Book Title: Sarv Tirtho Ki Vyavastha
Author(s): Shitalprasad Chhajed
Publisher: Shitalprasad Chhajed

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Page 36
________________ [ २४ ] दिवाल गिरपड़ी है तलाव के हैं वा कुंवे मोठे जल के बहोत है पक्के बने भए उत्तम मेवादिक फुलके वृक्ष लगेहैं नौचे नदी बहतीहै जंगल है इंटा मसाला वगैरा बहोत पड़ाहै पोरवी वस्तु गड़ी भई नौकले तो ताज्जुब नहीं है भाग्यबलसे वह जगे दिव्वर करता है वहांसे थोड़ी दूरपै १ छोटी गढी और है महाराज बलरामपुरका राज्य है राजधानौसे को• ५ जंगल में खेटमेटका कौल्ला प्रसिद्ध है अब रानी साहव मालीक है सरकारसे कोटा फाडोसका वन्दोवस्त है खेवट करनेसे जगे मोल सकतौहै राजासाहेव पुण्यवानने तो हर १ जौहरौ लोगोंसे बहोत कहाथा तुम्हारा तीर्थ है बनावो मेला करा करो हम जगे यौही देते हैं वा जगात वगैरा माफकरदेंगे आप लोग रहोसौका पाना जाना राजधानी में इस सबबसे हमेसा रहेगा इसे मगर कोई साहिबने ख्याल करा नहीं बड़ा अफसोस है लिखते बनता नहीं कुछ रस्ता फैजावाद तक रेल है वहांसे को. ३० गोंड होकर खुसको सड़क है बराबर यहां ३ रे भ• के कल्या० ४ भए हैं श्रीसोरीपुर मगर तीर्थको वटेखर नामसे प्रसिद्ध है को० १ यमुना जौके वीएड में प्राचीन चरणको स्थापनाथौ पहले उसके पासमें खसकरके श्रीसंघने १ गुमटी बनाकर संगमरवरको वेदो में १ चरण बहोत मनोहर बने भए को स्थापना करोयौ । पाले में अधिष्ठाता को मूर्ती संगमरवरको मनोहर थापो वाद थोड़े बरसोंके भूलगए तीर्थ कहां पूजा सेवा होतीहै के नहीं कौन करता होगा जरा ख्याल रखा नहीं वहांसे को०१८ लसकर वा पागरा सहरहै दोनों सहरोंके औसंघ धरमके रागी समुदायहै तीसपरभी अपने करे भए को भुल भए कैसा धरमराग चौसंघकाई कुछ लिखते बनता नहीं है ताज्जुब होताहे मनमें जंगलमें गैया चराने ग्वालोये जाते हैं उत्तम खान देखकर उसमें बैठते खेलते हैं वेदीपर चढ़कर उस कारणसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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