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[ ३२ ] १ कोने में गुमटीके भीतर उचित स्थानपर विराजमान कर दियेथै सो भागलपुरके मंदिरजीमें विराजमान है चरण मिथिलाजी तीर्थ के खास तथा मिथलाजी में राजाका राज्य है प्राचीन स्थान हाथ आना कठिनहै बहोत वरस गुजर गये उस बखत उद्यम करते धनपतसिंघजी तो गुमटी मिल जातौ अव नवीन जमीन लेकर श्रीसंघ तीर्थ प्रगट करे उद्यम करके तो हो सकताहै और उपाय नहीं है रस्ता रेलका है मुकामा टेशनसे गङ्गा पार जाकर सौतामडीको रेल है दरभंगे होकर यहां कल्या० ८ दो भ० के भये हैं।
३ श्रीपुरमतालनगर तीर्थ में बहोत बरसोंसे ऐसाही चला आताहै प्रयागजीके कोलेके भीतर तलघरैमें १ तरफ अक्षयबड है उसको अन्यमतो लोग आपना तीर्थ मानते हैं पूजते हैं उसके पास दलानमें १ मूर्ती पाषाणकी है उसे डिगांवरी लोग पूजते हैं उसके पासमें चरण है पाषाणके उसको लोगोंके कहने मुजव सौतंवरी लोग पूजते हैं उस चरणों पर कुछ लिखा नहीं है हरफ तथा लंछन वी नहीं है श्रोग्यानी भगवान जाने क्याहै चरन जैनके हैं वा औरके हैं निश्चमें क्षेत्र फरसना होती है सो लोग करते हैं तथा सहरसे को. ३ पै मुठीगंज है सडकपर खुसको रस्त के ध० मं० सौखरवंद १ पुण्यवान ने तीर्थ प्रगट करनेको बनाया था जब रेल नहींथी खुसको रस्ता था सो मौके पर बनायाथा कालके दोषसे उपद्रवके सववसे प्रतिष्ठा जी महीं होने पाइ ५० वरस होगए मं० खड़ाहै इसकी खेवट श्री. संघ करता नहीं है गवरमेंटसे दरखास्त करके अपनी जगे दखल अभौतक दिखाकर स्थापनाका हुकम करा ले तो हो सकताहै जब काल और वरतथा अब राजधानी सरकारमें व्यवहार रौति और वरते हैं अपने अपने धर्मको इसे उमेद होतीहै उद्यम बड़ा पदार्थ है मगर किसे गरज धर्मरागहै सो खेवट कारे रस्ता रेलकाहै इलाहावाद टेशन तक वहांसे को० १ है यहां १ले भ• का कल्या० १ भयाहै।
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