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विवादताण्डव, निर्णयसिन्धु (ई. 1612 में लिखित) बृहत्काव्य के निवासी। सन 1797 में रचित। इसका प्रकाशन काव्यमाला रामकौतुक तथा गीतगोविन्द टीका। 12) नरसिंह ठाकुर, गोविन्द ___ में हुआ है। का वंशज, कमलाकर का समकालीन तर्कशास्त्रज्ञ, 13) बैद्यनाथ काव्यमंजरी - न्यायवागीश भट्टाचार्य। अप्पय दीक्षित के "उदाहरणचन्द्रिका (उदाहरणों की टीका ई. 1684)। अन्य "कुवलयानन्द" पर टीका। ई. 18 वीं शती। टीकाएं- काव्यप्रदीपप्रभा, 14) भीमसेन, शिवानन्द पुत्र, शाण्डिल्य काव्यमीमांसा - ले. राजशेखर । आज उपलब्ध काव्यमीमांसा गोत्रीय कान्यकुब्ज, वैयाकरण) टीका "सुधासागर" (इ.स. 18 अध्यायों में है, जो केवल एक अधिकरण के भाग हैं। 1723) इसके अनुसार मम्मट, कैय्यट, और उव्वट भाई थे। इस अधिकरण की संज्ञा "कविरहस्य है। ऐसे अन्य अधिकरण इसी के "अलंकारसारोद्धार" में कुवलयानन्द का खण्डन करते हैं किन्तु वे उपलब्ध नहीं हैं। यदि वे भी उपलब्ध होते हैं हुए मम्मट पर किए आरोपों का खण्डन तथा मतमण्डन किया
तो राजशेखर की असाधारण प्रतिभा का महत्त्व अवश्य ही है। 15) नागोजी भट्ट (महाराष्ट्र ब्राह्मण, शिवदत्त पुत्र, भट्टोजी
प्रकट हो सकता है। अधिकरण अध्याय आदि के रूप में दीक्षित का पोता, शृंगवेरपुर के राजारामसिंह की सभा का ग्रंथपद्धति शास्त्रीय है। वेदान्त मीमांसा आदि सूत्रग्रंथों की सदस्य, 18 वीं शती।) 16) राजानक रत्नकण्ठ, टीका- रचना इसी प्रकार से हुई है किन्तु वहा पर अधिकरणों का "सारसमुच्चय" जयन्ती आदि पूर्व की टीकाओं का परामर्श
एक एक स्वतंत्र ढांचा है, जिसका स्वरूप, विषय, सन्देह, इस टीका में है। 17 वीं शती (उत्तरार्थ) यह काश्मीर-निवासी
पूर्वपक्ष, उत्तरपक्ष, तथा संगति रूप से पंचांग वाला होकर, और हस्ताक्षरप्रवीण थे। 17) गोपीनाथ। 18) चण्डीदास 19)
प्रत्येक अध्याय के पादों के अन्तर्गत उनकी रचना की गई जनार्दन व्यास 20) देवनाथ तर्कपंचानन 21) जगन्नाथ, 22)
है। किन्तु काव्यमीमांसा के अधिकरण अनेक अध्यायों में बटे नारायण बलदेव 23) रत्नपाणिपुत्र रवि, 27) रामकृष्ण, 28) हैं तथा अधिकरण के विषय की चर्चा भी उपरोक्त पूर्वोत्तरपक्षात्मक रामनाथ विद्यावाचस्पति 29) लौहित्यगोपाल भट्ट 30)
निश्चित पद्धति से नहीं की गई है। विद्याचक्रवर्ती 31) वेदान्ताचलसूरि 32) वैद्यनाथ 33) शिवराम
प्रथम अध्याय "शास्त्र संग्रह में काव्यमीमांसा का आरंभ 34) श्रीधर सांधिविग्राहिक 35) शिवनारायण 36) जयराम
शिष्य परम्परा, विषयविभाग आदि. का वर्णन तथा प्रस्तुत ग्रंथ पंचानन 37) वेदान्ताचार्य 38) यज्ञेश्वर 39) जयद्रथ 40)
की रूपरेखा का प्रदर्शन किया गया है। इस शास्त्र का प्रमुख साहित्यचक्रवर्ती 41) रुचिनाथ 42) शिवदत्त 43) भानुचन्द्र
विषय शब्द एवं अर्थ की मीमांसा ही रहा है। अध्याय 2 44) गदाधर चक्रवर्ती 45) गोकुलनाथ, 46) गोपीनाथ 47)
"शास्त्रनिर्देश" में वाङ्मय का शास्त्र और काव्य में विभाग गुणरथगणि 48) कलाधर 49) कल्याणउपाध्याय 50) कृष्ण
करके कवि के लिए शास्त्राध्ययन की आवश्यकता बतलाई द्विवेदी 51) कृष्णशर्मा 52) कृष्णमित्राचार्य 53) जगदीश
गयी है। वेद वेदाङ्ग तथा अन्य शास्त्रों का विस्तार से तर्कालंकार 54) नागराज केशव 55) नरसिंह देव 60) रत्नेश्वर
निरूपण करते समय वैदिक मन्त्रों के अर्थज्ञान में शिक्षादि 61) रामानन्द 62) रामचन्द्र 63) रामकृष्ण 64) रामनाथ
प्रसिद्ध वेदाङ्गों के समान अलंकार शास्त्र का ज्ञान भी 65) विद्यावाचस्पति 66) शिवनारायण 67) विद्यासागर 68)
आवश्यक होता है यह बात राजशेखर की सूक्ष्मदर्शिता का वेंकटाचलसूरी 69) विद्यानन्द 70) यज्ञेश्वर 71) संजीवनी
पता देती है। आगामी साहित्य शास्त्रियों ने अलंकारशास्त्र की टीका, 72) नागेश्वरी टीका 73) राघव की वृत्ति (अपूर्ण,
इस विशेषता की ओर ध्यान नहीं दिया। आगे चलकर इसी सातवें उल्लास के मध्य तक) नाम अवचूरि 74) महेशचन्द्र
प्रकरण में 4 वेद 6 अंग तथा 4 शास्त्रों को विद्यास्थान मान टीकाकार, कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के प्राध्यापक ई. 1882 ।
कर आन्वीक्षिकी, त्रयी वार्ता एवं दण्डनीति के साथ साथ 75) नरसिंह की “ऋजुवृत्ति" केवल कारिकाओं की है, 76)
साहित्य विद्या को "पंचमी विद्या" राजशेखर ने माना है। इस काव्यामृततरंगिणी, मम्मट मत के खण्डनार्थ टीका- ले.-अज्ञात
सम्पूर्ण शास्त्रीय वाङ्मय की पृष्ठभूमि में राजशेखर का "कवि" इत्यादि। प्रस्तुत "काव्यप्रकाश" के अंग्रेजी में तथा अन्य
एक महान् व्यक्तित्व धारण करते हुए प्रकट होता है। वह भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। हिंदी में इसकी
प्राचीन ऋषि महर्षियों से कुछ मात्रा में अधिक ही है। 3 व्याख्याएं व अनुवाद हैं। "रीतिकाल" में इसके अनेक
___ 3 रे अध्याय "काव्यपुरुषोत्तम" में सारस्वत काव्यपुरुष के हिन्दी पद्यानुवाद हुए हैं और इसके आधार पर कई आचार्यों ने "रीतिग्रंथों' की रचना की है। इस ग्रंथ के प्रति पंडितों
जन्म आदि की कथा दी गई है। बाण के हर्षचरित में वर्णित
"सारस्वत" की जन्मकथा का इस पर प्रभाव दिखलाई देता का प्रेम अभी भी बना हुआ है।
है। (अथवा इन दोनों पर किसी अन्य कथा का प्रभाव पडा काव्यप्रकाशतिलक - ले. जयराम न्यायपंचानन ।
होगा)। इस काव्यपुरुष की अवयव-कल्पना में पद्य, शब्द, काव्यप्रयोगविधि - ले. मुडुम्बी नरसिंहाचार्य ।
अर्थ, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पैशाच, मिश्र, औदार्य, माधुर्य, काव्यभूषणशतकम् - ले.श्रीकृष्णवल्लभ चक्रवर्ती। ग्वालियर ओज, छन्द अनुप्रास, उपमा आदि के साथ साथ "रस आत्मा"
66 संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ट
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