Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 12
________________ 10] ससुराल जाते समय RECSECSECRECOREOSECSEOCSEXSEXSEOCHECSEOCE (21) ब्याहकार्य लोकमें आजकल एक वजनदार बेडी समझी जाने लगी है। क्योंकि कुपढ़ अज्ञान स्त्रियां ससुराल में जाकर ससुरालवालोको अपने दुष्ट स्वभावका परिचय देकर नाना भांतिके नाच नचाती और निरंतर कलह करके घरमें फूटका अंकुरारोपण करती तथा एक ही घरमें कई चूल्हे कर डालती हैं। गृहस्थोंके घरों में कलह व फूटका होना ही उनके नाशका कारण हो जाता है, इसीसे अनेक घराने नष्ट होते देखे गये हैं। इसलिये तू ऐसा वर्ताव करना कि जिससे लोकमें तेरी प्रसंसा हो और स्त्री जाति परसे यह कलह उठ जावे, तथा ब्याहको मनुष्य सांसारिक सुखका साधन समझने लगे। यथार्थमें देखा जाय तो जिस घरमें सती पतिव्रता सुआचरणी स्त्री रहती है, वहां ही लक्ष्मीका वास होता है, और वह घर स्वर्गके तुल्य होता है, इसीसे लोग स्त्रीको लक्ष्मी कहते हैं। और वास्तवमें है भी ऐसा ही कुलान विदुषी सदाचारिणी चतुर स्त्री ही लक्ष्मी है न कि कोई जड वस्तु। (22) लग्न ( ब्याह) के समय जो वचन तूने अपने पतिको दिये हैं, उनको तू सदैव स्मरण रखना, जैसे (1) मम गुरोस्तथा कुटुबीजनानां यथायोग्य विनयसुश्रूषा करणीया ( मेरे गुरु तथा कुटुम्बीजनोंकी यथायोग्य विनयसुश्रूषा करना) (2) ममज्ञान लोपनीया ( मेरी आज्ञा उल्लंघन नहीं करना)(३) कठोर वाक्यं न वक्तव्यम्( कटु वचन न बोलना)(४) मम सत्पात्रादिजनानां गृहागते सति आहारादिदाने कलुषितमनो न कार्यः ( मेरे हितु, संबंधी, मित्र, बांधवादि सत्पात्र दिगम्बर जैन तथा उदासीन संयमी साधु श्रावक वा अन्य साधर्मी आदि जनोंके मेरे घर आने पर आहार आदि दान देने में कलुषित मन नहीं करना)(५) अभिभावकस्य आज्ञा विना परगृहे न गन्तव्यम् ( अपने गुरुजनों तथा संरक्षकोंकी आज्ञा विना किसी

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