Book Title: Sarva Siddhanta Stava
Author(s): Jinprabhasuri, Somodaygani
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 20
________________ 19 अनुद्धात प्रायश्चित्त का आरोपण करने के स्थान इस सूत्र का मुख्य विषय है। निशीथ सूत्र को मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ। (३५) दशाश्रुतस्कन्ध में दस अध्ययन है। नियुक्ति, भाष्य आदि द्वारा उसका बहुत अर्थविस्तार हुआ है । यह सूत्र गम्भीर है, अन्यमति इस सूत्र का तात्पर्य जानने में सर्वथा असमर्थ है । कल्पसूत्र, बृहत्कल्प नाम से प्रसिद्ध है। इसमें साध्वाचार का वर्णन है । व्यवहार सूत्र में साधु के व्यवहार का वर्णन है। (३६) पंचकल्प में छः, सात, दस, बीस और बीयालीस प्रकार के आचार का विस्तृत वर्णन है । वह हमें वांछित फल प्रदान करें । __ (३७) आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत इस पाँच प्रकार के व्यवहार है । सब से अन्तिम जीत व्यवहार है । वर्तमान में प्रायश्चित्त विधि इसके अनुसार ही चलता है । इसलिये यह प्रधान है। जीतकल्प तीर्थलक्ष्मी का वेष है । मैं उसका आश्रय करता हूँ। (३८) महानिशीथ सूत्र की साधना पैंतालीस आयम्बिल से की जाती है। यह सूत्र महिमा रूप औषधियों के लिये चन्द्र समान है। विपरीत मति वाले इसे बाधा पहुँचाने के कतई समर्थ नहीं । मोक्षमार्गभूत इस सूत्र की मैं पूजा करता हूँ। __(३९) आगमों के अनेक व्याख्या प्रकार है । नियुक्ति में सूत्र द्वारा प्रतिपादित अर्थ के भेद प्रकार का निरूपण होता है। भाष्य, सूत्र द्वारा प्रतिपादित अर्थ का विस्तार करता है। वार्तिक, सूत्र द्वारा प्रतिपादित उक्त, अनुक्त और दुरुक्त अर्थ की चिंता करता है। संग्रहणी, सूत्र द्वारा प्रतिपादित अर्थ का संग्रह करती है। चूणि का अर्थ अवचूणि है (संक्षिप्त व्याख्या) । टिप्पन में विषम पद की व्याख्या होती है । निरन्तर व्याख्या का नाम टीका है। आगमों का अर्थविस्तार करने वाले इन ग्रन्थो का सदा हमारे मन में निवास हो । १. उत्सर्ग-मुख्यमार्ग, अपवाद-कारण होने पर निषिद्ध का आचरण । उद्धातगुरु नाम का प्रायश्चित्त, अनुद्धात-लघु नाम का प्रायश्चित्त) ।

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