Book Title: Sarva Siddhanta Stava
Author(s): Jinprabhasuri, Somodaygani
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 15
________________ 14 + चार प्रकार के शूर है-क्षमाशूर, तपशूर, दानशूर और युद्धशूर । + अचित्त वायुकाय के पाँच प्रकार है आक्रान्त, ध्वान्त, पीलित, शरीरानुगत, और सम्मूर्छित । पाँच स्थान द्वारा जीव दुर्लभबोधि करने वाला कर्म उपार्जित करता है। अरिहंत का अवर्णवाद करने से, अरिहंत प्ररूपित धर्म का अवर्णवाद करने से, आचार्य-उपाध्याय के अवर्णवाद करने से, चार प्रकार के संघ का अवर्णवाद करने से, ब्रह्मचारी तपस्वी का अवर्णवाद करने से । + रोगोत्पत्ति के नौ स्थान है-भूखा रहना, अधिक खाना, अतिनिद्रा, अतिजागरण, मूत्रनिरोध, मलनिरोध, लम्बी सफर, प्रतिकूल भोजन, इन्द्रिय कोप। + भगवन् ! जीव शुभ कर्म किस तरह बांधते है ? गौतम ! सम्यग्दर्शन की शुद्धि से, मन-वचन-काया के प्रशस्त योग से, इन्द्रिय के निग्रह से, क्रोध को जितने से, धर्म और शुक्ल ध्यान से, आचार्य-उपाध्याय-साधु और साधर्मिक की भक्ति करने से, दान-शील-तप-भाव रूप धर्म की प्रभावना करने से, वैराग्य से, निःसंगता से और संविभाग से । इस दस प्रकार से जीव शुभ कर्म बांधते है । स्थानांग सूत्र को मैं नमन करता हूँ। ___(१३) समवायांग में एक से लेकर लक्षादि संख्या के अनुसार अर्थों का निरूपण है। सज्जनों का समूह जिसके गुणगान करता है ऐसे समवायांग की मैं स्तुति करता हूँ। (१४) पाँचवे अंग का नाम विवाहप्रज्ञप्ति है। इसके चालीस शतकों (अर्थाधिकार) में सेंकडो उद्देशक है, छत्तीस हजार प्रश्न और उसके उत्तर है। इसमें बहोत सारी युक्तियाँ एवं एक सरीखे पाठ है, इसलिये अल्पमति व्यक्ति के लिये कठिन है। नानाविध पदार्थ के कोशग्रन्थ समान भगवती विवाहप्रज्ञप्ति

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