Book Title: Sarv Tirtho Ki Vyavastha
Author(s): Shitalprasad Chhajed
Publisher: Shitalprasad Chhajed

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Page 41
________________ ॥ बिनती पत्र ॥ ॥ समस्त श्रीसंघसे अरज है मैंने अपनी बुद्धि अनुसार जहांतक जानकारयौ वा तलास करनेसे पता पाया वहांतक इस पुस्तक में वा नसें में लिखाहै इसमें कुछ फरक वा भूल वा अशुद्धता होय तो क्षमा करना माफ कराताई वाचनेवाले वा जानकार लोग सुधकर देंगे। ___॥ यह पुस्तक यात्रौ लोगोंको सूर्यवत् प्रकाश करनेवाली है साधर्मी भाईलोग अनुग्रह करके इस पुस्तकको खरीदकर अपने पास यत्नसें रखेंगे उसे वड़ा लाभ उपगार होगा कारण साधर्मी भाई लोग बड़े उत्साह में तीर्थयात्रा करने आते हैं परन्तु सर्व तर्थों को फरसना उदे नहीं पाती अजानपनेसे जोरबड़े२ तीर्थ प्रसिद्ध है उनकी यात्रा करके पीछे चले जाते हैं इस वातका चित्तमें बड़ा खेद होताहै महापुण्य के उदेसे अन्तराय टुटने पर धर्मकार्य तीर्थ यात्रा दिक उदे पाती हैं सो संपूर्ण कल्याणक भूमी वगैरे तीर्थ की फरसना नहीं होती रस्ते में रेलके टेशनोंसे कोस १।२।४।१० पै तीर्थ है परन्तु अजानपनेसे वहां जाने में नहीं आता बलके बहोत श्रावकलोगोंको तो मालुमभी नहीं होगा कहांर तीर्थ हैं भगवानके कल्या. क्यार भएहैं उन नगरियोंका शास्त्रों में क्या नामथा कालके दोषसें अब क्या नामसे प्रसिद्द हैं सो हाल सर्व इस पुस्तकमें खुलासे लिखा है दर्पणवत् जिसके वाचनेसे साधर्मी भाईयोंको मालुम होगा तो तीर्थयात्रामें साहज मिलेगी अवस्य सर्व तौयोंकी फरसना करेंगे कल्याणक भूमौ वगैरा जो रेलके रस्ते में आते जाते पड़तौहै और खरच तो उतनाही आने जाने में लगता है परन्तु अजानपनेसे तीर्थादिककी फरसना उदे नहीं पातौहै कैसे२ उत्तम स्थान लाखों रुपये खरचके पुण्यवानोंने वनाये हैं चमत्कारीक देखने फर्सने योग्य। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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