Book Title: Sarva Siddhanta Stava
Author(s): Jinprabhasuri, Somodaygani
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 17
________________ 16 है। बाकी के दस गणधर श्री सुधर्मा स्वामी के पहले ही मोक्ष पा चुके थे। इसलिए उनके शिष्यो ने श्री सुधर्मा स्वामी की वाचना को ग्रहण किया था । स्तवकार ने भी इसी लिए प्रारम्भ में श्री सुधर्मा स्वामी को नमस्कार किया है। बारह उपांग (२१) अंग के समीप रहने वाले सूत्र को उपांग कहा जाता है। पहला औपपातिक सूत्र आचारांग का उपांग है। अन्य आगमों में औपपातिक सूत्र का अतिदेश किया है। अतिदेश का अर्थ है-पुनरुक्ति से बचने के लिये जहाँ पर प्रस्तुत पदार्थ का विस्तार से वर्णन है उसका नामोल्लेख से निर्देश करना। जैसे 'सेसं जहा उववाइए' कहकर औपपातिक सूत्र का अतिदेश किया है। औपपातिक सूत्र में देव और नारकों के उपपात का विस्तार से वर्णन है । विद्वज्जनों को विनति है कि आप इस सूत्र को नमन करें । आचारांग के शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सूत्र है'एवमेगेसिं नो नायं भवइ'। इसका अर्थ है - आत्मा का उपपात होता है-यह बात कुछ एक लोगों को ज्ञात नही है। इस सूत्र का यह तात्पर्य नहीं है कि-आत्मा का उपपात सर्वथा अज्ञात होता है, पर यह है कि - आत्मा का उपपात अल्प अंश में ज्ञात है पर विस्तार से अज्ञात होता है । आचारांग सूत्र की यह बात औपपातिक सूत्र में विस्तार से बताई गई है। (२२) राजप्रश्नीय सूत्र, सूत्रकृतांग का उपांग है । केशी गणधर ने प्रदेशी राजा को प्रतिबोधित किया था । मृत्यु के बाद वह सूर्याभदेव हुआ। प्रभु श्री वीर को वन्दन करने समवसरण में आया । उसका अद्भुत तेज देखकर श्रीगौतमस्वामि ने प्रभु को प्रश्न किया कि - 'इस देव का तेज अन्य देवो से श्रेष्ठ क्यों है ?' । उत्तर में प्रभु ने केशी-प्रदेशी का जीवनवृत्त कहा । केशी गणधर और प्रदेशी बीच के आत्म विषयक चर्चा हुई थी। आत्मा के अस्तित्व

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