Book Title: Sarva Siddhanta Stava
Author(s): Jinprabhasuri, Somodaygani
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ 13 ग्यारह अंग (१०) आचारांग में आचार का वर्णन है। उसकी पाँच चूडा अथवा चूलिका है। सूत्र में जो बातें बतानी बाकी रह गई है उसका अनुवाद चूलिका में होता है। आचारांग के महापरिज्ञा नाम के अध्ययन में आकाशगामिनी विद्या का विधि है। इस विद्या का सहारा लेकर श्री वज्रस्वामी ने बौद्धो ने जैन धर्म को हलका दिखाने के प्रयास को नाकाम किया था। (टी.-एकबार उत्तरा में अकाल पड़ा । उस समय श्री संघ को पट्ट के उपर बिठा कर वज्रस्वामी पुरिका नगरी में ले आये । वहाँ का राजा बौद्ध था । उसने जिनालय में पुष्प पूजा करने का निषेध किया । पर्युषणा पर्व में पुष्प पूजा न होने की वजह से संघ खिन्न हुआ । श्रावको ने वज्रस्वामी को इस तरह के अपमान से बचाने की विनती की । वज्रस्वामि ने आकाशगामिनी विद्या का प्रयोग किया । माहेश्वरी नगरी में हुताशन यक्ष के वन से और हिमवन्त पर्वत से श्रीदेवी के पास से लाखो फूल लाकर संघ को अर्पित किये। इस तरह वज्रस्वामि ने शासन की महती प्रभावना की ।१) मैं आचारांग सूत्र का स्वीकार करता हूँ। (११) सूत्रकृतांग सूत्र के दो श्रुतस्कन्ध है । इस सूत्र में बतायी गई युक्तियाँ तीन सौ तेसठ पाखण्डियों के अभिमान को चूरचूर करने के लिये वज्र जैसी है। (१२) स्थान का अर्थ है-अधिकार । स्थानांग में दस स्थान अधिकार द्वारा जीवादि पदार्थो का निरूपण है। जिस प्रकार कल्पवृक्ष हर एक इष्ट वस्तु देता है, उस प्रकार स्थानांग सूत्र हर एक प्रश्न का उत्तर देता है । इस सूत्र में विशिष्ट पदार्थो का वर्णन है । कुछ एक प्रस्तुत है - तीन प्रकार के इन्द्र है । देवेन्द्र, असुरेन्द्र और मनुष्येन्द्र । १. सन्दर्भ - कल्पसूत्र किरणावली टीका । उपा. श्री धर्मसागरजी । स्थविरावली पत्र-३४९ । प्रवचन प्रकाशन)। २. वज्र इन्द्र का हथियार है । वह कभी निष्फल नही जाता, न ही कोई शस्त्र उसे भेद सकता है। तीन सौ तेसठ पाखण्डी क्रियावादी वि. है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69