Book Title: Sarv Tirtho Ki Vyavastha
Author(s): Shitalprasad Chhajed
Publisher: Shitalprasad Chhajed

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Page 33
________________ [ ३१ ] याफत करा अपना स्थान तो उन लोगोंने अपना आडंवर उठा लिया स्थान बताकर पूजा लिया जब यात्रौ चला गया फेर अपना ढांचा लगा लिया वहीत दिन तक यो ही चला कोई श्रीसंघने ख्याल नहीं करा दिन बहोत वीत गये उन लोगोंने बिचारा कोई वारस खबर लेता नहीं है तो इनका नाम निसान उठा दो अपना कर लो ठिकाना कालके दोषसे दुष्टबुद्धियोंने ऐसा विचार कर चरणों को गुमटीमेंसे उखाड़ गेरे डर रहा नहीं जब आना जानाथा तब डरथा चरण कहीं गाड़ दिये इतना अनुग्रहकराके अनर्थ नहीं कराथा गुमटीमें दखल करके अपना मंदर कर लिया उस खान पर अपना कुछ नाम निसान रहा नहीं बहोत दिन बाद लखनउसे कोई पुण्यवान तीर्थ करनेको गएथे बहोत तलास करा पता लगा नहीं जड़ तो रही नहीं पता मिले कहांसे वह श्रावक बुद्धिवानधे इन लोगोंको बातोंमें समझ गये इन लोगोंने लावारस जगे समझ कर अनर्थ करगेराहे स्थान अपना कर लिया तब बुद्धिवानने बुद्धिबलसें द्रव्यका लालच दिया हमे जगेसे मतलब नहींहै यहां जो चरणथे वह मिल जाय तो द्रव्य देंगे ग्रामके रहनेवाले ब्राह्मणथे द्रव्यके लालच में प्राके चरण लायके हाजिर करे पुण्यवानने चरण लेकर भागलपुरमें चंपापुरजीको यात्राको आए वहां धनपतसिंघजोसे मुलाकात हो गइ हाल सब कहा कुछ वन्दोवस्त करा नहीं सुनकर चरण लेलौये बहोत वेजा करा उस बखत उद्यम करवे जोर देते तो स्थान हाथ पानाता इन्होंने भागलपुरके अपने मंदिरजीमें वेदोजौके नीचे सोडौको जगे स्थापनाकर दियाथा अजान आदमौ चरण नहीं समझेगा वेदीपर चड़नेको सौड़ी समझकर पैर रखदेगा तथा पूजारौ वेदो झाड़ता पूजाके बखत तो सब कतुवार चरणों पर मिरता ऐसौ असातना देखि मय जाबर करने गयाथा तब बहोत जवरदस्तीसे मंदिरजौके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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