्राचीन वीर पुरुषों और सती स्त्रियोंके आदर्श चरित्र सुनाया करना। परंतु भय और शंका उत्पन्न करनेवाली भूत प्रेतादिकी कथायें तथा दुष्ट नीच पुरुषों द्वारा संग्रहीत विषयोत्पादक कुकथायें कभी नहीं सुनाना, न आप सुनना, क्योंकि इन विकथाओंसे बालकोंके तथा अपने चित्त पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक कथाके अंतमें उसका उत्तम तात्पर्य निकाल कर अवश्य समझाना। जो कथा सुनानेसे किसीको बुरी लगे ऐसी कथा व पहेली तथा कहावतें नहीं कहना, और न कभी कुतर्क रूपसे किसी पर कुछ कटाक्ष करके बोलना।