Book Title: Sarva Siddhanta Stava
Author(s): Jinprabhasuri, Somodaygani
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ 21 रूप से भी किया गया है । गणधर रचित सूत्र अंगप्रविष्ट है, स्थविर रचित सूत्र अंगबाह्य है। नियत या निजक सूत्र अंगप्रविष्ट है, अनियत या अनिजक सूत्र अंगबाह्य है। इस तरह अनेक प्रकार से विभक्त श्रुत का मैं ध्यान करता (४१) अंगविद्या नाम के आगम में पन्द्रह आदेश है । वे स्वप्न में आकर या अन्य रीत्या तीनों काल की घटना का जो कथन करते है वह सच साबित होता है । इस आगम में दिखाई गई विद्या पापरहित विधि से साध्य है । अंगविद्या मुझ पर प्रसन्न हो । (४२) विशेषणवती (श्री जिनभद्र क्षमाश्रमण), सम्मति (श्री सिद्धसेन सू.), नयचक्रवाल (श्री मल्लवादी सू.) तत्वार्थ (श्री उमास्वाति म.) ज्योतिषकरण्ड (पादलिप्तसू.), सिद्धप्रामृत (अज्ञात), वसुदेवहिण्डी (श्री संघदास ग.) इन ग्रन्थो को मैं प्रणाम करता हूँ। (४३) कर्मप्रकृति (शिवशर्मसू.) कर्म के स्वरूप का प्रतिपादक ग्रन्थ है। ऐसे पूर्वसूरि रचित प्रकरण अनेक है। यह प्रकरण ग्रन्थ सिद्धान्त रूप सागर से निकले अमृत की बुन्द जैसे है। इन प्रकरण ग्रन्थों को हम आत्मसात् करते है। ___ (४४) व्याकरण, छन्द, अलंकार, नाटक, काव्य, तर्क, गणित इत्यादि मिथ्यादृष्टि प्रणित होने से मिथ्याश्रुत है फिर भी सम्यग्दृष्टि के स्वीकार से पवित्र बनता है। ऐसे श्रुतज्ञान की जय हो । (४५) श्री नमस्कार महामन्त्र हर एक सूत्र में अन्तर्निहित है और पाप का नाशक है। श्री सूरिमन्त्र शासन की प्रवृत्ति का प्रथम निमित्त है। इन दोनो मन्त्रो को मैं नमस्कार करता हूँ। __(४६) इस प्रकार जो पुरुष जिन प्रणित सिद्धान्त के इस स्तव रूप गुण गण कथा का पाठ करता है उस पुरुष पर श्रुतदेवता प्रसन्न होती है और वरदान देती है। इतना ही नहीं वह मुक्ति स्त्री, उस पुरुष के समागमन उत्सव

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69