________________ [21 पुत्रीको माताका उपदेश emeCREECSEXCSEXSEXSEOCHECREOCTOCHECRECE यस्य पुत्रो वशे भुत्यो, भार्या यस्य तथैव च। अभावे सति संतोषः, स्वर्गस्थोऽसो महीतले॥ अर्थात् जिसका पुत्र, भुत्य और स्त्री वशमें हो तथा निर्धनतामें संतोष हो उसे वहीं स्वर्ग है। इसलिये तू अपना तन, मन और धन अपने पतिको अर्पण कर देना, और पतिसे विमुख स्वप्नमें भी रहना। (38) बेटी! बहुतसी स्त्रियां पतिको वश करनेके लिये व सन्तानकी इच्छासे जोगी जागाड़ा गुनियां, जोषी, भेषी आदिको सेवा करने लगती हैं, और उन्हें अपना धन देती है। यहां तक कि बहुतसी स्त्रियां उनके गंडा फूंदरा, तावीज आदि बनवाने तथा झाडा फूंकी करानेके लिये एकांतमें अकेली अपने ही घरमें या किसी देवी देवताके स्थानोमें व उनके स्थानों पर जाकर मिलती और उनके फंदेमें फंसकर बलात्कार अपना शीलाभरण गुमा बैठती हैं व कोईर देवी, दिहाडी यक्ष, यक्षणि, भूत, प्रेत, भौंरो, भवानी, हनुमान, चंडी, मुंडी, सत्ती पीर, पैगंबर, ग्रहादिकी पूजा करती है, व इन्हें मनानेके लिये समय, कुसमय, ठोर, कुठौर अकेली जाती हैं। वहांपर भी ये दुष्ट पुरुषों द्वारा सताई जाकर अपना शील और द्रव्य दोनों खो आती हैं। क्योंकि प्रायः ऐसे स्थानोंमें चोर और व्यभिचारी पुरुष प्रगट या लुके छिपे रहते हैं। जो समय पाकर छक्का पौ कर डालते हैं। बेटी! इसमें इष्टसिद्धि कुछ नहीं होती है, केवल धन और धर्म जाता है। यदि इन जोगी जांगडोंमें पुरुष वशीकरण और सन्तानोत्पादन शक्ति होती तो घर बैठे ही पूजते, घर घर मारे मारे नहीं फिरते। देवी देवतामें यह शक्ति होती तो वंध्याको, कुंवारीको और सदाचारिणी विधवाको भी पुत्र हो जाता। सो