Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 8
________________ ससुराल जाते समय EXSEOCEROSCOREOCOSEXMORCHESTROTECHKOSHOCTOR लट (सुन्डी, इल्ली) आदि जीव उत्पन्न हो जाते हैं, सो विना शोधे भोजन बनानेमें एक तो इम बिचारे अवाक् जीवोंकी हिंसा होती है दूरसे इन जीवोंका कलेवर तथा विषैले मलादिक पदार्थ पेटमें पहुंचकर रोगादि पैदा करके बहुत हानी पहुंचाते है, और कभी तो इनके प्राणों तक घातका हो जाता है। (14) बेटी! प्रातःकाल उठकर प्रथम ही घरको झाड़ बुहार तथा लीप पोतकर सामनेके मार्गमें स्वस्तिक (साथियां) निकालना, क्योंकि यह द्विजो (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य आदि उत्तम वर्णों) के घरोंका चिह्न है। यह चिह्न ऐसे स्थानमें बनाया जाय जिससे सर्वसाधारण लोगोके दृष्टिगोचर होता रहे और जिसे देखकर मुनि आदि सत्पात्र भिक्षाके लिये भी आ सके। (15) गृह-चैत्यालयकी सम्हाल भले प्रकार रखना और नित्य तीनों समय अवकाशानुसार श्री अर्हतदेवकी मूर्तिका दर्शन, स्तुति, पूजन व वंदन आदि भक्ति करना और स्वप्नमें भी कभी अन्य रागी द्वेषी कुदेवोंकी आराधना नहीं करना। क्योंकि इनके (कुदेवोंके) आराधनसे लौकिक कार्यकी तो सिद्धि होती ही नहीं और फलस्वरूप परलोकमें जन्म-मरणादि अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं। (16) बेटी! अपने माथेके बाल बिखरे मत करना किंतु इस प्रकार गूंथकर बांधना कि जिससे वे टूटकर इधर उधर भोजनादि पदार्थोमें न पड़े और तेरी गणना उच्च कुलांगनाओंमें की जावे। अपने पतिमें श्रद्धा रखकर नित्य प्रातःकाल स्नानांतर कर माथेमें कुमकुमकी टीकी करना। यह सौभाग्यवती स्त्रियोंका

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