Book Title: Sanskrit Vangamay Kosh Part 02
Author(s): Shreedhar Bhaskar Varneakr
Publisher: Bharatiya Bhasha Parishad

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Page 491
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सोमचंद्रगणि (13) सोमेश्वर (12) सोमेश्वरभट्ट (13) स्कन्दमहेश्वर (4) स्वामीशास्त्री (19) स्कन्दस्वामी (7) स्कन्दस्वामी (4-5) स्वपति गर्ग हनुमत् कवि हरकवि (17) हरिकवि (भाऊभट्ट) (17) हरिदास (17) हरिपाल महाराज (विचारचतुर्मुख) हरिभद्रसूरि (8) (कालिकालगौतम) हरिवैद्य (13-14) हरिस्वामी (4) हंस मिठ्ठ (18) हाथिभाई हरिशंकर शास्त्री (20) हेमचंद्र (कलिकालसर्वज्ञ) (11-12) : : : : : : : : : शतपथ ब्राह्मणटीका, : सिद्धान्तसार (ज्यो.), गुणसंग्रहनिघण्टु आयुर्वेदीयकोश। : वृत्तरत्नाकर की टीका कीर्तिकौमुदी, सुरथोत्सव, रामशतक, ............. उल्लाघराघवम् (नाटक) संकेत (काव्यप्रकाश की टीका) निरुक्तटीका सम्वेदभाष्य (जिसे नारायण और उद्गीथ ने पूर्ण कि खंडेरायकाव्य, (भारतीवृत्ति टीकासहित) ऋग्वेदभाष्यम् ऋग्वेदभाष्य (3 अष्टक तक) पारस्करगृह्यसूत्रपद्धति : प्रस्तारत्नाकर ( नीतिकाव्य) संगीतसुधाकर खण्डप्रशस्तिकाव्य फलदीपिका (ज्यो.) सूक्तितरंगिणी, हैहयेन्द्रचरितम् सम्भाजीचरितम् अनेकान्तजयपताका, योगबिन्दु, योगदृष्टिसमुच्चय, षड्दर्शनसमुच्चय, शास्त्रवार्तांसमुच्चय तत्त्वप्रबोध रसरत्नमाला (आयुर्वेद) शतपथब्राह्मणका हंसविलासम् कृष्णचन्द्राभ्युदय नाटक की व्याख्या प्रमाणमीमांसा (जैनन्याय), अयोगव्यवच्छेद अन्ययोगव्यवच्छेद योगशास्त्र, वीतरागस्तोत्रम् (सटीक), वेदांकुश (द्विजवदनचपेटा) अभिधानचिन्तामणि, (तत्त्वाभिधायिनी टीकासहित) www.kobatirth.org 474 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - हेमहंसगण (15) : ग्रंथकार For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्ञात अघोरशिवाचार्य (15) सिद्धमलिंगानुशासनम्, अनेकार्थसंग्रह, देशीनाममाला (या देशी शब्दसंग्रह), छन्दोनुशासनम्, शब्दानुशासनम्, काव्यानुशासनम् शब्दमहार्णवन्यास, परिशिष्ट (13) तमिळनाडु के ग्रंथकार और प्रेथ इस परिशिष्ट में तमिळनाडु के संस्कृत वाङ्मय का विभाजन तीन प्रकार से किया है। (1) शैव, (2) श्रीवैष्णव और (3) तंजौर राज्य तमिळनाडु के शैव संप्रदाय के अन्तर्गत सौम्य शैव, रौद्रशैव, पाशुपत, वाम, भैरव, महाव्रत और कालमुख नामक उपसंप्रदाय माने जाते है। श्रीवैष्णव (या रामानुज सम्प्रदाय) के अन्तर्गत टेंगले और वडगलै नामक दो उपसंप्रदाय विद्यमान है इन दो उपसंप्रदायों के आचारपद्धति एवं विचार में अठारह प्रकार के मतभेद माने गये है। उणादिगणविवरण, धातुपरायणविवरण, निघण्टुशेष (आयुर्वेदकोश) संस्कृत वाङ्मय के क्षेत्र में बौद्ध ( हीनयान महायान), जैन (श्वेताम्बर - दिगम्बर) संप्रदायों का अपना अपना उल्लेखनीय योगदान हुआ है उसी प्रकार शैव और वैष्णव सम्प्रदायों का भी अपना अपना वैशिष्ट्यपूर्ण योगदान हुआ है। शैव वाड्मय में काश्मीर और तमिळनाडु प्रदेशों में ग्रंथ निर्मिति हुई है। वैष्णव वाङ्मय में माध्वमत का वाङ्मय प्रधानतया कर्नाटक में, वल्लभमत का उत्तरप्रदेश, राजस्थान और गुजरात में, चैतन्यमत का बंगाल में और श्रीवैष्णव (या रामानुज मत का साम्प्रदायिक वाङ्मय तमिळनाडु में ही मुख्यतया निर्माण हुआ है । इस दृष्टि से प्रस्तुत तमिळनाडु विषयक परिशिष्ट के तीन भाग यहां किये गये है। : : सुधीशृंगार (आरंभसिद्धि की टीका) (न्या.) तमिळनाडु का शैव वाङ्मय ग्रंथ ब्रह्मसूत्रभाष्याधिकरणार्थं संग्रह अष्टप्रकरणव्याख्या (अष्टप्रकरण तत्त्वप्रकाशिका, तत्त्वसंग्रह, तत्त्वत्रयनिर्णय, भोगकारिका, नादकारिका, मोक्षकारिका,

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