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है। अंकसंख्या-छह । मार्कण्डेयोदयम् - ले.- वेंकटसूरि । मार्कलिखितः ससंवादः - यह बाइबल का अनवाद है। सन् 1878 मे बॅप्टिस्ट मिशन मुद्रणालय (कलकत्ता) से प्रकाशित । मार्गदायिनी - ले.- के. वेङ्कटरत्नम् पन्तलु। “अक्षरसांख्य" नामक नवीन सिध्दान्त के प्रतिपादन का प्रयास लेखक ने किया है। मार्गसहायचंपू - ले.- नवनीत कवि। ई. 17 वीं शती। इस चंपूकाव्य मे 6 आश्वासों में आर्काट जिलांतर्गत विरंचिपुरम . ग्राम के शिव-मंदिर के देवता मार्गसाहाय की पूजा वर्णित है। उपसंहार मे कवि ने स्पष्ट किया है कि इस चंपू में मार्गसहायदेव के प्रचलित आख्यान को आधार बनाया गया है। मर्जिना-चातुर्यम् - ले.- डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य । कलकत्ता आकाशवाणी से प्रसारित। अलीबाबा और चालीस चोर का कथानक इस संगीतिका का विषय है। मार्तण्डार्चनचन्द्रिका - ले.- मुकुन्दलाल। मालती - ले.- कल्याणमल्ल। ई. 17 वीं शती। मेघदूत की व्याख्या। मालती-माधवम् - (प्रकरण) - ले. भवभूति । संक्षिप्त कथा - ले.- प्रथम अंक मे माधव मदनोद्यान में मालती को देखकर कामासक्त हो जाता है। कलहंस मालतीनिर्मित माधव का चित्र माधव को दिखाता है। माधव भी चित्रफलक पर मालती का चित्र बना देता है। द्वितीय अंक में ज्ञात होता है की मालती के पिता भूरिवसु, नंदन के साथ मालती का विवाह निश्चित करते हैं। यह जानकर कामन्दकी, मालती और माधव की परस्पर अनुरक्ति देखकर, उनका गांधर्व पध्दति से विवाह कराने का निर्णय लेती है। तृतीय अंक में कामन्दकी और लवंगिका, मालती और माधव को एक दूसरे की विरहदशा के बारे में बता कर उनकी कामभावना को उद्दीप्त करती हैं। चतुर्थ अंक में माधव, मालती और नंदन के विवाह के बारे में जानकर दुःखी होता है और नरमांस विक्रय का निश्चय करता है। पंचम अंक में कपालकुण्डला नामक तांत्रिक योगिनी, मालती का अपहरण करके कराला देवी के मंदिर में ले जाती है, और अघोरघंट नामक तांत्रिक, मालती को देवी को बलि चढाना चाहता है। माधव वहीं पहुचकर मालती को बचाता है। षष्ठम अंक में कामन्दकी, माधव और मालती का गांधर्व विवाह कराती है। सप्तम अंक में मालती का वेष धारण किए हुए मकरन्द के साथ नंदन की शादी होती है और नंदन के मालती के भवन चले जाने पर मकरन्द अपने स्वरूप को प्रकट कर प्रेमिका मदयन्तिका को लेकर चला जाता है। अष्टम अंक में कपालकुण्डला मालती का अपहरण कर लेती है। नवम अंक में मालती के वियोग से व्याकुल होकर माधव आसन्नमरण अवस्था में पहुंच जाता है, तभी सौदामिनी (कामन्दकी की शिष्या) आकर मालती के जीवित होने का
समाचार देती है। दशम अंक में माधवादि सभी को लेकर नगर में आकर, अग्निप्रेवश के लिए उद्यत भूरिवसु को, बचाते हैं। भूरिवसु मालती-माधव का विवाह कर देते हैं। इस प्रकरण में कुल उन्नीस अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें से 4 विष्कम्भक 4 प्रवेशक, 9 चूलिकाएं हैं। अंकास्य और अंकावतार है। टीका तथा टीकाकार - (1) धरानन्द, (2) जगद्धर, (3) त्रिपुरारि, (4) मानांक, (5) राघवभट्ट (6) नारायण, (7) प्राकृताचार्य, (8) जे. विद्यासागर, (9) पूर्णसरस्वती, (10) कुंजविहारी। मैथिलशर्मा द्वारा लिखित संक्षिप्त पद्यमय मालती-माधव-कथा भी है। मालवमयूर - सन् 1946 में मध्यप्रदेश के मन्दसौर से डा. रुद्रदेव त्रिपाठी के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसका वार्षिक मूल्य 5 रु. था। इसमें लघु काव्य, समस्या, हास्यव्यंग, वैज्ञानिक विषयों पर निबंध आदि प्रकाशित होते थे। इसकी एक विशेषता यह थी कि तत्कालीन चलचित्रों के गीतों का उसी लय और ध्वनि में संस्कृत अनुवाद भी प्रकाशित होता था। इसका प्रकाशन पांच वर्षों बाद स्थगित हो गया। इसके मालवांक, होलिकांक, विनोदिनी अंक आदि विशेष लोकप्रिय रहे। मालविकाग्निमित्रम् - ले.- महाकवि कालिदास। संक्षिप्त कथा- प्रथम अंक में राजा अग्निमित्र मालविका के दर्शन के लिए आतुर होता है। तब विदूषक इसके लिये उपाय के रूप में गणदास और हरदत्त नामक दोनों नाट्याचार्यों में श्रेष्ठता विषयक विवाद उपस्थित कर देता है। उनमें श्रेष्ठता का निर्णय उनकी शिष्याओं के नृत्यप्रदर्शन से करने का निश्चय किया जाता है। द्वितीय अंक में नृत्यशाला में गणदास की शिष्या मालविका नृत्य प्रदर्शित करती है। राजा उसे देखकर मुग्ध हो जाता है। तृतीय अंक में अशोक वृक्ष के दोहद के लिए बकुलावलिका के साथ उपस्थित मालविका से राजा की प्रथम भेंट होती है, पर वहां इरावती के आने से विघ्न पड़ता है। चतुर्थ अंक में क्रुध्द इरावती देवी धारिणी को बताकर मालविका
और बकुलावलिका को बन्दीगृह में डाल देती है, किन्तु विदूषक चतुराई से दोनों को मुक्त करके राजा से उनकी भेंट करवाता है। इरावती पुनः वहां आती है। पंचम अंक में धारिणी मालविका कृत दोहद से अशोक के पुष्पित होने और अपने पुत्र वसुमित्र की अश्वमेघ यज्ञ की विजय से प्रसन्न होकर राजा को उपहार के रूप में मालविका को देना चाहती है। राजसभा में उपस्थित मालविका को माधवसेन द्वारा राजा के लिए भेजी गई दो शिल्पिकाएं पहचान लेती हैं। तब कौशिकी मालिविका के वास्तविक रूप को प्रकट करती है। धारिणी प्रसन्न होकर मालविका को सदा के लिए राजा को समर्पित करती है। मालविकाग्निममित्र में कुल 8 अर्थोपक्षेपक हैं। जिनमें एक विष्कम्भक 2 प्रवेशक, 4 चूलिकाएं और ।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 269
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