Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ 20] ससुराल जाते समय ECRECSEOCERCOSECSEOCERCHOICSECRECSEXSEXSECR क्योंकि वर्तमान कालमें ईश्वर ( परमात्मा) की प्राप्तिका साक्षात् द्वार तो नहीं है और न स्त्रियोंको उसी पर्यायमें कभी मोक्ष होता है इसलिये परम्परा उसका द्वार केवल भक्तिमार्ग ही है। (36) बेटी कभी भी शांति, दया, क्षमा, शील, संतोष, विनय, सदाचार व भक्तिको नहीं भूलना और सदा उदार वृत्ति रखना, रीस करके नहीं बैठना, न निकम्मी बैठना और न कभी किसीसे कुछ मांगना व क्रोधके आवेशमें आकर कभी कटु वचन भी मत बोलना। हठ नहीं करना, छुपकर चोरीसे नहीं खाना और अकेली कभी कहीं मत जाना। परपुरुषके साथ कभी मत हसना, उससे एकांतमें बात नहीं करना। यह परपुरुषों अर्थात् समधी ( वेवाई) नंदोई देवर बहनोई आदिसे हसी करने व होली खेलनेकी नीच प्रथा पापी व्यभिचारी जनोंसे चलाई व स्वीकार की है। सो तू इसे स्वीकार मत करना। यह शीलव्रतको घातनेवाली है, ऐसा स्वछन्द वर्ताव दुःखदायी होता है। कहा है"महावृष्टि चलि फूट कयारी जिमी स्वतंत्र है बिगरहिं नारी।" तात्पर्य स्त्रियोंके बालापनमें माता-पिताके, तरुणावस्था और वृद्धावस्थामें पतिके और यदि अभाग्यवश पतिवियोग हो जाय तो पुत्रोंके आधीन रहना चाहिये। (37) बेटी! मैं फिरसे तुझे कहती हूँ, कि संसारमें स्त्रियोंको उनका पति ही देव है, और इसी पतिरूपी देव (ईश्वर) की कृपासे स्त्रियोंको पुत्र पौत्रादि विभव व इहलोक और परलोकमें सुख और यशकी प्राप्ति होती है। जिस घरमें पत्नी, पतिकी आज्ञाकारिणी व पतिव्रता है, और दम्पत्तिमें प्रीति व सलाह हैं वह घर पर्यायमें स्वर्ग-तुल्य है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52