Book Title: Sarv Tirtho Ki Vyavastha Author(s): Shitalprasad Chhajed Publisher: Shitalprasad Chhajed View full book textPage 9
________________ १४ बांकीपुर जंक्शन टेसन उतरना यहांसे दुसरौ रेलमें बैठ कर गयाजी जाना यह सहर है। मौ० ५७ मा० ) १५ गयाजी टेसन उतरना सहरमें ध. सरांय है सवारी सब मिलती है यहांसे खुसको जाना सडक है। मौ० २८३ मा० ३॥) १-१५ सहरघाटी कोस १० है सवारी जाय है आगे सड़क नहीं हे को० ४ हण्डरगञ्ज है वहांसे को० १ हटवरीयागांव पूर्वहै जाना १ शास्त्र में इस स्थान को भद्दलपुरनगर तीर्थ कहाहै १० में भ० के कल्या. ४ च. ज. दि. ज्ञा० भएहैं अव तीर्थ बौछेदहै खेत्र फरसना होतीहै गांवके पास १ छोटासा पहाड़ है उसपर १ मंदौर बनाहै उसमें मूर्ती विराजमानथौ आगे अवनहींहै १ पत्थरमें प्राचीन लोपौ पालीहरफोंमें बहुतसा लिखा लगाहै नीचे देवौका मंदिर नदी है जिनस सब जगह मिले हैं। यहांसे पौछे उसौ रस्ते से गयाजौ आनकर रेलमें वांकीपुर टेशन जाना वहांसे रेलपर दसरौ बैठकर इलाहावाद प्रयागजी जाना। -- - १६ इलाहावाद जंक्शन ष्टेसन उतरना सहरहै वजारमै सरांये उतरनेको बहोतहै वहांसे खुसको को० २ कौला है तथा नैनौ जंक्शन टे सनसे रेल झब्बलपुर वगैरेको होतो बम्बई गई है। १-९६ शास्त्र में इसे पुरमतालनगर तीर्थ कहाहै यहां १ ले भ. का कल्या. १ ज्ञा० भयाहै तीर्थ वौछेदहै खेत्र फरसना होती है कौलेके भौतर १ ताखाना है उसमें सादे पाषाणके वड़े चरण रखे हैं श्रीज्ञानि भगवान जाने क्या है कुछ हरफ लिखे नहींहै चिह्न भौ हैनहीं पण्डा लोगोंके कहे मुजव लोग उसौ चरणके दर्शन वगैरा करते हैं सहरसे को० ३ पै मुठौगञ्जमें १ मं० शिखरवन्द ध० बनौहै प्रतिष्ठा नहीं भईहै कारणसे। इसे प्रागजी भी कहते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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