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कार्तवीर्यविधिरत्नम् - ले. शिवानन्द भट्ट । श्लोकसंख्या- 13801 कार्तवीर्यार्जुनदीपचिन्तामणि - ले.महेश्वरभट्ट। श्लोकसंख्या2201 कार्तिकेयविजयम् - ले. गीर्वाणेन्द्रयज्वा । कार्मन्द और काश्वि - काशिकावृत्ति (4-3-111) में इन नामों का उल्लेख है । ये दोनों किसी वेद की शाखाएं मानी जाती हैं। कार्यकारणभावसिद्धि - ले. ज्ञानश्री। ई. 14 वीं शती। बौद्धाचार्य। कालचक्रतन्त्रम् - श्लोक 3000। आदिबुद्ध द्वारा उद्धृत। 5 पटलों के विषय हैं : 1) लोकधातुविन्यास, अध्यात्मनिर्णय, अभिषेक, साधन, ज्ञान इत्यादि । कालज्ञानम् - (कालोत्तरम्) - 18 पटलों में पूर्ण। इसमें शिव-कार्तिकेय संवाद द्वारा सकल और निष्कल के स्वरूप, परमात्मा की सर्वव्यापकता, सर्वव्यापक परमात्मा की पुरुष के शरीर में बाह्याभ्यन्तर स्थिति बतायी गयी है। त्रिमात्र, द्विमात्र, एकमात्र, अर्धमात्र, परासूक्ष्म है। उससे परे परात्पर हैं। ब्रह्मा हृदय में, विष्णु कण्ठ में,रुद्र ताल के मध्य में, महेश्वर ललाट में स्थित में तथा नादरम्ध को शिव जानना चाहिये। कालनिर्णय - ले.-तोटकाचार्य। ई. 8 वीं शती। कालनिर्णयकारिकाव्याख्या - ले. नारायण भट्ट। ई. 16 वीं शती। कालनिर्णयकौतुकम् - ले. नंदपंडित । ई. 16-17 वीं शती। कालनिर्णयसंक्षेप - ले. हेमाद्रि। ई. 13 वीं शती। पिताकामदेव। कालबंवी शाखा (सामवेदीय) - कालवी शाखा के ब्राह्मण ग्रंथ के प्रमाण अनेक ग्रंथों में मिलते है। परंतु कालबवियों की कल्पना, निदान और संहिता दर्शन आदि विषयों में कुछ भी ज्ञात नहीं है। कालरात्रिकल्प - पार्वती-ईश्वर संवादरूप। श्लोक 550। यह ग्रंथ 13 पटलों में पूर्ण है। इसमें देवी कालरात्रि की पूजा, देवी के मन्त्रों द्वारा मारण, मोहन, स्तंभन आदि षट्कमों की सिद्धि कहीं गयी है। चार पुष्पिकाओं के अनुसार यह ग्रन्थ रुद्रयामलान्तर्गत और एक पुष्पिका के अनुसार आगमसार से सम्बद्ध कहा गया है। मन्त्रमहिमा, मन्त्रस्वरूप, मन्त्रोद्धार आदि विषय इसमें वर्णित हैं। कालरात्रिपद्धति - ले.अद्वयानन्दनाथ । कालरुद्रतन्त्रम् - शिव-कार्तिकेय संवादरूप। श्लोक 8801 पटल 21। इस ग्रंथ में धूमावती, आर्द्रवती, काली, कालरात्रि इन नामों से अभिहित कालरुद्र की शक्तियों के मंत्रों से मारण, मोहन आदि तान्त्रिक षट्कमों की सिद्धि वर्णित है। यह कालिकागम से गृहीत तथा आथर्वणास्त्रविद्या के नाम से प्रत्येक पुष्पिका में अभिहित है। धूमावती आदि की विद्या, मन्त्रोद्धार,
मन्लविधि, पूजा इत्यादि साधन क्रियाएं इसमें सांगोपांग वर्णित हैं। कालविवेक - ले.जीमूनवाहन। बंगाल के निवासी। प्रस्तुत ग्रंथ में विषय हैं- ऋतु, मास, धार्मिकक्रिया-संस्कार से काल, मलमास, सौर व चांद्र मास में होने वाले उत्सव, वेदाध्ययन के उत्सर्जन अगस्त्योदय, चतुर्मास, कोजागरी, दुर्गोत्सव, ग्रहण आदि का विवेचन। कलिसंतरण-उपनिषद्- द्वापर युग के अंत में ब्रह्मदेव ने यह उपनिषद् नारदजी को बताया। इसे हरिनामोपनिषद् भी कहते हैं। परंपरा के अनुसार यह कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित माना जाता है। इसका सार यही है कि केवल नारायण के नामजप से ही कलिदोष नष्ट हो जाते हैं । यह नाम सोलह शब्दों का है
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।। कालाग्निरूद्रोपनिषद् - श्लोक 100 । नन्दिकेश्वर प्रोक्त। कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित लघु गद्य उपनिषद्। इसमें कालाग्निरुद्र को प्रसन्न करने के लिये भस्मत्रिपुंड धारण करने की विधि बताई गई है। त्रिपुंड्र की तीन रेखाओं को भूलोक, अंतरिक्ष व द्युलोक तथा क्रियाशक्ति, इच्छाशक्ति व ज्ञानशक्ति का प्रतीक बताया गया है। कालानलतन्त्रम् - नारद- नीललोहित (शिव) संवाद रूप। 25 पटल। श्लोक 1600। अन्तिम पटल का विषय हैसिद्धिलक्ष्मी का सहस्रनामस्तोत्र । लिपिकाल- संवत् 857 । कालापशाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय) - वैशंपायन का तीसरा उत्तरदेशीय शिष्य कलापी था। कलापी की संहिता और उसके शिष्य को ही कालाप कहते हैं। कलापी के चार शिष्य थे1) हरिद्रु 2) छगली 3) तुम्बुरु और 4) उतप। कालाप संहिता का नामान्तर मैत्रायणीय संहिता माना जाता है। काठक संहिता से भी कालाप संहिता विशेष भिन्न नहीं थी। यदि मैत्रायणीय संहिता से कालाप संहिता भिन्न हो तो उस संहिता के उस ब्राह्मण (कालाप ब्राह्मण) का अभी तक ज्ञान नहीं है। कालार्करुद्रपूजा-पद्धति - श्लोक 100 । कालार्क रूद्र (शिवजी) का एक रूप माना गया है। कालिकापुराणम् - समय- ई. 10 वीं शताब्दी । इसमें 13 अध्याय हैं जिनमें कुल 1000 श्लोक हैं। शिवपति अम्बिका की उपासना ही प्रमुखतया प्रतिपाद्य है। इसके दो खंड हैं। प्रथम खण्ड में शिव-पार्वती विवाह, कामदेव का जन्म, दक्षयज्ञ, क्षिप्रानदी का उगम, वराह-शरभ युद्ध आदि की कथाएं हैं। दूसरे खण्ड में विविध देवताओं की उपासना, उनके पीठ स्थानों की उत्पत्ति, कामरूप के पर्वत, नदियाँ, कामाक्षी के स्थान तथा शाक्त सम्प्रदाय आदि की जानकारी दी गई है। देवियों की उपासना में मंत्र, तंत्र और मुद्राओं की महत्ता तथा 53 मुद्राओं का विवरण भी इसमें है।
60/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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