Book Title: Sarv Tirtho Ki Vyavastha
Author(s): Shitalprasad Chhajed
Publisher: Shitalprasad Chhajed

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ [ ३६ ] संघको उद्यम करके तौर्थ प्रगट करना उचित है उसे धर्मका उद्योत पुरुषका बंध यश लाभ उपगार होगा श्रीसंघ सेवाय कौन समर्थ है । और थोड़े थोड़े द्रव्यके खरचनेसे तीर्थ स्थान वन सकते हैं बहोत खरचेका काम नहीं है अनंत कल्यानी श्रीमंघ है मेरौ विनती सुनेगे जरूर धरमरागको नजर देकर एकसे एक पुण्यवान् संध में है वर्त्तमानमें अब भी लाखों रुपये खरच करते है धरम काय्र्यमे नवीन जिन मंदिर वगैरामें तो यह काम तो सर्वसे उत्कृष्टा है करने योग्य | और जो सहर ग्रामसे तीर्थयात्रा करनेको श्रावक लोग उद्यत होंय उस जगेसे दिसाका सुमार करके पूर्व पश्चिम का रेलवे के टैम टौवलमें डौन अप देखकर रस्ता इस पुस्तक में समझ लेगे कौधर से कौन कौन तीर्थं आवेंगे रस्ता सौधा पड़ेगा तोर्थ सर्वकौ फरसना होगी कारण इस पुस्तक में क्रम पूर्वसे प्रारम्भ करा है पश्चिम जाने को उस मुजब तौथका नाम रस्तेका लिखा है सौधा घुमने को । + पूर्व में कलकत्तेसे लगाय दिल्ली पंजावतक रेलके ष्टेशनो पर वा खुसको रस्तों में वा सहरोंमें धर्मशालाका चलन बहोत कम है हमेसां से सरांयका चलन बहोत है सरांये जगे जगे हैं इष्टेशनों पर खुसकी रस्ते में सहरोंमें सब जगे वनौ है मुसाफिर लोग उसमें उतरते हैं भाड़ा देकर धरमशालाका चलन वन्दोवस्त अव होता जाता है जगेर और अवधके जौलेमें वा माड़वाड़ के जलेमें रातको ष्टेशनो 'परसे सहर में ग्राम में जाना नहीं हरतरोका डर भय रहता है रात को रस्तेमे जङ्गल वगैरा पड़ता है सवारी भी नहीं मीलती है कहीं २ इस कारण से टेशनो पर रातकों रहते हैं दिनको सहर मे जांयहैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42