Book Title: Sarv Tirtho Ki Vyavastha
Author(s): Shitalprasad Chhajed
Publisher: Shitalprasad Chhajed

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Page 39
________________ [ ३७ ] नहीं कहाहै। (सुतेको जगाइये। जागतेको कहा जगावना है) ज्यादा क्या अरज करे तोर्चाका प्रगट करनेका जीर्ण उद्धारादीकका वंदोवस्त करना श्रीसंघ समस्तको बहोत जल्दी उचित है थोड़े द्रव्य का खरच है लाखो रुपएको लागतके स्थान वने हैं अभी सैकड़ों रुपए खरचनेसें मरम्मत होजानेसे बहोत कालतक बने रहैगें जीर्ण उद्धार नहीं होनेसे कुछकालमें गौर जायगे तो नए वनने वड़े कठिन है इस बातको दोघं दृष्टि देकर खूब गौर करना उचीतहै →००>< । विज्ञापन । यह पुस्तक जिसको मगानेको इच्छा होय सो कीमत मेजकर डांकमासूल समेत जौती दरकार होय १ से लगाय १००० तक हमेसा मिलेगी छपो भइ तयार रहतौहै इस ठिकानेसे बाबू माधोलालजी दुगड़ जवहरीके कोठीमें नंवर ४१ बड़तला ईष्ट्रीट कलकत्ने में तथा मगानेवाले साधर्मी भाई अपना ठीकाना नाम जौला सहर वगैरेका खुलासे लिखेगें जिसमें ठिकानेसे पुगजाये। और खुलासे हाल विस्तारसे इस पुस्तकमें लिखाहै ठिकाने ठिकाने जो जो तीर्थ विद्यमान है वा नहों विद्यमान है वगैरा वर्तमान हाल पुस्तक सव पढ़नेसे समझने में प्रावेगा कर कंकनवत् सुगमतासे । और पुस्तकके अन्तमें लिखाहै जो जो तीर्थ बौछेद है वा कल्या. नक भूमौ उसका हाल खुलासे उसपर उपगार वा धर्म का उद्योत वा लाभको दृष्टौ देकर समस्त श्रीसंघको विचार करना मुनासिव है श्रीसंघका घर बड़ा भारी है ऐसे ऐसे तीर्थ बौछेद है तो अवश्य श्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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