________________ 16] ससुराल जाते समय && &CTESCORRECTECORRECTROCSROCEXSECRECHERCIENCE यदि हम लोगोंका व्यवहार उनके साथ प्रेमपूर्ण रहेगा, हम उनको धर्मसाधनाका सुयोग्य अवसर देगी व घृणाकी दृष्टिसे न देखकर उनका यथोचित सत्कार करती रहेगी, तो उन्हें किन्हीं दुष्ट नर-नारियोंसे मिलनेका समय ही न आवेगा, वे अपने साथ प्रेमपूर्ण वर्ताव रक्खेंगी और अपने प्रत्येक कार्यमें सहानुभूति रक्खेंगी। तथा अपना सती साध्वी जीवन व्यतीत करके अपने उभयलोक तो सुधारेगी ही किन्तु अपने पवित्र आचरणसे स्वधर्म व समाजका भी मुख उज्वल रक्खेंगी। ____ जीवको संसारमें कर्म ही सुख व दुःखका हेतु हैं। यह कोई नहीं जानता कि कब किसको किस स्थलपर किस पुण्य पापकर्मका उदय आ जायगा। और उस समय उसकी क्या दशा होगी। तब इस समय जो दूसरोंको हंसता, घृणाकी दृष्टिसे देखता या अधिकार व अवसर पाकर उसे यातनाएं देता है, पीछे उसकी भी उक्त दशा होती है। इसलिए बेटी! कभी किसीको तुच्छ न समझना चाहिए। न निर्बल समझकर दुःख देना चाहिए। निर्बलोंकी हाय कभीर बहुत अधिक दुःखदायक होती है कहा है निर्बलको न सताइये, जाकी मोटी हाय। मुए ढोरके चामसों, लोह भस्म हो जाय॥ इसलिए सदैव उनसे योग्य व्यवहार करना तथा चतुराईसे उनको उनके योग्य कर्तव्य बताते रहना। यदि वे पढ़ी हों तौ उत्तमोत्तम नीति व धर्मकी पुस्तकें, सती साध्वी ऐतिहासिक या वर्तमान महिलाओंके जीवन चरित्र पढ़नेको देना, यदि पढ़ी न हों और बाल या तरुण वयवाली हों तो बम्बई, ईन्दौर, आरा आदिके श्राविकाश्रमोमें भिजवानेकी चेष्टा करना। यदि अधिक वयकी